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मोबाइल क्रांति पर कवि विष्णु प्रसाद सेमवाल द्वारा पिता पुत्र वार्तालाप।

07-08-2022 02:37 AM

    एक दौर पत्राचार का था जब एक अंतर्देशीय में पूरे परिवार की राजी खुशी के साथ गांव समाज का हालचाल के साथ कई मुद्दों का हाल चाल सिर्फ एक पत्र में शामिल होता था‌, जबकि आज मोबाइल, दूरसंचार का दौर है हर व्यक्ति के पास एक या एक से अधिक मोबाइल जरूर होगा । वहीं इस मोबाइल क्रांति पर कवि विष्णु प्रसाद सेमवाल ने पिता पुत्र वार्तालाप पर उक्त नाटक लोक संस्कृति के संरक्षण में लेखन किया है।

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बेटा- हैलो पिताजी प्रणाम।

पिता- हां चिरंजीव बेटा कैसे हो बेटे ?

बेटा- मैं ठीक हूं। आप बताओ पिताजी क्या कर रहे हो ?

पिता- बस बेटा क्या करना है गाय ,बैलों को देखने के लिऐ जा रहा हूं। 

बेटा- पिताजी आपने गाय बैलों को अभी बेचा नहीं मैंने आपको कई बार समझा दिया कि रिंकू की मां के बस का यह काम बिल्कुल नहीं है आप ने क्यों यह झमेला पाल रखा है।

पिता- बेटा तेरे लिए आज जो झमेला लग रहा है, गाय-भैसों की बदौलत मैनें तुमको तुम्हारे भाइयों को पढ़ाया लिखाया गांव में इतना बड़ा मकान बनाया तेरे लिऐ ब्वारी लाया तेरी बहिनों की शादी की तुम्हारी मां और मैंने खेती बाड़ी भी की तुम्हारी देखरेख भी की और तुम्हारे लिऐ लता कपड़ों की ब्यवस्था भी की।

बेटा- पिताजी आपका जमाना चला गया अब हमने अपने बच्चों का भविष्य बनाना है, गांव में रहकर बच्चों गाय भैंस के गोबरों से उनका भविष्य नहीं बनने वाला आप कब समझोगे।

पिता- अरे बेटे तुमको क्या लगता है कि हमारे जमाने में कोई भी लायक आदमी नहीं होते थे, आज जितने भी गुरुजी लोग अधिकारी कर्मचारी और बिदेशों में हैं वे सभी इन्हीं गांव के स्कूलों में पढ़ें लिखे हैं, आज तुम्हारा बड़ा भाई जो अधिकारी बना हुआ है, तेरा बीच वाला भाई मास्टर है और तुमने जो होटल मैनेजमेंट किया वह पढ़ाई कहां की है, वहां जो गुरु जी लोग थे कहां से पढ़े थे। 

बेटा- देखो पिताजी यह सारी बातें अब पुरानी हो गई है, अब नयां जमाना आ गया है अब की बेटी ब्वारी के बस का कोई काम नहीं है मैंने आपसे पहले भी कहा कि मुझे दूसरे देश जाने के लिए पैसों की बहुत जरूरत है आप कहीं से न कहीं से एक लाख रुपए भेज देना चाहिए मकान के आगे वाले खेत ,गाय और बैल बेच देना उनका अब क्या करना है फसल सारे जानवर खा रहे हैं।

पिता- बेटा जब तक मेरा और तेरी मां का जीवन है हम कुछ नहीं बेचेंगे और मेरे पास पैसा भी कहां से हो सकते है तुम क्या मुझे कभी घर खर्च देते हो ?

