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वास्तव में क्या इस समय भंयकर बेरोजगारी और गरीबी हो गई है:- विष्णु प्रसाद सेमवाल

29-05-2022 08:35 PM

संपादकीय

कभी कभी मन में एक प्रश्न खड़ा होता है कि वास्तव में क्या इस समय भंयकर बेरोजगारी और गरीबी हो गई है क्योंकि पहले हर विभागों में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों के लिए इन्टरव्यू (साक्षात्कार) हुआ करते थे शिक्षा विभाग , सिंचाई विभाग लो,नि बि ,जलनिगम ,जलसंस्थान और बिद्युत बितरण के अलावा दैनिक मजदूरी में भी हजारों लोगों को ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार मिलता था गांव में सभी उम्र के लोगों के दर्शन गांव में हो जाते थे आज सरकारी बिभागों में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों की भर्तियां पूर्ण रूप से साक्षात्कार नाम ही अब सुनने को ही दुर्लभ जैसा हो गया बेलदार , चौकीदार ,गैंकवाले वर्कचार्ज वाले ,मस्टरोल वाले और सीजन। वाले अनेक नामों की सरकारी फाइले अब कालातीत हो गई है और यही स्थिति निर्माण क्षेत्र के मजदूरों में भी हो गई है पहले परिवारों में 90%श्रमिक ब्यक्ति अवश्य होते थे सारा काम घरेलू मज़दूरों पर निर्भर करता था शादी ब्याह सब निशुल्क हुआ करते थे सामुदायिक सहभागिता से कार्य संपन्न होते आज सरकारी निर्माण कार्य मशीनों के द्वारा घरेलू काम नैपाली बिहारी , शादी ब्याह भी अपरिचित रसोइयों के कर-कमलों से बैंण्डबाजा भी अपने नहीं अपना कुछ भी नहीं जो भी है बाहर से है गांव में एक भी मजदूर बिरादरी का ब्यक्ति कोई नहीं जो भी है मालिक और मालकिन की हैसियत से है जिनके छोटे से छोटे कार्य नैपाली और बिहारी भाई के रहमो-करम पर निर्भर करता है बैल अपने नहीं ,हली (हल लगाने वाला) भी गांव में नहीं है निराई , गुड़ाई बुआई और कटाई वाली मातृशक्ति भी खेती बाड़ी में काम नहीं कर रही है बच्चों को दूध डेयरी वाली थैलियां आ रही है सब्जी नजीबाबाद के ट्रक ला रहे हैं राशन डीलर ला रहा है हाजरी प्रधान जी लगा रहे हैं ,गैस सिलेंडर हर हफ्ते घर में आ रहे अब जब कोई किसी पर निर्भर नहीं पहले एक के बिना दूसरे का काम नहीं चलता था।

आज पड़ोसी आदमी नहीं तो चलेगा यदि पड़ोस में बैंक है तो आदमी बिहार और नैपाल से आ जाता है अब प्रश्न फिर भी ज्यों का त्यों है कि गरीबी और बेरोजगारी घटी है कि बढ़ी है बढ़ी है तो आदमी क्यों नहीं मिल रहे और घटी है तो गांव खाली क्यों हो रहे 

       कवि बिष्णु प्रसाद सेमवाल भृगु की कलम से

 अध्यक्ष ग्रामोदय सहकारी समिति लि भिगुन


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