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Igas bagwal uttarakhand: उत्तराखंड की इगास बग्वाल। जानिए क्यों मनाई जाती है ईगास बग्वाल ?

05-11-2022 03:49 AM

    उत्तराखण्ड की लुप्त होती दीपावली। शायद ही किसी गैर उत्तराखण्डी ने इगास के बारे में सुना होगा, दरअसल आजकल के पहाड़ी बच्चों को भी इगास का पता नहीं है कि इगास नाम का भी कोई त्यौहार है। दरअसल पहाड़ियों की असली दीपावली इगास ही है, जो दीपोत्सव के ठीक ग्यारह दिन बाद एकादशी को मनाई जाती है। दीपोत्सव के (11) दिनों बाद इस त्यौहार को मनाने के दो कारण हैं, पहला और मुख्य कारण यह है कि  भगवान श्रीराम के अयोध्या वापस आने की खबर सुदूर पहाड़ी निवासियों को ग्यारह दिन बाद मिली, और उन्होंने उस दिन को ही दीपोत्सव के रूप में हर्षोल्लास से मनाने का निश्चय किया, बाद में छोटी दीपावली से लेकर गोवर्धन पूजा तक सबको मनाया, लेकिन  ग्यारह दिन बाद की इस दीवाली (इगास) को नहीं छोड़ा।पहाड़ों में इस दीपावली को लोग दीये जलाते हैं, गौ पूजन करते हैं, अपने ईष्ट और कुलदेवी, कुलदेवता की पूजा करते हैं, नयी उड़द की दाल के पकौड़े  और गहत की दाल के स्वांले(दाल से भरी पूडी़) बनाते हैं। शाम को सूर्यास्त होते ही औजी हर घर के द्वार पर बढ़ई ढ़ोल - दमाऊ बजाते हैं, फिर लोग पूजा शुरू करते हैं, पूजा समाप्ति के बाद सब लोग ढ़ोल - दमाऊ के साथ कुलदेवी या देवता के मंदिर जाते हैं वहां पर मंडाण ( पहाडी नृत्य) नाचते हैं, चीड़ की राल वाली लकड़ी और बेल से बने भैला ( एक तरह की मशाल ) खेलते हैं। रात के बारह बजते ही सब घरों से इकट्ठा किया सतनाजा ( सात अनाज) गांव की चारों दिशाओं की सीमाओं पर रखते हैं, इस सीमा को दिशाबंधनी कहा जाता है। इस सीमा से बाहर लोग अपना घर नहीं बनाते। ये सतनाजा मां काली को भेंट होता है। 

    इगास मनाने का दूसरा कारण है गढ़वाल नरेश महिपति शाह के सेनापति वीर माधोसिंह गढवाल तिब्बत युद्ध में गढवाल की सेना का नेतृत्व कर रहे थे, गढवाल सेना युद्ध जीत चुकी थी लेकिन  माधोसिंह सेना की एक छोटी टुकड़ी मुख्य सेना से अलग होकर भटक गयी, सबने उन्हें वीरगति को प्राप्त मान लिया, लेकिन वे जब वापस आये तो सबने बड़े जोर - शोर से उनका स्वागत किया। इसलिए इस दिन को भी दीपोत्सव जैसा मनाया गया। इस युद्ध में माधोसिंह गढवाल - तिब्बत की सीमा तय कर चुके थे, जो वर्तमान में भारत- तिब्बत सीमा है। भारत के बहुत से उत्सव लुप्त हो चुके हैं, बहुत से उत्सव तेजी से पूरे भारत में फैल रहे हैं, जैसे महाराष्ट्र का गणेशोत्सव, बंगाल की दुर्गा पूजा, पूर्वांचल की छठ पूजा, पंजाब का करवाचौथ गुजरात का नवरात्रि में मनाया जाना वाल गरबा डांडिया। लेकिन  पहाड़ी इगास लुप्त होने वाले त्यौहारों की श्रेणी में है, इसका मुख्य कारण बढ़ता बाजारवाद, क्षेत्रीय लोगों की उदासीनता और पलायन है । धन्यवाद है उत्तराखण्ड  सरकार का जिसने इसे राज्य का मुख्य त्यौहार का दर्जा देकर सरकारी अवकाश की घोषणा की।


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