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आज कल उत्तराखंड के ग्रामीण इलाकों में अधिकांश क्षेत्र आग की लपटों धधक रहें हैं यह एक परम्परा सी बन गई है कि मार्च से मानसून आने तक दमघोंटू वातावरण में ग्रामीण क्षेत्र के निवासियों को रहना पड़ता है और दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति यह है कि हम देवभूमि में रहने वाले लोग यज्ञ पुराण का आयोजन करने और देश देशांतर में जिस आस्था और श्रद्धा से पूजनीय माने जाते हैं उसके बाद भी हम्हीं लोगों के साथ रहने वाले कुछ दुष्टात्मा प्रकृति और प्रवृत्ति के लोग हमारे ही बीच में रहते हैं और कुछ लोगों को उस आगजनी कुकृत्य करने वाले का पता होने के बाद भी इस लिए चुपचाप हो जाते हैं कि एक सार्वजनिक स्वार्थ यह है कि जहां आग लगती है वहां घास की पैदावार अधिक हो जाती है और हमारे पशुओं को चारा घास की परेशानी नहीं होगी ।
थोड़े समय हम घास लकड़ी वाले स्वार्थपरक तथ्य को मान भी लें तो धार्मिक दृष्टि से यह क्यों नहीं सोचते हैं कि जब जंगल में आग लगा दी जाती है तो कितने जीव जंतु चर ,अचर और अण्डज रुप में उस आग आग में आहूत हो जातें हैं गांव में जो जिन लोगों के ऊपर जंगल में लगाने का एक चस्का सा लगा रहता है मैं चुनौती देकर कहता हूं कि आग लगाने वालों की तीसरी पीढ़ी में ऐसी स्थिति होती है कि परिवार में एक सदस्य निसंतान हो जाता है यदि कोई पशु पालक है तो प्रथम उसकी धन वैभव हानियां होती है और उसके बाद जन हानि होनी शुरू हो जाती है यह कोई कपोल कल्पना नहीं बल्कि गांव में जिन लोगों को पता होगा कि अमुक व्यक्ति ने जंगल में आग लगाई है उसकी तीसरी पीढ़ी और दूसरी पीढ़ी पशुधन का। मूल्यांकन स्वयं गांव में अपने अड़ोसी , पड़ोसी आग लगाने वालों की पारिवारिक जीवन के कष्ट को स्वयं देखें ईश्वर के प्रकोप से वह कभी बच ही नहीं सकता है क्योंकि उस आग के कारण प्रकृति जन्यसृष्टि को खत्म करने का पाप किया है कितना मृग सावकों के बच्चे , कितने पक्षियों के अण्डे , बच्चे और कितनी सर्प की प्रजातियां और कितना जीवन रक्षक औषधीय पादप ,इमारती पेड़ और फलदार वृक्ष नष्ट हो जाते हैं यह गणित आग लगाने वाले स्वार्थि घास के लोभी मनुष्य ने कभी नहीं सोचा एक बच्चे को पालने पोषने में कितनी मेहनत और भावना मां बाप की लगती है इस बात को आग लगाने वाले बाप को भी पता है जब उसके बच्चे के ऊपर कोई कुदृष्टि डाले तो वह मरने मारने पर उतारू हो जाता है और जब वह परमात्मा रूपी पिता के परिवार के रुपी जंगल में आग लगाकर जड़ चेतन सारें प्राणियों की आहुतियां बिना अपराध के आग की बलि वेदी दे देता है तो प्रकृति उसके परिवार के साथ ऐसा प्रतिशोध लेती है कि चार पीढ़ियां आते आते उसका नामोनिशान मिट जाता है यह बात मैं सभी गांव के निवासियों को और आग लगाने वालों को चुनौती देता हूं कि जिन्होंने जंगल में आग लगाई उनकी तीसरी पीढ़ी में कोई न कोई निसंतान अवश्य होगा और जिन पशुपालकों ने घास के लिए जंगल जलाया वह तीसरे चौथे साल पशुविहीन हो जाता है मैं सभी उत्तराखंडी ग्राम वासियों के साथ साथ पर्वतीय क्षेत्र के जिन प्रदेशों में अग्नि काण्ड मानवीय रूप में किया जाता है वहां शिव रुद्र रूप में होकर दोषी को समूल नष्ट कर देते हैं यह "हर हर महादेव "का क्षेत्र है और जो हरे हरे जंगलों में आग लगाते उसके भोलेनाथ "हरण मरण और तर्पण "योग्य बना देता है हर व्यक्ति प्रत्यक्ष अगल बगल के आग लगाने वाले पर नजर रखे और मेरी बात का मिलान भी करें इसी अपेक्षा के साथ
आपका बिष्णु
प्रसाद सेमवाल भृगु
अध्यक्ष ग्रामोदय सहकारी समिति लि भिगुन
देहरादून:- 1995 के आईपीएस अधिकारी दीपम सेठ ने उत्तराखंड पुलिस मुख्यालय पहुंचकर डीजीपी का चार्ज लिया है इस मौके पर उन्हें गार्ड ऑफ ऑनर दिया गया। साथ में एडीजी स्तर के कई अधिकारियों ने उनका स्वागत किया और उ...