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रामप्रकाश पैन्यूली:- अच्छी घास के लोभ में जंगलों में आग लगाना नितांत आत्मघाती कदम है. प्रतिवर्ष अनेक वनस्पतियों के नवान्कुर जल कर नष्ट होते हैं, जीव - जंतु जल कर मर जाते हैं, जैव विविधता समाप्त हो जाती है,और सबसे बड़ा प्रत्यक्ष दिखने वाला नुकसान तो यह है कि मिट्टी और पत्थरों की आपसी पकड़ कमजोर हो जाती है और वृक्ष विहीन पहाड़ भू - धंसाव के कारण आपदा का कारण बनते हैं.
जखाणा, तोली और बिशन गावों के ऊपर गंजे पहाड़ हैं उनमें यदि पेड़ नहीं पनपेंगे तो वे एक दिन गांव के लिए संकट का कारण बनेंगे.
छोटे से लोभ के लिए बड़ा नुकसान करना बिल्कुल भी उचित नहीं है. इसे हर हाल में हर ग्रामवासी द्वारा रोका जाना आवश्यक है. आश्चर्य का एक पहलू यह भी देखने में आता है कि घास के लिए आग वह लगाते हैं जिनके पास पशु हैं ही नहीं.
तिनगढ़ से जखाना के बीच गत वर्ष दरकते पहाड़ से कुछ लोग पत्थर निकाल रहे थे, खड़े, टूटते पहाड़ों से इस प्रकार पत्थर निकालना भी आपदा को स्वयं आमंत्रित करना जैसा है.
इसे रोकना आवश्यक है. यदि कोई जंगल में आग लगाता दिखे तो उसकी फोटो जंगलात को कार्यवाही हेतु निःसंकोच भेजें.
प्रकृति माता की रक्षा हेतु यह कठोर कदम उठाना ही होगा.
नंगे पहाड़ों पर बांज, देवदार के वृक्ष लगाने होंगे, चीड़ के बजाय चौड़ी पत्ती वाले मिश्रित वनस्पतियों की पौधों को लगाना होगा.
वर्षात से पूर्व वन चौकी बिनक खाल में अपने गावों के लिए पौधों की मांग कर लीजिए और 15 जुलाई के बाद हरेला पर्व पर अपने अपने गांव के ऊपर क्रमशः वृक्षारोपण करें.
इस निवेदन को अपने अपने गांव के ग्रुप्स में भी साझा करें.
भिगुन में गत वर्ष भी कमेडा के ऊपर वृक्षारोपण किया गया था इस वर्ष भी बड़े स्तर पर होगा.
राम प्रकाश पैन्यूली, पालयन निवारण आयोग सदस्य उत्तराखंड सरकार
ग्राम - भिगुन
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