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वरिष्ठ पत्रकार ओंकार बहुगुणा की कलम से
उत्तराखंड का अस्तित्व सिर्फ एक राजनीतिक निर्णय नहीं, बल्कि संघर्ष, बलिदान और दूरदृष्टि का परिणाम है। इस राज्य के निर्माण का सपना जिन महापुरुषों ने देखा, उनमें भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी जी का योगदान स्वर्णाक्षरों में अंकित है। उत्तराखंड के प्रति उनका प्रेम और यहां के लोगों के प्रति उनकी गहरी संवेदना ने इस राज्य के गठन की नींव को मजबूत किया।
1987 का वर्ष था, जब यमुनोत्री धाम में चकबंदी प्रणेता स्व. राजेन्द्र सिंह रावत और केदार सिंह रावत ने उत्तराखंड राज्य की मांग को लेकर साढ़े पांच महीने का आंदोलन किया। इस आंदोलन की गूंज इतनी व्यापक हुई कि जब 1988 में जम्मू-कश्मीर में भाजपा का राष्ट्रीय अधिवेशन हुआ, तो स्व. राजेन्द्र रावत जी ने वहां अलग राज्य की मांग को मजबूती से रखा।
उस समय अलग राज्य की मांग को कम्युनिस्ट विचारधारा का हिस्सा मानकर खारिज कर दिया जाता था, लेकिन अटल जी ने इस सोच को नकारते हुए इस मांग का समर्थन किया। उन्होंने कहा यदि भाजपा को उत्तरांचल में अपनी पहचान बनानी है, तो यहां के लोगों की जीवटता और कठिनाइयों को समझना होगा।
इसके बाद उत्तराखंड राज्य के निर्माण के लिए उत्तरांचल प्रदेश संघर्ष समिति का गठन हुआ, जो इस मांग को नई दिशा देने वाला महत्वपूर्ण कदम साबित हुआ।
अटल जी का उत्तराखंड से लगाव केवल राजनीतिक नहीं, बल्कि बेहद व्यक्तिगत था। 1984 में जब वे बड़कोट की यात्रा पर आए, तो उनके साथ कलराज मिश्र भी थे। उस समय 5000 लोगों की ऐतिहासिक जनसभा में अटल जी का सिक्कों से तोलकर अभिनंदन किया गया — ये दृश्य आज भी उत्तरकाशी के इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज है।
उस दौरे में अटल जी ने गंगोत्री, उत्तरकाशी और हर्षिल की यात्रा भी की। हर्षिल में उनके मार्गदर्शक थे वरिष्ठ भाजपा नेता सूरत राम नौटियाल जी। जब नौटियाल जी ने उन्हें ऐतिहासिक विल्सन बंगला दिखाया, तो अटल जी उस मनोरम दृश्य को देखकर ठिठक गए। वे बंगले के पास एक सेब के पेड़ के नीचे बैठ गए। ठंडी हवा के झोंकों और पर्वतों की शांतिमय छांव में अटल जी ने गहरी सांस ली और नौटियाल जी से कहा
तुम लोग वास्तव में स्वर्ग में रहते हो। गंगा और यमुना की गोद में बसा ये इलाका देवभूमि का मायका है। यहां के लोग सच में धन्य हैं।
अटल जी की ये बातें केवल प्रशंसा के शब्द नहीं थीं, बल्कि उत्तराखंड के प्रति उनकी आत्मीयता और संवेदना का प्रतीक थीं। यही वजह थी कि जब अलग राज्य की मांग राष्ट्रीय स्तर पर गूंजने लगी, तो अटल जी ने बिना हिचक इस मांग का समर्थन किया और कहा
उत्तरांचल राज्य का निर्माण केवल राजनीतिक अस्तित्व की बात नहीं, बल्कि उन जुझारू पर्वतवासियों की तकलीफों का समाधान है, जो हर दिन प्रकृति से संघर्ष करते हुए जीने का हौसला रखते हैं।
आज जब हम उत्तराखंड के अस्तित्व पर गर्व करते हैं, तो इसके पीछे अटल जी का वह प्रेम, वह संवेदना और उनकी दूरदृष्टि हमें हमेशा प्रेरणा देती रहेगी। उत्तराखंड का हर पर्वत, हर नदी और हर घाटी अटल जी के इसी अमिट प्रेम का प्रमाण है।
- ओंकार बहुगुणा (बेबाक)
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