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राम नाम की नाव में भाजपा की छांव में-विष्णु प्रसाद सेमवाल।

20-02-2024 08:09 AM

विष्णु प्रसाद सेमवाल की कलम से:- 

आजकल प्रत्येक दिन चर्चा का बिषय हो गया है कि कांग्रेस पार्टी के इतने आदमी भारतीय जनता पार्टी में आ गये है और अभी इतने लोग और बड़े पुराने नेता कांग्रेस तथा अन्य दलों के लोग भा,ज, पा में आना चाह रहे हैं परंतु यह तय नहीं हो पा रहा है कि जो लोग कांग्रेस छोड़ बीजेपी में शामिल हो रहे हैं उनका स्वागत हर्षोल्लास में करना चाहिए अथवा पांच साल तक प्रतिक्षा करें कि 5साल तक टिकने के बाद शुभकामना और बधाई तदोपरांत दें पार्टी बदलना बहुत आसान है किन्तु व्यक्ति के बिचार यदि पार्टी बिचार भी इतना जल्दी बदल जाते होंगे तो लगता है कि हमने उस संगठन के विचारों को आत्मसात नहीं किया होगा और यदि उन विचारों का अनुसरण जीवन में किया है तो जिस पार्टी में हम आज शामिल हो रहे हैं उन विचारों का अनुसरण करने और समझने में उतना ही समय लगेगा जितना समय हमारी पूर्व बैचारिक प्रतिष्ठान में रहा । वर्तमान समय बहुत बड़े बैचारिक संक्रमण दौर से गुजर रहा है आज से पूर्व सनातन संस्कृति और हिन्दु हिन्दुत्व की लड़ाई बहुत खामोशी की लड़ाई लगती थी दो , तीन दशक पूर्व राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के स्वयंसेवको के कार्यकर्ताओं को गांव के दो चार लोगों को जोड़ने में महीनों तक चक्कर लगाने पड़ते थे तव एक स्वयं सेवक का निर्माण किया जाता था उसके बाद सामाजिक विचार परिवर्तन होने के फलस्वरूप नब्बे के दशक में रामजन्म भूमि आंदोलन में भारतीय जनता पार्टी और हिन्दुजागरण मंच , तथा बिश्व हिन्दु परिषद में लोगों का झुकाव हिन्दुत्व की ओर बढ़ना आरंभ होने लगा 2014से पूर्व कभी कल्पना नहीं की जा सकती थी कि कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेताओं की मन: स्थिति भा, ज,पा में आने की होगी । अब यह यक्ष प्रश्न बन गया है कि "देश आज कांग्रेस मुक्त होने वाला है कि भारतीय जनता पार्टी कांग्रेस युक्त होने वाली है "" क्योंकि जो कांग्रेसी भा ज पा , में आ रहा है वह अकेला नहीं अपनी सैकड़ों की वैचारिक टोली साथ लेकर पार्टी में शामिल हो रहे हैं और यह भी विचारणीय विषय है कि अपनी जीवन पहचान की पार्टी में जब उन्हें अपने हद ,कद ,पद , और मद भविष्य में सुरक्षित होता हुआ दिखाई नहीं दे रहा है तो उन्हें भा ज पा में आना पद ,कद, और हद प्राप्त होता हुआ दिखाई दे रहा है भा ज पा के विचार से जुड़ने से उन्हें कोई मतलब नहीं है क्योंकि अनेक उदाहरण वे लोग हैं जो अन्य पार्टियों , दलों से भा ज पा में आते और कही वर्षों तक ऊंचे पदों पर रहने के बाद फिर वापस जाकर पार्टी के खिलाफ जहर उगला एक साधारण फार्मूला है कि आदमी एक साथ सारे चनों को मुंह में नहीं डालता हमेशा चनें देख परख कर खाते हैं और खाता आदमी चने के छुक्कल भी अन्यथा सारे एक बार डालेंगे तो फिर सारे चने बाहर निकालना पड़ता है इसलिए भविष्य के लिए पार्टी बिचार धारा के लिए राष्ट्रीय हित के लिए और कार्यकर्ताओं की भावना तथा एक जुटता बनाय रखने के लिए इस वैचारिक संक्रमण काल खण्ड में हमें कितना चलना है ,किसको साथ लेकर चलना है , और जो हमारी बिरासत दीप को जलाकर वर्षों से सुख दुःख सहने के बाद भी हमसफ़र पर चला जा रहा है कहीं ऐसा न हो कि आने वाले रहने वालों को इतना पीछे न छोड़ जाय कि आगे सारे अजनबी दिखाई दें और अपने सारे पीछे छूट जाएं 

  यह विचार लेखक के अपने स्वतंत्र विचार विमर्श हैं

        बिष्णु प्रसाद सेमवाल भृगु


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