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लोकेन्द्र जोशी की कलम से:- उत्तराखंड सरकार के द्वारा- 07अक्टूबर को दूसरे "गढ़ भोज दिवस" के रूप में मनाया गया। सरकार का उद्देश्य,गढ़ भोज को उत्सव रूप में मनाने के पीछे हमारे स्थानीय उत्पादों में छुपे औषधीय गुणों की उपयोगिता के साथ संरक्षण करना है।
गढ़ भोज से जुड़ा एक प्रमुख नाम श्री परमानंद जोशी जी का है। जो कि बिकास खण्ड भिलंगना, जनपद- टिहरी गढ़वाल के ग्राम-चानी, पट्टी-बासर, के मूल निवासी हैं। श्री जोशी बाल्य काल में घर से रोजगार लिए गए ,और युवा अवस्था में होटल में जर्मन में रहे। जंहा उन्होंने होटल मे नौकरी के चलते अपने गढ़वाली भोजन को परोसा और खूब नाम कमाया।
अस्सी के दसक में उत्तराखंड राज्य आंदोलन अपने चरम पर था! और भाई परमा नंद जोशी जर्मन से वापस आकर बडोनी जी के नेतृत्त्व में हम लोगों के साथ उत्तराखण्ड राज्य आंदोलन में जुड़ समर्पित हो गए!
वर्ष- 1990 के आस पास श्री जोशी तत्कालीन समय में गढ़वाल विकास निगम के निदेशक उत्तर प्रदेश समय के वरिष्ठ एवं सम्मानित अधिकारी श्री आर.एस.टोलिया से मुलाकात की टोलिया जी उनसे से प्रभावित होकर उनको द्रोण होटल परिसर में "गढ़ भोज" कैंटीन चलाने की अनुमति दे दी। जहाँ पर स्थानीय पकवान लोगों को खूब भाये।
खाद्य सामग्री बाजार में उपलब्ध न होने से उन्हे भारी दिक्कतें आई, व पहाड़ से खाद्य समाग्री देहरादून पहुंचना महंगा पड़ा।जिस कारण, कहीं से कोई सहयोग न मिलने पर उन्हे "गढ़ भोज " की वह कैंटीन बन्द करनी पड़ी।और वह गाँव वापस आ गए।
किन्तु उनमें गढ़ भोज को विख्यात करने की इतनी सनक रही कि, उसके बावजूद भी, वे स्थानीय मेले थौलौं में गढ़ भोज चलाते और वहाँ झंगोरा की खीर सहित कौणी काफली, मंडुवे की रोटी, फाणा, पटुङ्गि सहित कई स्थानीय ब्यंजनों से लोगों को रुझाने का काम करते। इसके साथ ही स्थानीय उत्पादों में बुरांस आदि का जूस, धूप, अगर बत्ती आदि भी बनाते। किन्तु फिर फिर वही अटक जाते! उनके उत्पादन लागत अधिक और उपयुक्त बाजार न मिलने से वह बहुत आर्थिक बोझ में दब गए।
भाई जोशी जी बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। उनके अंदर अच्छे रंग कर्मी, एक अच्छे साहित्यकार व एक अच्छा गायक वाली प्रतिभा भी थी। जिसका वह समय समय पर उपयोग में लाते। उनके द्वारा अपने सहयोगि गोविंद बडोनी,स्व.जगदम्बा कंस्वाल,स्व.त्रेपन सिंह चौहान के साथ मिल कर राज्य आंदोलन के हित में ओजस्वी कैसेट भी निकाली गयी,उनका एक गीत--
"चूसी खून पहाड़ कू, लुटली घर बाण्,
सियां रया हम,अब नि हमन लुटेण् ,अब नी हमुन् लुटेण्"! -- आंदोलनकारियों के बीच में बहुत लोक प्रिय रहा।
उनके द्वारा निकाली गयी कैसेट के जन गीत पूरे पहाड़ मे आंदोलन के लिए लोगों को उद्वेलित करने का काम करते थे ! यह राज्य आंदोलन का वह कठिन दौर था, जब आम जन मानस को राज्य गठन होने का विश्वास नहीं था! क्योंकि उनके नेता तब राज्य के प्रबल विरोधी थे! फिर भी भाई परमानंद जोशी अपनी जमा पूंजी पूरी खत्म करके भी राज्य गठन तक, सच्चे सिपाही की भाँति चुपचाप लगे रहते! किंतु क्या करते और क्या न करते वाली स्थिति ने उन्हे झकझोर कर रख दिया!
इंद्रमणी बडोनी कला एवं साहित्यि मंच की ओर से हम राज्य सरकार से मांग करते हैं कि, भाई परमानंद जोशी एवं उनके जैसे अनेकों गुमनाम राज्य आंदोलन संघर्षी, समाज हित के सच्चे उद्देश्यों के लिए समर्पित सिपाहियों का चिन्हीकरण कर "गढ़ भोज" जैसे अन्य महत्वपूर्ण अवसरों पर उन्हे याद किया जाय।
"गढ़ भोज दिवस" पर इंद्रमणि बडोनी कला एवं साहित्य मंच बड़े भाई श्री परमानंद जोशी जी को हृदय की गहराइयों से स्मरण करते हुए विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करता है।
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