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एक सरकारी अध्यापक ऐसा, जहां जाता वहां की छात्र संख्या हो जाती है दोगुनी।

07-12-2021 06:37 PM

उत्तरकाशी: 

- दूर दराज के बच्चों के लिए खुद ही लगा दी गाड़ी।

- स्कूल में सुविधाओं के लिए सरकारी बजट के इंतजार के बजाय खुद के वेतन से करते हैं स्कूल का कायाकल्प।

-एक ऐसा सरकारी अध्यापक जो जिस भी स्कूल में भी जाता है वहां के स्कूल में छात्रों की संख्या कुछ ही दिन में दोगुनी हो जाती है।

उत्तरकाशी-  जिले के पुरोला के पास राजकीय आदर्श उच्च प्राथमिक विद्यालय  पुजेली खलाड़ी में कार्यरत चन्द्र भूषण बिजल्वाण की तैनाती जब इस विद्यालय में हुई तब यहां बच्चों की संख्या 30 थी जो अब बढ़कर 62 तक पहुंच गई है। बिजल्वाण की तैनाती जब इस विद्यालय में हुई तो स्कूल भवन की हालत काफी जर्जर थी उन्होंने सरकार की ओर ताकने के बजाए खुद ही स्कूल की मरम्मत कर उसमें साफ सफाई व पौधारोपण का काम किया। उनके पिछले स्कूल में पढ़ाई के रिकार्ड को देखते हुए यहां छात्र संख्या खुद ब खुद बढ़ने लगी। कुछ दूर दराज के बच्चों ने भी यहां दाखिला ले लिया, जब चन्द्र भूषण को पता चला कि ये छोटे बच्चे मीलों से पैदल चलकर स्कूल आते हैं  जिससे कई बार उन्हें लेट हो जाया करती थी। बच्चों के अभिभावकों की माली हालत भी इतनी अच्छी नहीं थी कि वे अपने बच्चों के लिए परिवहन की व्यवस्था कर सके तो उन्होंने इनके लिए 15 हजार रुपए महिने पर टैक्सी की व्यवस्था कर दी, जिसे वे हर माह बाकायदा अपने वेतन से चुकाते हैं। स्कूल की साज सज्जा के लिए उन्होंने स्थानीय कलाकार से स्कूलों की दिवारों पर प्रेरणादायक चित्र बनवाए।

     वे जहां भी रहे उनके छात्रों ने बाल विज्ञान व खेलों के प्रतिष्ठित मंचों पर राज्य और राष्ट्रीय स्तर तक प्रतिभाग किया। चन्द्र भूषण ने अपने पुरोला स्थिति आवास पर एक  बड़ा हाल आरक्षित किया हुआ है जिसमें वे स्कूल से छुट्टी के बाद गरीब बच्चों को निःशुल्क ट्यूशन देते हैं। उनके डाक्टर और इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने वाले बेटी और बेटा जब भी अवकाश पर घर आते हैं तो वे भी अपने पिता के साथ बच्चों को ट्यूशन देने में जुट जाते हैं। सामाजिक और सांस्कृतिक सरोकारों से जुड़े बिजल्वाण बेहतरीन फोटोग्राफर भी हैं, जिनकी रंवाई की फ़ोटो प्रदर्शनी लगती रहती हैं, जिसमें दर्शकों को रवांई की समृद्ध सामाजिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक विरासत की विहंगम झलक मिलती है। उनके प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में विभिन्न विषयों पर लेख भी प्रकाशित होते रहते हैं। अपने तीन दशक के कार्यकाल में वे गुरु शिष्य की समृद्ध परम्परागत को बहुत ही ईमानदारी और खुबसूरती से निभा रहे हैं।



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