बेटा- आप तो ऐसे बोलते हैं जैसे हमारे पास कुबेर का भण्डार हो मकान का किराया, बिजली का बिल, दूध हमेशा लाते हैं बच्चों की फीस, आने जाने वाली गाड़ी, स्कूलों के कपड़े ,गाड़ी का पेट्रोल घर की राशन और न जाने कितने खर्च हमारे हैं ऊपर से आप भी हमको ऑडर मारते हैं। 

पिता- बेटा कमरे का किराया , पेट्रोल छोड़कर यह सारे खर्चे और काम हमने भी तुम्हारे लिए किये हैं आज तुम्हारी तनख्वाह हजारों में है और मेहनत मजदूरी के बाद भी अगर वर्षा पानी भी हो तो तुम्हे वेतन जरूर मिलता, हम बरखा पानी होने पर बैठे रहते तो खाने के पैसे ठेकेदार काट दिया करते थे फिर 12 से 13 जनों का परिवार उनके लता कपड़े दवा दारू ,गाय भैंस पढ़ाई लिखाई , न्योता पत्री शादी ब्याह का खर्चा पर्चा कौन करता कितने खेत बनाये, दो मंजिला आठ वास मकान कहां से बना तब भी "सौ घिच्ची और एक खिस्सी" थी आखिर हमारा बुढ़ापा तुम नहीं देखोगे तो कौन देखेगा अपनी पुस्तैनी जमीन और अपने मां बाप को मत भूलो मेरे बच्चों, यह देवभूमि है आज भी तुम शहरों में इसलिए भरोसे मन्द हो कि हमारे पास ईमानदारी, आत्मसंतोष, कर्मठता, और आपसी सुख दुःख साथ निभाने की बिरासत धरोहर है शहर में जो भय ,परायापन और होड़ है वह कब क्या हो पता नहीं इसलिए बेटा हम अपने जीवन को काट लेंगे परन्तु अपने बच्चों को संस्कार हीन मत बनाओं ।

बेटा- पिताजी आप ही सोचों ना आज जमाना कहां का कहां चला गया अगर रिंकू को गांव में ही रखेगें तो क्या वो शहरो के बच्चो के साथ आगे बढ़ पायेगा लोग अपने बच्चों को इंटरनेशनल स्कूल में डाल रहे है और आप शिशु मंदिर में ही रट लगाये हुऐ है।

पिता- बेटा भले ही तू अपने परिवार को अपने बेटे और ब्बारी को शहर ले जा लेकिन हम गाय भैस, बैल नही बेचेंगें क्योकि यह हमारा स्वाभिमान है हम अपनी मातृभूमि (गांव) को कभी नही त्याग सकते। 

बेटा- आप तो एक ही रट लगाये हुऐ हो पिताजी आपको पता है कि गांव में अब कोई नही है रामू, नत्थू, लौकी, रमन सबका परिवार शहर आ गया गांव में अब कोई नही है आप क्या करोगें उस सुनसान गांव में ।

पिता- बेटा जिस विरासत को तुम आज दो कोड़ी का समझ रहे हो उसी पैतृक सम्पत्ति पर किसी जमाने पूरा परिवार पलता था। 

बेटा- पिताजी आपको क्या लगता है की हमें अपने गांव से प्यार नही है हम कर भी क्या सकते है ना वहां शिक्षा है, स्वास्थ्य की भी कोई सुविधा नही है सबसे बड़ी कमी है रोजगार की।

पिता- बेटा जिस खेती-बाड़ी गाय बैलों को तुम कुछ नही समझते है आज उन्ही पैतृक खेती पर एक नेपाली और बिहारी लखपति बन रहा है और तुम बोल रहे हो कि रोजगार नही है। 

बेटा- पिताजी आप क्या चाहते हो पढ़ाई-लिखाई करने के बाद हम खेती बाड़ी करे। 

पिता- बेटा तुम्हारे बस में खेती का काम है भी वैसे भी तेरी ब्बारी आजकल गुमशुम सी रहती है शायद बहु का मन भी यहां नही लग रहा तुम अपने परिवार को शहर ले जा लो नाती को खूब पढ़ा लिखा बनाना लेकिन हमें मत भूलना। अब मैं फोन रख रहा हूं तेरी मां पीछे से आवाज लगा रही है तेरी मां को दवाई भी खिलानी है तुम सुखी रहना तुम्हारी खुशी में ही हमारी खुशी है। अपने पापा का बोला हुआ बुरा मत मानना।

लेखक श्री विष्णु प्रसाद सेमवाल भृगु , ग्राम व पोस्ट भिगुन, जिला टिहरी गढ़वाल।


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