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सबूत होता तो भी जरूरी नहीं कि जिला प्रशासन आंदोलनकारी मान लेता- विक्रम बिष्ट

29-07-2022 04:36 AM

    दो शर्तिया चीजें हैं, एक जिला कार्यालय का संबंधित बाबू, दूसरा एल.आई. यू. में कोई पहुंच। फिर किसी भी भगत सिंह के नाम पर चयन हो जाएगा। इनसे ऊपर एक और सशक्त चीज है विधायक और मंत्री की सिफारिश। सरकार ने ख्याति प्राप्त आंदोलनकारियों को लेकर जिलाधिकारी की अध्यक्षता में समितियों का गठन किया था। दो बार मुझे भी सदस्य बनाया गया। तब से ख्याति प्राप्त की मेरी समझ ही गड़बड़ा गई है।

    एकदिन- सलाहकार समिति की बैठक से पूर्व दो - तीन ख्याति प्राप्त आंदोलनकारियों की चर्चा सुनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। उनकी बातों का चंद शब्दों में निष्कर्ष- दांत लगाने और चश्मे के लिए भी सरकार पैसा दे रही है। सोचो वे कितने खतरनाक किस्म के आंदोलनकारी रहे होंगे। 1994 में दांत टूटे और आंखें कमजोर हुईं, लेकिन उत्तराखण्ड बनने के 19-20 साल होने के बाद भी उनके दांत नहीं लगाये जा सके और न नजर के चश्मे बन पाये ? अपने दांत और आंखें अभी भी सही सलामत हैं, इसलिये प्रशासन मानता है कि ख्याति प्राप्त तो हो लेकिन उत्तराखण्ड आंदोलन में योगदान नहीं है। उत्तराखण्ड में मंत्री, विधायक हों तो प्रमाणपत्रधारी आंदोलनकारी स्वतःसिद्ध है। उन्हें आंदोलनकारी शिरोमणि मानने,कहने और जयकारे लगाने वालों की तादाद भी खासी बड़ी होती है।

    बहरहाल, आंदोलनकारी घोषित होने के इच्छुक उम्मीदवार इन गुणों से धारित हों तो उपयोग में ला सकते हैं। अधिक से अधिक लोगों को बताया जाए ताकि पुण्य का बंंटवारा हो, लेकिन सतर्कता के साथ।


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