उत्तराखण्ड स्थापना दिवस पर घनसाली में उबाल — बेटियों की मौत पर उग्र हुआ आंदोलन, पूर्व विधायक समेत कई हिरासत में
09-11-2025 03:36 PM
घनसाली, टिहरी गढ़वाल:-
राज्य स्थापना दिवस की रजत जयंती के मौके पर जहां पूरा उत्तराखंड उत्सव मना रहा है, वहीं घनसाली में जनता का गुस्सा सड़कों पर फूट पड़ा। भिलंगना क्षेत्र की बेटियां अनीशा रावत और रवीना कठैत की मौत के बाद क्षेत्र में उबाल थमने का नाम नहीं ले रहा। स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाली और प्रशासनिक लापरवाही को लेकर जनता का आक्रोश लगातार बढ़ता जा रहा है।
रविवार को आंदोलन ने नाटकीय मोड़ ले लिया, जब घनसाली स्वास्थ्य जन संघर्ष मोर्चा के विक्रम घणाता और अजय कंसवाल पिलखी में मोबाइल टावर पर चढ़ गए। दोनों ने चेतावनी दी कि जब तक क्षेत्र के अस्पतालों में डॉक्टरों की स्थायी तैनाती, एम्बुलेंस सुविधा और दवाओं की उपलब्धता सुनिश्चित नहीं की जाती, वे नीचे नहीं उतरेंगे।
इसी बीच, जिला पंचायत सदस्य अनुज शाह, पुरुषोत्तम और संजय ने प्रतीकात्मक जलसमाधि लेने की कोशिश की। मौके पर पहुंचे प्रशासनिक अधिकारियों और पुलिसकर्मियों ने काफी मशक्कत के बाद उन्हें समझाकर रोका।
वहीं दूसरी ओर, सर्वदलीय स्वास्थ्य संघर्ष समिति द्वारा घनसाली बाजार में मुख्यमंत्री और विधायक के पुतला दहन कार्यक्रम की घोषणा की गई थी, लेकिन पुलिस ने कार्यक्रम शुरू होने से पहले ही पूर्व विधायक भीम लाल आर्य, कैलाश बडोनी, जसवीर नेगी, शुरवीर लाल और प्रताप सजवाण को हिरासत में ले लिया।
गिरफ्तारी की खबर मिलते ही भीम लाल आर्य के समर्थकों ने कोतवाली परिसर में जोरदार हंगामा किया। समर्थकों का कहना है कि सरकार आंदोलन को दबाने का प्रयास कर रही है और जनता की आवाज को कुचलने की कोशिश हो रही है।
उधर, पिलखी में टावर पर चढ़े विक्रम घणाता और अजय कंसवाल प्रशासन की बार-बार की अपील के बावजूद नीचे उतरने से इंकार कर रहे हैं। स्थानीय लोग और अधिकारी मौके पर डटे हुए हैं और आंदोलनकारियों को शांतिपूर्वक नीचे लाने के प्रयास कर रहे हैं।
आंदोलनकारियों का कहना है कि जब तक घनसाली और आसपास के अस्पतालों में स्वास्थ्य सेवाओं का स्थायी समाधान नहीं होता, तब तक आंदोलन जारी रहेगा। फिलहाल क्षेत्र में भारी पुलिस बल तैनात किया गया है और स्थिति तनावपूर्ण लेकिन नियंत्रण में बताई जा रही है।
जनता का कहना है कि राज्य की रजत जयंती पर जब सरकार उपलब्धियों का बखान कर रही है, वहीं घनसाली के लोग आज भी बेहतर इलाज और डॉक्टर की आस में आंदोलन को मजबूर हैं।