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कवि विष्णु प्रसाद सेमवाल भृगु की कलम से
खोज रहा मैं अपना बचपन, लिया जन्म जिस गांव में ।। भगनि बन्धु की दृष्टि पटल में और मां पिता की छांव में।।
नहीं मिल रहा मेरा बचपन, कहां लगा होगा दांव में।।कुछ भी गुम नहीं होता था पहले, जन्मभूमि सुरक्षित गांव में।।
खोज रहा॒ मे अपना बचपन.............मात-पिता की छांव में।।
दूर तलक बीराने पड़े हैं, नहीं रहा अब कोई अपने ठांव में।।
शमशान सा सन्नाटा है पसरा, हरे भरे मेरे गांव में।।
खोज रहा॒ मे अपना बचपन............. माता-पिता की छांव में।।
सारे गांव के मिलजुल रहते, थे करते हंसी ठिठोली शाम में।।
सूरज ढलते कोई नहीं दिखता, मानुषहीन मेरे गांव में।।
कहां गये मेरे वे सहपाठी।
जब खेल खेल ठोकर लगती पांव में, कौमार्य जीवन अब नहीं दिखता मेरे बूढ़े गांव में।।
खोज रहा॒ मे अपना बचपन.............मात-पिता की छांव में।।
चूड़े ,बुखणे अरसे नहीं बनते, ओखली कुटे चावल का नाम नहीं।
काखड़ी, मक्की अब नहीं उगती, कोई फसल नहीं गांव में।।
खोज रहा॒ मे अपना बचपन.............मात-पिता की छांव में।।
बिष्णु प्रसाद सेमवाल भृगु ग्राम भिगुन टिहरी गढ़वाल
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