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"मिशन मिलेट" उत्तराखंड के मोटे अनाज को मिले वरियता - विष्णु प्रसाद सेमवाल।

12-02-2023 04:14 PM

घनसाली, टिहरी:- 

    मोटे अनाज मिशन मिलेट को मोदी सरकार के द्वारा प्राथमिकता दी जा रही है और बजट में भी वित्तमंत्री जी के द्वारा मोटे अनाज के उत्पादन को वरीयता दी है जिसमें लगता है कि जिन क्षेत्रों में मोटे अनाज की अच्छी उपज होती है वहां के किसानों के लिए स्वरोजगार और आत्मनिर्भरता का मार्ग प्रशस्त हो सकता है उत्तराखंड भी पौष्टिक आहार मोटे अनाज का बहुत अच्छा उत्पादक था लालरंग की, साठी धान, जो बासमती की तरह अत्यधिक सुगन्धित और ताकतवर गुणवत्ता युक्त था और इसी प्रकार 18प्रकार का धान उत्पादन होता उसमें महत्वपूर्ण सतनाजा सप्तधान्य, साठी, चिणा, कौणी उदड, कोदा झंगोरा चौलाई, आदि के अलावा भट (काले सफ़ेद और खाकी ) तुअर दाल गहत गेंहू जौ और उवा जौ उत्पादन फसल रही जिसमें कुछ फसल जैसे लाल साठी, चिणा काले भट और उवा जौ अब दुर्लभ फसल हो गई है शेष फसल की उत्पादन क्षमता दिन प्रति घटती जा रही है इसके अधिक उत्पादन के लिए केन्द्र सरकार से निम्नलिखित समस्या समाधान हेतु आग्रह करना है कि - 

1. जैसा कि सर्व विदित है कि पलायन के कारण लगभग 60/70% जमीन काश्तकारी के अभाव में बंजर प्रायः हो जाने के कारण जंगली जानवरों का रैन बसेरा हो गया है फलस्वरूप जो काश्तकार खेती करते हैं उनकी फसल बन्दरों और सुअर,भालू के द्वारा नष्ट हो जाती है इसकी संरक्षण संबर्धन और उत्पादन के लिए सरकार चौकीदारी व्यवस्था मनरेगा अथवा अन्य योजनाओं में सुनिश्चित करें या टिहरी बांध के लिए जितना भूभाग और ग्रामीण क्षेत्र विस्थापित हुए उस क्षेत्र के सम्पूर्ण बन्दर और सुअर आवासीय क्षेत्रों में चले गए जिससे पूर्व के और विस्थापित क्षेत्र के बन्दरोंका इतना सघनीकरण और आवाधि घनत्व हो गया है यदि बिद्युत उत्पादक कम्पनी, केंद्र सरकार तथा प्रदेश सरकार मिलकर इस सम्बन्ध में आर्थिक सहायता बिकास खण्ड स्तर पर मोटा अनाज कृषि उत्पादन में सहयोग करें

2. स्थानीय काश्तकार परम्परागत तरीके से बीज और कृषि उत्पादन का कार्य करते हैं जो शुद्ध देसी खाद गौबर का का ही उपयोग होता है किन्तु कभी कभी, चौलाई, दलहन तिलहनी फसल पर बहुत बड़ी मात्रा में संक्रमण रोग हो जाने पर बचाव की जैविक पद्धति हमारे किसानों बिधिवत जानकारी का अभाव होने के कारण पूरी उत्पादित फसल संक्रमित रोग से नष्ट प्रायः हो जाती है इसलिए काश्तकार चौलाई, दलहन और तिलहन की फसल बुआई से पहले संशकित रहता है इस हेतु कृषि विभाग को इस संक्रमण के प्रति किसानों को आश्वस्त और जानकारी जनजागरण अभियान चलाने की व्यवस्था की जानी चाहिए

3. उत्तराखंड में मातृशक्ति को कृषि क्षेत्र की रीढ़ मानी जाती रही है पुरुष फसल चक्र, बीजारोपण के प्रकार बिषयक, अथवा निराई गुड़ाई के संदर्भ में कोई लेना देना नहीं रहता है उसका सम्पूर्ण जानकारी मातृशक्ति के पास रहती है पुरुष मात्र हल चलाने के अलावा अन्य किसी भूमिका में नजर नहीं आता है आज कष्टप्रद बिषय यह है कि कृषि की महत्वपूर्ण में रहने वाली महिलाओं की अभिरुचि किसानी करने के प्रति पूर्णतः उदासीन अवस्था में हो गई है इसके शायद मुख्य कारण है कि

1.अधिक भूमि बंजर होने तथा पारिवारिक संख्या दिन प्रतिदिन घटने के कारण महंगा चौकीदार व्यवस्था हो गये हैं 

2. कोई भी परिवार बैल ,गाय को नहीं पाल रहा गांव में जिस परिवार में बैलजोड़ी है वह एक डेढ़ हजार रुपए एक दिन की देता है उसका व्यय फसल उत्पादन से दस गुना अधिक होता है

3. सरकार द्वारा सस्ता एवं फ्री राशन की उपलब्धता

4. जंगली जानवरों का बहुत आतंक 

    शिक्षा के उन्नतिकरण से पढ़े लिखे नौजवान एवं बहुएं कोई कृषि कार्य को गरिमा के प्रतिकूल समझते हैं इसलिए कृषि कार्य के लिए कृषि प्रशिक्षण तथा बिद्यालय संचालन किये जाने तथा मोटे अनाज के गुण धर्म तथा बैज्ञानिक पद्धति का प्रशिक्षण दिया जाय पुनः मोदी सरकार का हार्दिक धन्यवाद ग्रामोदय सहकारी समिति लि भिगुन, टिहरी गढ़वाल और उत्तरांचल उत्थान परिषद की ओर से करता हूं कि उत्तराखंड में जिस उपेक्षित भाव से देखा जाता था आज हमारे उत्पादों की विश्व स्तरीय मोटा अनाज की पहचान बन चुकी है मात्र त्रिगुण समस्या का समाधान किया जाना आवश्यक होगा सरकार को काश्तकारों की जो सबसे बड़ी चुनौती जंगली जानवरों, बन्दरों और सुरक्षा वाल की योजना किसानों को बनानी चाहिए

2. किसानों को" सरकार किसानों के द्वार"के वरदान को मानते हुए अपनी बंजर भूमि में मोटे अनाज का उत्पादन घरवासी , एवं प्रवासी मिलकर स्वावलंबी उत्तराखंड बनाने में अपना योगदान और अर्थोपार्जन करें

3. कृषि विभाग, उद्यान बिभाग, एवं कृषि विश्वविद्यालयों को मिशन मोड पर सहकारी समितियों के साथ काश्तकारों को जनजागृति अभियान चलायें।

    आलेख बिष्णु प्रसाद सेमवाल अध्यक्ष ग्रामोदय सहकारी समिति लि.


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