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देहरादून:- चकराता जौनसार बाबर पहले ही अपनी लोक कलाओं के लिए विश्व विख्यात है और देवी देवताओं में भी यहां के लोग अपनी पूरी आस्था रखते हैं और अपने त्योहारों को हर्षोल्लास पूर्वक मनाते हैं,इन दिनों जनजातीय ...




वर्ष 2005 में तत्कालीन केंद्र की डॉक्टर मनमोहन सिंह सरकार ने गांवों के लोगों को गांव के अंदर ही साल में 100 दिनों का रोजगार देने के उद्देश्य से राष्ट्रीय रोजगार गारंटी अधिनियम को लाया था, जिसके बाद वर्ष 2006 से यह अधिनियम लागू हुआ।इस अधिनियम के तहत गांव के मजदूरों को गांव के भीतर ही तमाम कार्यों को करने के लिए साल भर में 100 दिन का रोजगार देने की घोषणा हुई, प्रधान संगठन टिहरी के जिला सचिव और मीडिया प्रभारी चंद्रशेखर पैन्यूली ने मीडिया से बातचीत करते हुए बताया कि इस योजना में गांव के विकास से जुड़ी तमाम योजनाओं को नरेगा के तहत रखा गया व इस योजना पर कार्य होना शुरू हुआ। जल संरक्षण, वनीकरण,भूमि सुधार, गांव के तहत आने वाले रास्तों गूलों आदि तमाम कार्यों को इसमें शामिल किया गया, चूंकि यह केंद्र सरकार द्वारा लाया गया अधिनियम है तो यह पूरे देश में लागू हुआ, जिससे गरीबों व मजदूरों को अपने घर के पास ही कार्य मिलना भी शुरू हुआ व इस तबके के लोगों की आर्थिक स्थिति भी अच्छी होने लगी।बाद ने नरेगा का नाम मनरेगा यानि महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी अधिनियम हुआ,लेकिन यह गांव में तमाम विकास कार्यों को करने का दूसरा पर्यायवाची हुआ, मनरेगा से लोगों की आर्थिकी में सुधार होने लगा, लोगो का जीवन स्तर सुधरने लगा, कुल मिलाकर मनरेगा कार्यों से पूरे देश के भीतर एक नया परिवर्तन भी देखने को मिलते लगा।इसके साथ ही इस अधिनियम में तमाम नए नियम भी लागू होते गए जिससे इसमें तमाम प्रयोग होने लगे, कुछ प्रयोग अच्छे व पारदर्शी होने से अधिक फायदेमंद हुए तो कुछेक प्रयोगों से यह अधिनियम कमजोर जैसा होने लगा जिससे इस अधिनियम के तहत कार्य करवाने वाले जनप्रतिनिधियों को परेशानी होने लगी।मनरेगा एक काम की मांग के आधार की योजना है यानि आपको काम की जरूरत है आपने कार्य की मांग की खंड विकास अधिकारी या उप कार्यक्रम अधिकारी कार्यादेश देते है व गांव में कार्य शुरू होते हैं जिसको ग्राम विकास अधिकारी, जूनियर इंजीनियर, रोजगार सेवक की देखरेख में ग्राम प्रधान क्रियान्वित करवाते हैं , इससे लोगों को गांव के भीतर ही रोजगार मिल रहा है। मनरेगा में तमाम परिवर्तन वर्ष 2006 से होते रहे।पहले जहां नगद में भुगतान होता था, अब सभी कुछ डिजिटल माध्यम से होता है,योजना का 60 फीसदी अंश मजदूरों के खातों में तो 40 फीसदी सामग्री अंश के रूप में फर्म वालों के खातों मै जाता है, अर्थात मोटे तौर पर देखे तो अब मनरेगा पूरी तरह से पारदर्शी है,पहले वित के कार्यों में ग्राम प्रधानों को चेक के माध्यम से भुगतान की व्यवस्था थी, अब वो व्यवस्था भी खत्म यानि ग्राम प्रधानों की चेक पावर भी ख़तम हुई अब वित के कार्यों में भुगतान मनरेगा की ही तरह डिजिटल माध्यम से ही हो रहा है।