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मिश्रित वन अर्थात विभिन्न प्रकार के पेड़-पौधों से आच्छादित वन क्षेत्र । उत्तराखंड के पर्यावरण को सर्वाधिक नुकशान यदि किसी ने किया है तो वह है चीड़ । यह एक ऐसा विष वृक्ष है जो अपने आसपास किसी दूसरी वनस्पति को पनपने ही नही देता , यदि कोई हो भी तो उसे सूखा देता है ,भूमि के सम्पूर्ण जल (आद्रता )को खुद पी लेता है गर्मियों में लगने वाली वनाग्नि का चीड़ प्रमुख वाहक है। इस जैवविविधता के शत्रु को बढ़ने से रोकना होगा यह हवाओं के झोंकों के साथ ही खुद जहाँ कहीं फैलने की क्षमता रखता है । यह हरितक्रांति की परिणति स्वरूप एक आयातित वृक्ष की प्रजाति है , इसको रोकने की कारगर योजना बनानी होगी । यदि इसे नहीं रोका गया तो उत्तराखंड के वन धीरे धीरे नष्ट होते चले जाएंगे ।
मिश्रित वनों का विस्तार पर्यावरण की रक्षा के लिए भी आवश्यक हैं । रुद्रप्रयाग जिले के कोट मल्ला गांव निवासी श्री जगत सिंह जंगली जी ने मिश्रित वन का अनूठा प्रयोगअपने गांव में विकसित किया है जिसको देखने समझने दुनियाभर के पर्यावरणविद जाते हैं । उनके प्रयास से सूखे जल स्रोतों में पानी आने लग गया है। पर्यावरणविद श्री जंगली ने वनों को स्वरोजगार से भी जोड़ा है।
चीड़ के बजाय मिश्रित वनों को प्रोत्साहित करना देवभूमि के हित मे है । आने वाले हरेले से पूर्व पोधों का चयन करते समय हमे अभी से मिश्रित वनस्पतियों का ही चयन करना चाहिए ।
राम प्रकाश पैन्यूली, सदस्य, पलायन आयोग, उत्तराखंड सरकार
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