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घनसाली- भिलंगना ब्लॉक के बूढ़ाकेदार क्षेत्र में मंगशीर बग्वाल को लेकर तैयारियां शुरू हो गई है।मुख्य दीपावली के ठीक एक माह बाद 30 नवंबर को टिहरी जिले के थाती कठूड़ के लोग मंगशीर की दीपवाली (बग्वाल) मनाएंगे। दीपाव...
१- उत्तराखंड के हिस्से में शायद हमले ही आ रहे हैं सर्वप्रथम तो पलायन का मुख्य हमला है।
२- गांव में घटते परिवार की संख्या से पैतृक मकान की सुन्दरता में हमला और खण्डहरों की शक्ल में परिवर्तन।
३- ग्रामीण रीति रिवाज में शहरी करण का हमला फलस्वरूप देवत्व भाव में भौतिक वाद की प्रधानता।
४- उत्तराखंड राज्य के बाद पलायन रोजगार के रूप में कम किन्तु प्रतिस्पर्धा के रूप में अधिक होने लगा परिवारों में मानसिक हमला यह होता है कि पड़ोसी नीचे चला गया हम कब तक यहां रुकेंगे।
लेखक की कलम से :-
सरकार भी चाहती है कि पहाड़ों में जंगली जानवरों की संख्या अधिकाधिक बढ़े शहरों में मनुष्य रहते हैं इसलिए वहां के लोगों पर जो जानवर हमला करे उसे पहाड़ी इलाकों के जंगलों में छोड़ देते हैं और निश्चित हो जाते हैं शायद बड़े लोगों का ऐसा मानना होता है कि जो उत्तराखण्ड में रहते हैं वे जंगली जानवरों की भूमि में रहते हैं और जो शहरों में रहते हैं वे अपनी पैतृक संपत्ति में रहते हैं इसलिए दोनों हमले उत्तराखंड के ग्रामीण जनोंके भाग्य में लिखा है
शहर में जिस व्यक्ति पर पशुओं पर हिंसक जानवर जब हमला करता है तो पीड़ित व्यक्ति का प्रतिकर लाखों में बनता है शहर के पशु का और पहाड़ के व्यक्ति का प्रतिकर बराबर होता है जबकि सारे गांव जंगल की सीमाओं से जुड़े होते हैं और गांव के किसी काश्तकार के पशु अथवा मनुष्य को हिंसक जानवर ने हमला कर दिया तो पूछा जाता है कि घर में खाया या घर से बाहर बाघ ने खाया कि भालू ने खाया कि किसी अन्य जानवर ने पहले पोस्टमार्टम रिपोर्ट लाओ घटना की फोटो और यदि छान (गौशाला) में खाया तो खसरा खतौनी की नकल और इतना करने के बाद भी आज तक किसी का प्रतिकर इसलिए नहीं मिला कि जहां हमला हुआ वह यातो वनभूमि या यूके लैण्ड है यह समस्या अब अनेक रूपों में दिखाई देने लगी है परिवारों में भोजन लकड़ी से बनता था तो चक्रीय छंटनी गांव के काश्तकारों के द्वारा की जाती तो वन झाड़,झंकाड बस्ती से दूर होते पशुओं को चारा पाती लाते तो दूर तक स्पष्ट दिखाई देने से खतरे का आभास हो जाता किंतु अब न पशुपालन रहा और न चक्रीय छंटनी मैं गांव में रहकर अनुभव कर रहा हूं कि आज से दस वर्ष के अन्दर अन्दर गांव में रहने वाले लोगों को बन्दरों सुअरों और भालू ,बाघ लोगों को इतना बिवश कर देंगे कि जब जानवर बाहर आना दूभर कर रहे हैं क्योंकि बाघ का आहार भेड़ बकरी , गौवंशीय और हिरण आदि थे पशुपालन बन्द प्रायः हो गया जंगली जानवर भी नामात्र है फसली जमीन भी ७०,८०/बंजर हो गई बन्दर , सुअर और भालू किसान की खेती बाड़ी पर निर्भर होते थे अब फसल तो है नहीं और मन्दिरों, स्कूलों और बारात में जो पकवान कुन्तलों के हिसाब से फेंका जाता उसका स्वाद का आनन्द जो उन्हें प्राप्त होता वह घास पती और कच्चे फल खाने में कैसे आयेगा फलस्वरूप अब बंन्दर घर के भीतर उस रस्वादन हेतु जा रहा है अब मात्र बन्दरों का हमला सुअर का हमला,बाघ का हमला और भालू का का हमला यही उत्तराखण्ड की मुख्य सुर्खियां आती है इस समस्या का समाधान किसी के पास आज नहीं है और न कोई सुनने को तैयार है किन्तु अगर कोई काश्तकार कोई निर्माण कार्य शुरू करते हैं तो उसकी निगरानी कर सकते हैं।
लेखक कवि, विष्णु प्रसाद सेमवाल (भृगु)
घनसाली- भिलंगना ब्लॉक के बूढ़ाकेदार क्षेत्र में मंगशीर बग्वाल को लेकर तैयारियां शुरू हो गई है।मुख्य दीपावली के ठीक एक माह बाद 30 नवंबर को टिहरी जिले के थाती कठूड़ के लोग मंगशीर की दीपवाली (बग्वाल) मनाएंगे। दीपाव...