पिछले 2019 से मनरेगा में तमाम नए नियम लागू होने से कार्यों को धरातल पर कराने में परेशानी होती जा रही है, आजकल सरकार द्वारा नेशनल मोबाइल मॉनिटरिंग सॉफ्टवेयर सिस्टम से कार्य करने की बात कही गई, जिसका उत्तराखंड प्रदेश में हर ब्लॉक में भारी विरोध चल रहा है, मोबाइल मॉनिटरिंग सॉफ्टवेयर सिस्टम का मतलब आप सुबह मोबाइल से मजदूरों की हाजिरी लगाएंगे फिर शाम को दुबारा मोबाइल से ही हाजिरी लगाएंगे, अब उत्तराखण्ङ जैसे राज्य में जहां पर्वतीय भूभाग काफी ज्यादा है,और आम तौर पर मनरेगा में पहाड़ों के गांवों के लोग अधिक कार्य करते हैं, अब यदि सुबह किसी की हाजिरी लग भी जाती है शाम को नहीं लगती है तो उसकी दिन भर की मेहनत पर पानी फिर गया, और उसके गुस्से को ग्राम प्रधान या अन्य को भी जनप्रतिनिधि उस योजना को करवा रहे होंगे, उसे झेलना पड़ेगा, साथ ही कुछ तोको या जगहों पर जब मोबाइल नेटवर्क ही नहीं आता तो वहां हाजिरी कैसे लग पाएगी यदि हाजिरी ही नहीं लगेगी तो उस कार्य को करके मजदूरों का क्या फायदा? वर्ष 2019 के बाद से मनरेगा में कई नए नियम जुड़े जिससे जनप्रतिनिधियों को कार्य करवाने में परेशानी सामने आ रही है,2019 के बाद जो नए नियम लागू हुए उन्हें मोटे तौर पर देखे तो अब पहले की तरह एस्टीमेट ऑफ लाइन न होकर ऑनलाइन हो गए है, ऐसे ही प्रशासनिक स्वीकृति की बात है पहले ऑफ लाइन था अब वो भी ऑनलाइन है, साथ ही टाइड व अन टाइड रूप की कैटेगरी के कार्यों को कराने की बाध्यता है, इसके अलावा मनरेगा कार्यों को कैटेगरी वाईज करने की बाधयता है, अब आप ऐसे समझो कि पहले ए श्रेणी के कार्य होंगे तब बी सी डी का नंबर आयेगा, उदाहरण के तौर पर भूमि सुधार कार्य यदि बरसात में कराना होगा तो कैसे किन्हीं खेतों में कर पाएंगे, या कहीं गूल बनानी हो तो क्या किसी के खेतों की धान की फसल को नष्ट करें, पहले गांव में गांव के मौसम या गांव के खेती बाड़ी के हिसाब से जब मर्जी जो काम मर्जी करने की छूट थी लेकिन अब वो भी कैटेगरी के हिसाब से करने की बाध्यता है।इसके अलावा जियो
टैग समयानुसार न होने से भी कई बार योजनाओं को शुरू होने में अधिक समय लगता है, साथ ही जब कार्य हो भी जाते हैं तो लंबे समय तक सामग्री अंश का भुगतान न होने से फर्म वाले ग्राम प्रधानों या अन्य जनप्रतिनिधियों को पेमेंट के लिए बोलते है जबकि पहले जल्दी जल्दी सामग्री अंश का भुगतान हो जाता था।वर्ष 2019 के पंचायती चुनाव में चुने गए प्रधान गणों या अन्य जनप्रतिनिधियों ने कोरोनो जैसी बीमारी में सरकार को सहयोग किया, अपने अपने गांवों में तमाम व्यवस्थाएं सुचारू रूप से संचालित की, उसके बाद भी ग्राम प्रधानों पर कई नए नियमों को थोपा जा रहा है, जिससे गांव में धरातल पर समयानुसार कार्य नहीं हो रहे हैं, सरकार को जरूर ग्राम प्रधानों के आंदोलन पर गौर करना चाहिए, गावों की विषम भौगौलिक परिस्थितियों को देखते हुए जरूर इस नए नियम या इन तमाम नियमों में बदलाव करना चाहिए ताकि कम से कम उत्तराखण्ङ के