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पंच केदारो में से एक है तृतीय केदार तुंग नाथ, तीर्थाटन के साथ ही पर्यटन का अद्भुत स्थल - ओंकार बहुगुणा

28-06-2023 10:04 PM


आज तक के यायावर वरिष्ठ पत्रकार ओंकार बहुगुणा की फेसबुक वाल से:- 

यूं तो देव भूमि में कंकड़ कंकड़ में शंकर की उपस्थिति महसूस की जा सकती है किंतु आदि गुरु शंकराचार्य जी द्वारा स्थापित बिभन्न मठ मंदिरों की स्थापना और सोच को मूर्त रूप में देखकर अदभुत अतीत पर आश्चर्य होने लगता है आखिर जहा मनुष्य का पंहुचना ही दुरूह है वहा केसे अतीत के उस दौर में मंदिरों का निर्माण किया गया होगा पत्थरों को तरासा गया होगा वास्तव में ये देव संयोग कहा जाय तो अतिसंयोक्ति नही होगी ।


आज एक ऐसी ही एक दिव्य कृति का वर्णन करने का मन हुआ हालांकि आप पाठको (फेस बुक मित्रो) को पढ़ने में आलस आ सकता है बोरिंग हो सकती है किंतु इसके दो फायदे है कि चितेरे सुधि जनों के लिए लाभ कारी और मनोरंजन हेतु उपयोगी होगा दूसरा ढलती उम्र में बुढ़ापे के दिनों में मेमोरी के रूप में स्वयं के लिए अतीत के याद के लिए लाभ कारी हो सकता है । 

जून माह 2023 के अंतिम सप्ताह में घूमने का मन हुआ तो बड़े भाई श्रीयुत संजीव बहुगुणा जी के आदेशानुपालन में सपरिवार घनसाली के लिए रवाना हुए तदोपरांत चोपता और फिर तुंगनाथ ....चोपता के बारे में ब्रिटिश कमिश्नर एटकिन्सन ने कहा था कि जिस व्यक्ति ने अपने जीवनकाल में चोपता नहीं देखा उसका इस पृथ्वी पर जन्म लेना व्यर्थ है। एटकिन्सन की यह उक्ति भले ही कुछ लोगों को अतिरेकपूर्ण लगे लेकिन यहां का सौन्दर्य अद्भुत है, इसमें किसी को संदेह नहीं हो सकता। किसी पर्यटक के लिए यह यात्रा किसी रोमांच से कम नहीं है।

तुंग नाथ वास्तव में 3680 मीटर उतुंग शिखर पर विराजमान पंच केदारो में एक तृतीय केदार है तुंगनाथ जाने के लिए चोपता जिसे स्वीटजरलैंड भी कहा जाए तो गलत नहीं होगा चारों और मखमली बुग्याल और बुग्यलो में चुगती गाय चारों ओर फैला सन्नाटा नेटवर्क ना होने के कारण मानसिक शांति कुल मिलाकर के हर जगह नयनाभिराम दृश्य यही से चार किमी की पैदल यात्रा के बाद करीब तेरह हज़ार फुट की ऊंचाई पर तुंगनाथ मंदिर है। चोपता से तुंगनाथ तक का पैदल मार्ग बुग्यालों की सुंदर दुनिया से साक्षात्कार कराता है। इस अदभुत दृश्य को देखकर मेरा मन भी अतीत की यादों में खो गया क्यों कि मेघ नीचे और हम मेघों (बादलों) से ऊपर बढ़ते चले जा रहे थे लेकिन मेघों को देख कर ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे एक मां के बेटे जिद्द करते हुए उसके पीछे दौड़े चले आ रहे हो चूंकि में विज्ञान विषय से स्नातक होने के साथ ही रुचि के आधार पर परा स्नातक संस्कृत साहित्य से हु तो बरबस कालीदास जी द्वारा रचित मेघदूतम की याद बरबस आ गई जिसमे वर्णन था की  

आषाढस्य प्रथमदिवसे मेघमाश्लिष्टसानु

वप्रक्रीडापरिणतगजप्रेक्षणीयं ददर्श।।

आषाढ़ महिने के पहले दिन उसने देखा कि पहाड़ की चोटी पर बादल इस प्रकार से सटे हुए [पहाड़ का आलिंगन करते हुए ] क्रीडा कर रहे हैं

जैसे कोई हाथी टीले से मिट्टी उखाड़ने [ढूसा मारने] का खेल करता है ।..........

करीब 1000 साल पहले बने प्राचीन शिव मंदिर से डेढ़ किमी की ऊंचाई चढ़ने के बाद चौदह हज़ार फीट पर चंद्रशिला नामक चोटी है। जहां ठीक सामने छू लेने योग्य हिमालय का विराट रूप किसी को भी हतप्रभ कर सकता है।

काबिले गौर है की इस अदभुत यात्रा में मेरा छोटा पुत्र शोर्य का अदम्य साहस भी देखते ही बनता था कि हमारी बराबरी करते हुए तुंगनाथ की चढ़ाई और फिर उसके बाद चंद्र शिला की ओर बढ़ना हमारे लिए किसी कोतूहल से कम नही था एक रोचक प्रसंग ये भी रहा कि हमारा टफी (पालतू श्वान) भी इस चढ़ाई पर बढ़ता गया और चंद्र शिला तक पंहूच गया।


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