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नारायणबगड, चमोली
नवीन नेगी :- विकासखंड नारायणबगड़ के विभिन्न ग्राम सभाओं में फ़ूलदेई पर्व बड़े हर्षोल्लास से मनाया।
पिंडर घाटी के समूचे क्षेत्रों में गुरुवार को फूलदेई त्योहार की धूम रही।
फूलदेई का त्यौहार उत्तराखंड में फसल उत्सव के रूप में मनाया जाता है,फूलदेई पर्व पूरे प्रदेश में वसंत ऋतु का स्वागत करता है। उत्सव में भाग लेने के लिए सबसे अधिक बच्चे उत्साहित रहते हैं, बच्चे घरों के आँगन की देहरी पर फूल डालकर साथ में लोक गीत फूल देई, छम्मा देई, देणी द्वार, भर भकार,ये देली स बारम्बार नमस्कार, फूले द्वार....... फूल देई-छम्मा देई।
गाते हैं।
फूलदेई त्योहार प्रखंड नारायणबगड़ के जुनेर, चौपता, रैंस, कफातीर, भगोटा, चलियापानी, मौणा, असेड , सनकोट अन्य ग्रामसभाओं में मनाया।
फूलदेई पर्व की उत्तराखंड में विशेष मान्यता है फूलदेई चैत्र संक्रांति के दिन मनाया जाता है क्योंकि हिंदू पंचांग के अनुसार चैत्र मास ही हिंदू नववर्ष का पहला महीना होता है।इस त्योहार को खासतौर से बच्चे मनाते हैं और घर की देहरी पर बैठकर लोकगीत गाने के साथ ही घर-घर जाकर फूल बरसाते हैं।
क्यों मनाते हैं फूलदेई त्योहार?
फूलदेई से जुड़ी एक पौराणिक कथा भी है जिसके अनुसार एक समय की बात है जब पहाड़ों मं घोघाजीत नामक राजा रहता था।इस राजा की एक पुत्री थी जिसका नाम था घोघा,घोघा प्रकृति प्रेमी थी।एक दिन छोटी उम्र में ही घोघा लापता हो गई घोघा के गायब होने के बाद से ही राजा घोघाजीत उदास रहने लगे तभी कुलदेवी ने सुझाव दिया कि राजा गांवभर के बच्चों को वसंत चैत्र की अष्टमी पर बुलाएं और बच्चों से फ्योंली और बुरांस देहरी पर रखवाएं कुलदेवी के अनुसार ऐसा करने पर घर में खुशहाली आएगी,इसके बाद से ही फूलदेई मनाया जाने लगा।
जुनेर की प्रतीक्षा नेगी ने बताया यह त्यौहार हिंदू महीने चैत्र के पहले दिन मनाया जाता है व पूरे महीने भर बच्चे घरों के आंगनों की देहरी में फूल डालते हैं, उन्होंने कहा लोकसंस्कृति के लिए लोकपर्वों का संरक्षण हम सभी को करना चाहिए,यह त्योहार मन को हर्षोल्लास से भर देता है।
प्रिया नेगी ने कहा फूलदेई त्योहार पर गांव में उत्सव जैसा माहौल बना रहता है बच्चे गीत भी गाते हैं। सह संसार का एकमात्र बाल उत्सव जिसकी शुरुआत नौनिहाल व समापन बुजुर्गों द्वारा होता है।
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