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शारदीय नवरात्र प्रारंभ:-
आचार्य नवीन: आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से शारदीय नवरात्रि आरंभ हो जाएगी। हिंदू धर्म में नवरात्रि पर्व का विशेष महत्व होता है। इस वर्ष 26 सितंबर,सोमवार से शारदीय नवरात्रि शुरू होकर 05 अक्तूबर को विजयादशमी पर समाप्त हो जाएगी। नवरात्रि पर्व में 9 दिनों तक देवी दुर्गा के नौ अलग-अलग स्वरूपों की पूजा आराधना की जाएगी। पहले दिन कलश स्थापना करते हुए विधि-विधान से मां दुर्गा की उपासना शुरू होगी फिर अष्टमी और नवमी तिथि पर कन्या पूजन किया जाएगा। मान्यता है कि नवरात्रि पर मां दुर्गा स्वर्गलोक से पृथ्वीलोक पर अपने भक्तों को आशीर्वाद प्रदान करने के लिए आती हैं। शारदीय नवरात्रि पर देशभर में दुर्गा पूजा के लिए भव्य पंडाल लगाए जाते हैं।
शारदीय नवरात्रि पर बनेगा शुभ संयोग
पितृपक्ष की अमावस्या तिथि के खत्म होने के अगले दिन बाद ही शारदीय नवरात्रि शुरू हो जाती है। 25 सितंबर को सर्वपितृ अमावस्या के बाद 26 सितंबर को शारदीय नवरात्रि आरंभ हो गई। शारदीय नवरात्रि के पहले दिन शुभ मुहूर्त में कलश स्थापना की जाएगी। 26 सितंबर 2022 को कलश स्थापना के दिन बहुत ही शुभ मुहूर्त का संयोग बना है। इस दिन शुक्ल और ब्रह्रा योग का शुभ संयोग होगा। ज्योतिषशास्त्र में पूजा-पाठ और धार्मिक अनुष्ठान के लिए इन योग को बहुत शुभ माना जाता है। इसके अलावा अष्टमी तिथि 03 अक्तूबर को मनाई जाएगी उस दिन का भी मुहूर्त बहुत ही शुभ रहेगा।
शारदीय नवरात्रि 2022 की तिथि
प्रतिपदा तिथि की शुरूआत- 26 सितंबर 2022 को सुबह 03 बजकर 22 मिनट पर
प्रतिपदा तिथि का समापन- 27 सितंबर 2022 को सुबह 03 बजकर 09 मिनट पर
शुभ संकेत माना जाता है। यह लोगों के जीवन में सुख-समृद्धि का सूचक होता है।
कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त
वैदिक पंचांग गणना के अनुसार 26 सितंबर को देवी आराधना की पूजा और कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त सुबह 06 बजकर 11 मिनट से शुरू होकर सुबह 07 बजकर 51 मिनट तक ही रहेगा। वहीं अगर आप इस मुहूर्त में किसी कारण से कलश स्थापना न कर पाएं तो दूसरा शुभ मुहूर्त अभिजीत होगा जो सुबह 11 बजकर 49 मिनट से लेकर 12 बजकर 37 मिनट तक रहेगा।
कलश स्थापना पूजा विधि
शारदीय नवरात्रि की प्रतिपदा को सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें। पहले दिन घर के मुख्य द्वार के दोनों तरफ स्वास्तिक बनाकर मुख्य द्वार पर आम और अशोक के पत्ते का तोरण लगाएं। इसके बाद एक चौकी बिछाकर वहां पहले स्वास्तिक का चिह्न बनाएं।
मां दुर्गा ने किया था महिषासुर का वध
नवरात्रि का पर्व मनाए जाने के पीछे कई तरह की मान्यता है। एक पौराणिक मान्यता के अनुसार, महिषासुर नाम का एक दैत्य था। ब्रह्मा जी से अमर होने का वरदान पाकर वह देवताओं को सताने लगा था। महिषासुर के अत्याचार से परेशान होकर सभी देवता शिव, विष्णु और ब्रह्मा के पास गए। इसके बाद तीनों देवताओं ने आदि शक्ति का आवाहन किया। भगवान शिव और विष्णु के क्रोध व अन्य देवताओं से मुख से एक तेज प्रकट हुआ, जो नारी के रूप में बदल गया। अन्य देवताओं ने उन्हें अस्त्र-शस्त्र प्रदान किए। इसके बाद देवताओं से शक्तियां पाकर देवी दुर्गा ने महिषासुर को ललकारा। महिषासुर और देवी दुर्गा का युद्ध शुरू हुआ, जो 9 दिनों तक चला। फिर दसवें दिन मां दुर्गा ने महिषासुर का वध कर दिया। मान्यता है कि इन 9 दिनों में देवताओं ने रोज देवी की पूजा-आराधना कर उन्हें बल प्रदान किया। तब से ही नवरात्रि का पर्व मनाने की शुरुआत हुई
भगवान राम से भी जुड़ी है मान्यता
नवरात्रि की एक कथा प्रभु श्रीराम से भी जुड़ी है। कहा जाता है कि माता सीता को रावण के चंगुल से छुड़ाने और रावण पर विजय पाने के लिए श्री राम ने देवी दुर्गा का अनुष्ठान किया। ये अनुष्ठान लगातार 9 दिन तक चला। अंतिम दिन देवी ने प्रकट होकर श्रीराम को विजय का आशीर्वाद दिया। दसवें दिन श्रीराम ने रावण का वध कर दिया। प्रभु श्रीराम ने आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से नवमी तक देवी की साधना कर दसवें दिन रावण का वध किया था। तभी से हर साल नवरात्रि का पर्व मनाया जाता है।
आचार्य नवीन भट्ट, संस्थापक श्री क्षेत्रपाल पूजन सामग्री केंद्र गुमानीवाला ऋषिकेश उत्तराखंड- 9870697759
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