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संपादकीय
देवभूमि उत्तराखंड के ग्रामीण अथवा शहरी जीवन से जुड़े छोटे व्यवसायों पर संप्रदाय विशेष के बाहरी लोगों का कब्जा हो चुका है , दुर्भाग्यवश स्थानीय बासिंदे विकल्प के अभाव में उनसे काम लेने को मजबूर हैं ।
उत्तराखंड के युवा यद्यपि बड़ी मात्रा में गावों से पलायन कर चुके हैं तथापि कुछ यदि हिम्मत के साथ गांव में रह कर स्वरोजगार कर भी रहे हैं तो वे आशंकित हैं कि उन्हें आगे चल कर विवाह हेतु अच्छे रिश्ते नहीं मिलेंगे, क्योंकि आज लड़की वालों की प्राथमिक पसंद लड़के वालों का शहर में घर होना है ।
समाधान ?
1- कृषि कार्यों में पुरुष भी महिला के साथ बराबर का सहभागी रहे , महिलाओं के कंधों पर घर, खेती , बच्चों और पशुओं आदि का एकल भार होने से वे हर हाल में गांव से बाहर निकलना चाहती हैं , खुद के कठिन जीवन को देख कर माताएं अपनी बेटी को इस श्रमसाध्य जीवन से बचाना ही चाहती हैं ।
अच्छे विद्यालयों एवम स्वास्थ्य सुविधाओं के विकल्प भी गांवों में देने होंगे, क्योंकि अधिकांश पलायन शिक्षा और स्वास्थ्य के नाम पर हो रहा है ।
कौशल विकास को स्कूली शिक्षा से ही पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाया जाय , दसवीं और बारहवीं के छात्रों की स्वरोजगार अपनाने हेतु विशेषज्ञों द्वारा काउंसलिंग हो ।
पलायन की पहली पटकथा विद्यालयों से पलायित इन्हीं युवाओं द्वारा लिखी जाती है और आगे चल कर यह युवा ,परिवार के साथ अपना गांव छोड़ देता है ।
तृतीय और चतुर्थ श्रेणी के कुछ वर्गीकृत पदों पर स्थानीय युवाओं की ही अनिवार्य भर्ती हो।
चुनाव लडने वाले जन प्रतिनिधियों से नामांकन के समय ही गांव में रहने का लिखित अनुबंध लिया जाय , निर्वाचित होने के बाद उनके पलायन की पुष्टि होने पर तत्काल उनकी सदस्यता समाप्त हो ।
लेखक :- राम प्रकाश पैन्यूली, सदस्य पलायन निवारण आयोग (उत्तराखंड)
नई टिहरी:- अब नहीं होगी ऊर्जा की कमी, पंप स्टोरेज प्लांट यूनिट को ग्रिड से जोड़ने पर टीएचडीसी के अधिकारी और कर्मचारियों में खुशी की लहर। ऊर्जा के क्षेत्र में टिहरी बांध परियोजना के नाम एक और उपलब्ध...