पंचायत प्रतिनिधियों के बचे शेष डेढ़ 2 वर्षों के कार्यकाल में कार्य की गति बढ़ सके वरना वैसे ही कोराना ने बुरी तरह विकास कार्य बाधित किए ग्राम प्रधानों को बुरी तरह प्रभावित किया ऊपर से सरकार के ऐसे नए नए नियम लागू होने से कार्य करवाने में आ रही परेशानी से सभी लोग परेशान है, अतः कम से कम इन आखिर के सालों में सरकार को ग्राम प्रधानों व पंचायत प्रतिनिधियो की समस्याओं को समझते हुए जरूर कोई बीच का रास्ता अपनाना होगा,वरना यदि इसी तरह सिर्फ नए नए नियम थोपे जाते रहे,तो वो दिन दूर नहीं जब मनरेगा अधिनियम बुरी तरह से फेल हो जाएगा, मनरेगा को अच्छी योजना बनाकर रखने की जिम्मेदारी अधिकारियों की है वो जरूर सोचें कि क्या इसी कार्यकाल के पंचायत प्रतिनिधियों को ही नए नए नियमों की प्रयोगशाला बनाकर परेशान करना है, या कोराना से बुरी तरह प्रभावित इन जनप्रतिनिधियों की वास्तविक मांगो को पूरा करना है। मै अंत में इतना ही कहूंगा कि सरकार को उत्तराखण्ङ की विषम भगौलिक परिस्थितियों को देखते हुए मनरेगा में अब नए नए नियम इस 5 साल के शेष बचे कार्यकाल में नहीं थोपना चाहिए।बहरहाल एमएनएनएस के विरोध में प्रदेश व्यापी धरना प्रदर्शन ग्राम प्रधानों द्वारा जारी है।
थौलधार विकासखंड में पंचायत प्रधानों व अन्य पंचायत प्रतिनिधियों का धरना प्रदर्शन लगातार तीसरे दिन भी जारी।
एनएमएमस सिस्टम से उपस्थिति के विरोध में जमकर की नारेबाजी।
धरना प्रदर्शन में प्रधान संगठन के जिलाध्यक्ष रविन्द्र राणा, उपाध्यक्ष गब्बर नेगी, महामंत्री संदीप रावत, जिला सचिव बीना नेगी, विनोद भट्ट, ललिता देवी, सुरेश राणा, सुरेंद्र सिंह, रोबिन, महावीर, मुकेश रावत, गंभीर पंवार, बीरेंद्र अग्निहोत्री, सुमन सिंह, सामाजिक कार्यकर्ता बुद्धी सिंह बिष्ट, प्रधान संगठन के पदाधिकारियों सहित अन्य पंचायत प्रतिनिधि उपस्थित रहे।
भिलंगना प्रधान संगठन अध्यक्ष के नेतृत्व में आज भी हुआ धरना प्रदर्शन, 1 सप्ताह बाद तालाबंदी और ज़िले स्तर पर होगा प्रदर्शन।
विकासखंड भिलंगना ग्राम प्रधान संगठन के अध्यक्ष दिनेश भजनियाल के नेतृत्व में लगातार तीन दिन तक धरना प्रदर्शन किया गया। प्रधान संगठन के अध्यक्ष दिनेश भजनियाल ने बताया कि अगर सरकार इसके पश्चात यदि 1 सप्ताह के अंदर एन एम एम एस मोबाइल मॉनिटरिंग सिस्टम उपस्थिति का निराकरण नहीं किया गया तो जिला अध्यक्ष रविंद्र राणा के नेतृत्व में जिले में धरना प्रदर्शन और विकास खंड मुख्यालय पर तालाबंदी की जाएगी, ग्रामीण मनरेगा श्रमिकों के साथ नरेंद्र सिंह सजवान किशन सिंह रावत, राधिका देवी, कुमारी राधिका, विक्रम सिंह नेगी, कोषाध्यक्ष नर्वदेश्वर प्रसाद बडोनी, कुमारी लक्ष्मी, संजय सिंह पंवार, विक्रम सिंह पंवार, जिला पंचायत सदस्य नरेंद्र सिंह रावत, जसोदा देवी आदि सेंकड़ों लोग मौजूद रहे।
देहरादून:- चकराता जौनसार बाबर पहले ही अपनी लोक कलाओं के लिए विश्व विख्यात है और देवी देवताओं में भी यहां के लोग अपनी पूरी आस्था रखते हैं और अपने त्योहारों को हर्षोल्लास पूर्वक मनाते हैं,इन दिनों जनजातीय ...