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रुद्रप्रयाग:-
उत्तराखंड के सूदूर गांव से जिंदगी की शुरुआत करने वाले देश दुनिया को उत्तराखंड के पहाड़ी पकवानों का स्वाद चखाने वाले लक्ष्मण सिंह रावत के निधन का समाचार सुनकर सभी लोग अचंभित हैं, अचंभित इस लिए हैं कि हर पहाड़ी भाई मदद करने वाला मसीह अब हमारे बीच नहीं रहा।
रूद्रप्रयाग जनपद के सुदूर गांव में जन्मे लक्ष्मण सिंह रावत ने जीवन की शुरुआत बहुत गरीबी से की पिता का साया बहुत पहले ही निकल गया था। पूरी परिवार की जिम्मेदारी लक्ष्मण के ऊपर आ गई थी जिसके बाद लक्ष्मण ने मुंबई जाकर होटल में नौकरी शुरू की उसके कुछ साल बाद देहरादून आकर अपनी इलेक्ट्रॉनिक की दुकान खोल दी, दुकान के साथ साथ टेलीफोन एसटीडी का काम भी शुरू कर दिया। समय बढता गया परिवार भी बढता गया लक्ष्मण रावत ने कुछ सालों बाद प्रोपर्टी डीलर का काम शुरू कर दिया । जबकि वर्ष 2008 में रूद्रप्रयाग जनपद के जखोली ब्लॉक स्थित अपने गांव के ग्राम प्रधान बन गए । उस दौर में पूरे रूद्रप्रयाग में लक्ष्मण रावत को सबसे एक्टिव प्रधान माना जाता जो उस 2008 में भी अपने गांव का सम्पूर्ण डाला लेपटॉप पर लेकर चलते थे । जबकि उन्होंने सरकार द्वारा कई बार पुरुस्कृत भी किया गया। वहीं पांच वर्ष का कार्यकाल समाप्त होने बाद लक्ष्मण सिंह पुनः देहरादून की ओर निकल पड़े और इस बार कुछ नया करने की ढाने थे । 2015-16 के बीच लक्ष्मण रावत ने देहरादून के सबसे भीड़ भाड़ और रियासती क्षेत्र राजपुर रोड़ स्थित एक सुंदर रेस्टोरेंट की शुरुआत की जिसका नाम गढ़ भौज रखा गया। गढ़ भौज सिर्फ नाम ही नहीं एक पहचान के साथ विरासत बन गई थी उत्तराखंड की, सब कुछ ठीक ठाक चल रहा था होटल में देश विदेश से लोग पहुंच रहे थे तमाम वीआईपी से लेकर वीवीआईपी गढ़ भौज जा कर पहाड़ के व्यंजनों का स्वाद ले रहा था, गढ़ भौज में पीने का पानी भी पहाड़ के स्रोतों से लाया जाता था। तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत ने खुद गढ़ भौज की ब्रांडिंग भी की लेकिन जैसे ही सत्ता पलट गई वैसे ही अचानक गढ़ भौज नव निर्वाचित सरकार ने गढ़ भौज से दूरियां बढ़ा दी जबकि तमाम सरकारी कार्यक्रमों में परोसे जाना वाला गढ़ भौज का स्वादिष्ट भोजन भी कहीं स्टोलों में तक नहीं दिखा। कुछ वर्ष बाद लक्ष्मण रावत ने गढ़ भौज बंद कर दिया और फिर अपने अन्य कामों में लग गए लेक गढ़ भौज में हुए नुकसान का सदमा लक्ष्मण रावत दिमाग से उतर नहीं पाया कि इसी बीच कोरोना महामारी में लगे लॉकडाउन ने हर किसी की कमर तोड़ दी। तभी अचानक कुछ समय बाद लक्ष्मण रावत के छोटे भाई की मृत्यु हो गई जिस कारण लक्ष्मण रावत आर्थिक और शारीरिक रूप से काफी कमजोर होने लगे । अब धीरे धीरे काम धंधे पटरी पर आ ही रहे थे कि कभी हार न मानने वाले लक्ष्मण रावत आखिरकार मौत से हार गए।
आपको बता दें लक्ष्मण रावत उत्तराखंड के उन चुनिंदा लोगों में जो हर इंसान की मदद करके रहते थे, अगर उनके पास कोई भी व्यक्ति जाता था तो उसे निराश वापस नहीं लोटते थे। कोरोना काल में जगह जगह राहगीरों के लिए भंडारे से लेकर गरीबों के घरों में सूखा भोजन तक बांटा ।
लक्ष्मण रावत अक्सर कहते रहते थे की मेरा मकसद सिर्फ लोगों की मदद करना है और बच्चों को अच्छी पढ़ाई करवाना है।
घनसाली- भिलंगना ब्लॉक के बूढ़ाकेदार क्षेत्र में मंगशीर बग्वाल को लेकर तैयारियां शुरू हो गई है।मुख्य दीपावली के ठीक एक माह बाद 30 नवंबर को टिहरी जिले के थाती कठूड़ के लोग मंगशीर की दीपवाली (बग्वाल) मनाएंगे। दीपाव...