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टिहरी:-
स्पेशल रिपोर्ट - पंकज भट्ट: हिमालय की गोद में बसा उत्तराखंड जिसे देवभूमि के नाम से भी जाना जाता है, अपनी अलौकिक खूबसूरती, प्राचीन मंदिर और अपनी संस्कृति के लिए विश्वविख्यात है। यहां की लोक कलाएं और लोक संगीत बरसों से भारत की प्राचीन कथाओं का बखान करती आ रही हैं। ऐसी ही एक प्राचीन परंपरा है पांडव नृत्य जो की देवभूमि उत्तराखंड का पारम्परिक लोक नृत्य है। उत्तराखंड में पांडव नृत्य पूरे एक माह का आयोजन होता है। गढ़वाल क्षेत्र में अलग अलग समय पर पांडव नृत्य का आयोजन होता रहता है। गांव वाले खाली समय में पाण्डव नृत्य के आयोजन के लिए बढ़ चढ़कर भागीदारी निभाते हैं।
उत्तराखंड के टिहरी स्थित कंडारस्यूं गांव में हर तीसरे वर्ष पांडव नृत्य का आयोजन बड़े धूमधाम से किया जाता है जिसमें प्रवासी ग्रामीण भी बढ़-चढ़कर भाग लेते हैं, भारती जनता पार्टी के जिला उपाध्यक्ष व ग्रामीण अनिल चौहान ने बताया कि भगवान हुणेश्वर और नागराज की धरती पर हर तीसरे वर्ष पांडव नृत्य का आयोजन किया जाता है, उन्होंने बताया कि इस कार्यक्रम का आयोजन सिर्फ मनोरंजन के लिए ही नहीं बल्कि क्षेत्र की खुशहाली और अन्न धन्न की वृद्धि के लिए मनाया जाता है, इस नौ दिवसीय आयोजन के बाद ही क्षेत्र में धान की कटाई मंडाई का कार्यक्रम किया जाता है।
पांडव नृत्य कार्यक्रम समिति के के अध्यक्ष दिनेश नेगी व डॉ देव सिंह कंडारी ने बताया कि वर्षों से चली आ रही इस धार्मिक परंपरा को आगे बढ़ाते हुए बासर पट्टी के कंडारस्यूं, पोनी और खिरबेल तोनी गांव के ग्रामीण आगे बढ़ा रहे हैं , जिसमें गांव के जवान से लेकर बुजुर्ग तक हर व्यक्ति इस परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं।
ग्रामीण शिक्षक धन सिंह ने बताया कि इस कार्यक्रम का आयोजन करने वाले पौराणिक लोगों का सिर्फ एक मात्र उद्देश्य रहा स्थानीय जनका को एकता के सूत्र में पिरोना, उन्होंने जानकारी देते हुए बताया कि जिस कारण महाभारत का युद्ध पांडवों और कौरवों में सिर्फ जमीनी लड़ाई के लिए हुआ था , उसी संदेश को जनता के बीच रखने के लिए इस तरह के आयोजन किए जाते हैं जिससे समाज में आपसी बैर ना हो बल्कि सभी लोग एकता से रहें आपसी स्नेह और भाईचारा बना रहे इसी लिए इस तरह के कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है।
आपको बता दें टिहरी के सीमांत घनसाली विधानसभा स्थित बासर पट्टी के कंडारस्यूं गांव में कई वर्षों से पांडव नृत्य का आयोजन किया जा रहा है, जिसमें मुख्य किरदार पाँच पांडव होते हैं, बाकी उनके सैनिक होते हैं और हाथी का रूप ऐरावत हाथी होता है। पाण्डव नृत्य कराने के पीछे गाँव वालों द्वारा विभिन्न तर्क दिए जाते हैं, जिनमें मुख्य रूप से गाँव में खुशहाली, अच्छी फसल को माना जाता है साथ ही पशुओं में होने वाले रोग पाण्डव नृत्य कराने के बाद ठीक हो जाता है।
इस दौरान पांडव लीला कमेटी के संरक्षक भगवान सिंह भंडारी, प्रबंधक अनिल चौहान, अध्यक्ष दिनेश नेगी, उपाध्यक्ष देव सिंह कंडारी, सचिव-धन सिंह कंडारी, कोषाध्यक्ष दीपक सेमवाल, सदस्यबच्चन सिंह बिष्ट, सदस्य-मोर सिंह श्रीकोटी, ग्राम प्रधान प्रतिनिधि कण्डारस्यूॕं बिजेंदर लाल, ग्राम प्रधान पोनी हरीश बसरियाल, ग्राम प्रधान खिरबेल- दीपक सेमवाल, प्रधान सुनीता शाह, क्षेपंस रेखा देवी, भागवत प्रसाद कंसवाल, बचन सिंह बिष्ट, ज्योति प्रसाद डिमरी, प्रभुदत्त बसलियाल, नत्थी सिंह बिष्ट, पुरुषोत्तम बिष्ट, दशरथ प्रसाद रतूड़ब, शिवदयाल, विक्रम प्रसाद, गोविंद सिंह, दिनेश रावत, त्रिलोक सिंह, दुर्गा प्रसाद, सरोप सिंह, मादचंद कंडारी, हरीचंद कंडारी, भगवान सिंह, शिवप्रसाद, अब्बल सिंह, सम्पूर्णा नंद, ओमप्रकाश, जितेन्द्र सिंह, नत्थे सिंह गुसाईं, उम्मेद सिंह आदि तमाम ग्रामीण एवं क्षेत्रीय लोग मौजूद रहे।
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