ताजा खबरें (Latest News)

घनसाली :- प्रख्यात जनकवि, समाजसेवी, सर्वोदय नेता, राज्य आंदोलनकारी स्व० घनश्याम रतूड़ी "सैलानी" की 91वीं जयन्ती के अवसर पर "इन्द्रमणि बडोनी कला एवं साहित्य मंच घनसाली" के तत्वावधान में भव्य व दिव्य ढंग से नगर पंचाय...

लोकेंद्र दत्त जोशी :- हम पहाड़ के लोग दुख व्यक्त कर रहे हैं कि, जिस राज्य के लिए हमने बलिदान दिए,उसकी विधानसभा में एक मंत्री बड़ी शान से खड़ा होकर हमें गाली दे रहा है? मगर जरा सोचिए कि गाली देने वाले को इतना साहस आया तो आया कहाँ से? दरअसल, इसके लिए हम खुद जिम्मेदार हैं। हम जैसा बोएंगे, वैसा ही काटेंगे। हम पहाड़ के लोग राष्ट्रीय पार्टियों द्वारा हम पर थोपे जाने वाले अयोग्य और कायर लोगों को अपना भाग्य-विधाता बनाकर लोकसभा और विधानसभा में भेजते रहेंगे, तो हमें अपने साथ अन्याय भी देखना पड़ेगा और गाली भी खानी पड़ेगी।
गौर करिए शिक्षा, स्वास्थ, रोजगार जैसा कौन सा ऐसा क्षेत्र है जहाँ पहाड़ के लोगों के साथ राज्य गठन के बाद निरंतर अन्याय न हुआ हो? हमारे विधायकों और सांसदों ने कभी भी पहाड़ को गंभीरता से नहीं लिया, यही कारण है कि पहाड़ की अस्मिता पर खुलेआम हमले होते रहे हैं। और पहाडवासियों से हमेशा छलावा होता रहा है। किन्तु चुने हुए प्रतिनिधि जनता के लिए नहीं बल्कि हमेशा अपने दलों के लिए प्रतिबद्ध रहे हैं और वही आज भी सदन में देखने को मिल रहा है।
जरा याद कीजिए कि-
-जब देश के समस्त हिमालयी राज्यों में विधानसभा क्षेत्रों का परिसीमन जनसंख्या घनत्व के साथ ही भौगोलिक स्थितियों को ध्यान में रखकर हुआ, तो अकेले उत्तराखंड में ही क्यों सिर्फ जनसंख्या को आधार बनाया गया? कांग्रेस या भाजपा बताएँ कि क्या उनके विधायक या सांसद परिसीमन आयोग में शामिल थे या नहीं ? क्या उनके विधायकों या सांसदों ने तब परिसीमन आयोग के समक्ष कहा था कि हिमालयी राज्य उत्तराखण्ड में विधानसभा क्षेत्रों का परिसीमन यहाँ के भूगोल को ध्यान में रखकर किया जाए?
-–जब उत्तर प्रदेश विधानसभा में राज्यपुनर्गठन विधेयक पर उत्तराखंड विरोधी संशोधन हो रहे थे, तो भाजपाई और कांग्रेसी विधायक क्यों मौन रहे थे? मुन्ना सिंह चौहान तब समाजवादी पार्टी में थे, लेकिन वे अवश्य बोले थे कि यह गलत हो रहा है। आरक्षण के सवाल पर छोड़ आज मजबूरी उन पर भी साफ झलकती है।
-राजधानी के सवाल को लटकाने के लिए जिस मंशा से दीक्षित आयोग का गठन किया गया और जिस तरह आयोग का कार्यकाल बढ़ाया जाता रहा, उस पर क्यों कभी पहाड़ के शेर विधायकों की दहाड़ सुनाई नहीं दी?
और भी तमाम ऐसे अहम मौके आए हैं जब पहाड़ की जनता के हित में जनता के विधायकों और सांसदों को बोलना चाहिए था, लेकिन वे चुप्पी साधे रहे। और आज भी चुप्पी साधे हुए हैं।जाहिर है कि उनकी इस चुप्पी को कोई भी उनकी मजबूरी या कायरता ही समझेगा।
आखिर जनता के चुने हुए प्रतिनिधियों को देखकर ही तो कोई जनता का आकलन करेगा? जब लोग देख रहे हैं कि पहाड़ के विधायक कायर हैं, तभी तो वे निसंकोच हम पहाड़वासियों को गाली दे रहे हैं। जिस घर का गार्जियन कमजोर होगा, उस घर की कोई परवाह क्यों करेगा? बहरहाल विधानसभा में पहाड़वासियों को गाली देने पर बदरीनाथ के कांग्रेसी विधायक लखपत बुटोला ने अवश्य आक्रोश जाहिर किया है, जिस पर भी घृत राष्ट्र की सभा मौन देखने को मिली ! जबकि सभा के अध्यक्षा भीष्म शैय्या राज धर्म का पालन कर रही है।लेकिन सवाल फिर भी वही है कि क्या सिर्फ लखपत बुटोला को ही जनता ने चुनकर भेजा है?
लेखक लोकेंद्र दत्त जोशी:- राज्य आंदोलनकारी, वरिष्ठ अधिवक्ता व स्वतंत्र पत्रकार लेखक भी हैं
घनसाली :- प्रख्यात जनकवि, समाजसेवी, सर्वोदय नेता, राज्य आंदोलनकारी स्व० घनश्याम रतूड़ी "सैलानी" की 91वीं जयन्ती के अवसर पर "इन्द्रमणि बडोनी कला एवं साहित्य मंच घनसाली" के तत्वावधान में भव्य व दिव्य ढंग से नगर पंचाय...