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डॉ विपिन शर्मा की कलम से:-
स्वामी विवेकानंद भारतीय जीवन मूल्यों के साक्षात प्रतीक हैं। भारतीय आधुनिकता जिन मेंधावी प्रतिभाओं की वजह से अपना मुकम्मल आकार ग्रहण करती है, राजा राममोहन राय, ईश्वर चंद्र विद्यासागर, जस्टिस रानाडे यह नाम नहीं बल्कि विचार हैं। भारत के सतत विचार परंपरा का आईना। औपनिवेशिक शासन तंत्र ने जो भारतीय मेधा को पूर्वाग्रह के साथ नकारा था यह लोग उसका जवाब थे कि ,भारतीय विचार परंपरा अपने को वक्त के साथ रिवाइज कर सकती है। उस विचार पर जो कुछ समय के लिए थोड़ी सी धुंध आ गई थी उन्होंने उसे साफ किया।
स्वामी विवेकानंद का भारतीय जनमानस के प्रति और भारत के प्रति अवदान इसलिए भी ज्यादा हो जाता है कि उन्होंने आधुनिकता, मनुष्यता और वैज्ञानिकता को वेदांत और उपनिषद के संदर्भों में गहराई से विश्लेषित किया। वेद और उपनिषद को विज्ञान के आलोक में और ज्यादा तार्किकता और समकाल के संदर्भ में साफगोई के साथ स्पष्ट किया। भारतीय पुनर्जागरण जो आजादी के पहले की वैचारिक अंगड़ाई और खुराक है स्वामी विवेकानंद के वैचारिक अवदान के बिना अधूरा है। स्वामी विवेकानंद ना केवल अतीत के गौरव का गान करते हैं बल्कि, उस रुग्णता पर भी कठोर प्रहार करते हैं जिसने इस देश को कमजोर किया। आज जब हम दलित विमर्श, जाति व्यवस्था के सवाल को और अस्मिताओं के उभार को सबाल्टर्न चश्मे से देखते हैं। यह चश्मा तब तक बनावटी है जब तक हम स्वामी विवेकानंद के अद्वैत वेदांत पर दिए गए व्याख्यान और अमेरिका प्रवास के दौरान वहां के समतामूलक समाज और भारत के जाति व्यवस्था में विभक्त समाज पर उनकी कड़ी प्रतिक्रिया को नहीं समझते। वह बार-बार कहते हैं कि हम तब तक स्वाधीन हो ही नहीं सकते, जब तक हम अन्य को स्वाधीन नहीं करते। अन्य की मुक्ति में ही स्वयं की मुक्ति है। उन्हें अमेरिका की प्रगतिशीलता और समता बेहद लुभाती है।
स्वामी विवेकानंद एक विचार हैं, जहां आज देश खड़ा है स्वामी विवेकानंद के बिना अधूरा है। यही तो वह व्यक्ति हैं, जो कठोपनिषद, मंडुक्य उपनिषद से संदर्भ जुटाकर आजादी और स्वाधीनता का देशज भाषा तैयार करता है। तरुणाई ने जो आजादी के आंदोलन में हंसकर अपने प्राण न्योछावर किए वह शक्ति, वह प्रेरणा आपको पता है कहां से आती है? वह देराजियो,स्वामी विवेकानंद, से ही रास्ता पाती है। गरीबी भूख, असमानता से लड़ने की शक्ति स्वामी विवेकानंद जैसे मनुष्यों ने ही युवाओं को दी। हमें समझना होगा अपने तुच्छ स्वार्थों के लिए हम स्वामी विवेकानंद जो व्यक्ति नहीं विचार है उसका अपमान नहीं कर सकते।
क्योंकि स्वामी विवेकानंद इस देश की शाश्वत परंपरा का प्रतीक हैं, जो लोकहित हेतु अपनी हड्डी गलाती है।हिमालय में कठोर तप कर कुछ लोक सापेक्ष मूल्यों का संधान करती है। फिर जनता से सघन संवाद की संभावना तलाश ती है। बिना संवाद के समाज मर जाएगा। विवेकानंद जैसी तार्किकता, जोश, उम्मीद, आध्यात्मिकता फिर कहां से हो खोजोगे।
विवेकानंद को समग्रता से समझना हो तो आप देख सकते हैं विवेकानंद साहित्य संचयन। जो प्रकाशित किया है रामकृष्ण मिशन ने। इंटरमीडिएट की परीक्षा के बाद जो ग्रीष्म की छुट्टियों का दौर शुरू होता था, उस समय में दोपहर थोड़ा प्रतीक्षा में टंगी होती थी , तब स्वामी विवेकानंद रामकृष्ण मिशन द्वारा प्रकाशित इन किताबों के माध्यम से हमारे जीवन में प्रवेश कर गए थे, उसी कालखंड में जवाहरलाल नेहरू की विश्व इतिहास की झलक के दोनों खंड पढ़े गए। यह हो सकता है कि उस समय उनके और ज्यादा गहरे मंतव्य समझ में ना आते हों, लेकिन एक रास्ता तो मिलता ही था अपने देश, इतिहास और सनातन धर्म के विस्तार को समझने का। स्वामी विवेकानंद का ओज और सहज तरीके से लोगों से जुड़ जाने की कला उनके लिखे में भी प्रकट होती थी। जब वह कहते हैं कि उपासना करने से ज्यादा मैं युवा वर्ग से कहूंगा कि वह फुटबॉल के मैदान में जा एं और बलिष्ठ बनें। क्योंकि भक्ति और इस पर दुर्बल लोगों के लिए नहीं है।
इसी बात को मैं पराधीनता के संदर्भ में भी कहते हैं, जब तक आप अपने देश के बहुसंख्यक वर्ग को आजाद नहीं कर देते, तब तक आप अन्य से आजादी की मांग नहीं कर सकते। वेदांत मनुष्य को मुक्त करने की अवधारणा है इस बात पर उनका गहरा आग्रह था। मस्तिष्क को को जाति धर्म, क्षेत्र, देश मैं विभक्त करने के वह विरुद्ध रहे।
हमें भारतीय पुनर्जागरण को समझने के लिए विवेकानंद को और व्यापक संदर्भ में समझना होगा, हर विश्वविद्यालय में और शिक्षण संस्थानों में था समग्र विवेकानंद साहित्य पुस्तकालय में उपलब्ध होना चाहिए।
लेखक- विपिन शर्मा
युवा साहित्यकार अध्येता
मनुष्यता का पक्ष ,नई सदी का सिनेमा, आजादी कीउत्तर गाथा, तुम जिंदगी का नमक हो आदि किताबें प्रकाशित।
एवं भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान शिमला में रिसर्च एसोसिएट के रूप में चयनित।
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