दीपावली पर लोकल फॉर वोकल अभियान के तहत स्वनिर्मित भैलो बना रहे हैं राधाकृष्ण मैठाणी, लोक संस्कृति को दे रहे बढ़ावा।
18-10-2025 11:02 AM
टिहरी गढ़वाल:-
देश के सबसे बड़े पर्व दीपावली की तैयारियां शुरू हो गई हैं। नगर क्षेत्र के नई टिहरी और बौराड़ी बाजार को दुल्हन की तरह सजाया गया है। इस पर दीपावली पर दुकानदारों को खूब बिक्री की उम्मीद है।
लोकल फॉर वोकल अभियान के तहत नई टिहरी हनुमान चौराह पर ठेली-फड़ व्यवसायी पीएम स्वनिधि योजना के लाभार्थी राधाकृष्ण मैठाणी भी दीपावली के लिए स्वनिर्मित भैलो बना रहे हैं। उनका लक्ष्य है कि करीब 100 भैलो तैयार करके लोगों को पारंपरिक दीपावली मनाने के लिए प्रेरित करना। मैठाणी ने बताया कि वह पहली बार बेचने के लिए भैलो बना रहे हैं। बताया कि बचपन में गांव में पुराने लोगों से भैलो बनाना सीखा है। दीपावली के मौके पर पहाड़ों में भैलो का बड़ा क्रेज होता है। भैलो खेलने के लिए गांव से बाहर नौकरी, रोजगार के लिए गए लोग भी बड़ी संख्या में गांव पहुंचते हैं। भैलो उत्तराखंड की समृद्ध लोक संस्कृति का प्रतीक है। जिसे खेलने के लिए ग्रामीण गांवों के पास सामूहिक मैदान अथवा खेतों में जमा होते हैं। जहां सभी जमकर भैलो खेलते हैं। इस दौरान वाद्य यंत्रों की थाप पर सामूहिक तांदी व अन्य लोकनृत्य भी किया जाता है। व्यापार मंडल अध्यक्ष भगवान सिंह रावत का कहना है कि सभी लोगों को स्थानीय उत्पादों को बढ़ावा देना चाहिए। खरीदारी भी ऑनलाइन की बजाए लोकल मार्केट से करनी चाहिए, ताकि सभी की आर्थिकी मजबूत हो सके।
भैलो चीड़ की लकड़ियों को चीरकर बनाया जाता है। भैलो बनाने के लिए लकड़ियों को लंबाई में चीरा जाता है। इसके बाद घास की बेलनुमा रस्सी के एक सिरे पर बांधा जाता है। दीपावली के दिन सबसे पहले भैलो की पूजा-अर्चना की जाती है। इसके बाद उसका तिलक किया जाता है। इसके बाद सभी ग्रामीण वाद्य यंत्रों के साथ गांव में जाकर भैलो खेलते हैं। अब शहरी क्षेत्रों में लोग भैलो खेलने लगे हैं। जिससे हमारी पुरानी परंपरा का संरक्षण हो रहा है।