आया फूल देई का बसंत बहार, बुला रहे है तुमको पैतृक घर और द्वार- विष्णु प्रसाद सेमवाल
14-03-2024 01:00 PM
विष्णु प्रसाद सेमवाल की कलम से:-
आया फूल देई का बसंत बहार।
ऊषाकाल में सजते द्वार ।।
फ्योंलि ,आरु ,बुरांश की पंखुड़ियां
नन्नी , ।
मुन्नी की हाथों फूलों की डालियां
नो दिन भोरसुबेर को उठ जाती ।
भंवरों के गुंञ्जन में स्वर मिलजुल कर गाती ।।
देहळी, खिड़की ,सज्जी तिवारी ।
बंसन्तराज की मकरन्द सवारी ।।
पांच घरों की बस एक ही कन्या ।
द्वार कोशोभित करते फुलदेई को करते धन्य ।।
घुघुतियां भी म्योलडि सुनाती है अपनी धुन ।
छोड़ दिये वह देहलि तिवारियां
गांव , गलियां खलिहान सुन्न ।।
फुलदेई पूजन घ्वग्यदेवता की जात ।
जंगल में मिलजुल कर बनाते पूजन का भात ।।
पुकार रही वह बसन्त बहार ।
फूलों की डाली गांव पनघट और धार
बुला रहे है तुमको पैतृक घर और द्वार ।
लौट आओ ! लौट आओ !! गांव
आ गई है फुलदेई त्योहार ।।
बिष्णु प्रसाद सेमवाल भृगु