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Tehri: राजराजेश्वरी मंदिर चुलागढ़ में शारदीय नवरात्रों का शुभारंभ।

03-10-2024 09:49 PM

घनसाली, टिहरी गढ़वाल:- 

    भिलंगना के बासर, केमर, आरगढ़, गोनगढ़ और भिलंग पट्टी के मध्य प्राचीन सिद्धपीठ मां राजराजेश्वरी मंदिर में प्रतिपदा से शारदीय नवरात्रों को आगाज़ हो गया है, यहां पर नवरात्र शुरू होते ही श्रद्धालुओं की काफी भीड़ देखने को मिल रही है। राजराजेश्वरी मंदिर के मुख्य पुजारी देवेश्वर प्रसाद नौटियाल व मंदिर ट्रस्ट के अध्यक्ष नीलम भट्ट ने बताया कि उत्तराखंड की पावन भूमि पर ढेर सारे पावन मंदिर और स्थल हैं जहां पहुंचते ही असीम शांति का अनुभव होता है। मां दुर्गा के शक्तिपीठों के अलावा उत्तराखंड में मां के इन मंदिरों का भी खास महत्व है। यहां हजारों साल से मां की पूजा-उपासना हो रही है... हिमालय का गढ़वाल क्षेत्र देव भूमि के नाम से विख्यात है। यह भूमि अनादिकाल से देवी देवताओं की निवास स्थली और अवतारों की लीला भूमि रही है। यहां पर प्रसिद्ध ऋषियों ने ज्ञान विज्ञान की ज्योति जलाई और समस्त वेद, पुराणों, शास्त्रों की रचना की । माँ राज राजेश्वरी का पावन शक्तिपीठ इसी हिमालय पर्वत पर स्थित है। श्रीमुख पर्वत, बालखिल्य पर्वत, वारणावत पर्वत और श्रीक्षेत्र के अंतर्गत माँ राज राजेश्वरी के परमधाम का वर्णन मिलता है। माँ राजराजेश्वरी का मंदिर बालखिल्य पर्वत की सीमा में मणि द्वीप आश्रम में स्थित है जो कि बासर, केमर, भिलंग एवं गोनगढ़ के केन्द्रस्थल में चमियाला से 15 कि. मि. और मांदरा से 2 कि. मि. दूरी पर रमणीक पर्वत पर स्थित है। मंदिर के मुख्य पुजारी (रावल) देवेश्वर प्रसाद नौटियाल ने बात करते हुए कहा कि .... माँ राज राजेश्वरी के बारे में आख्यान मिलता है कि देवासुर संग्राम के समय  आकाश मार्ग से गमन करते समय माँ दुर्गा का खड्ग ( अज्ञात धातु से बना एक "शक्ति शस्त्र" तलवार जैसा हथियार) चुलागढ की पहाड़ी पर गिरा था। भारतीय पुरातत्व विभाग के अनुसार यह "शक्ति शस्त्र" लाखों वर्ष पुराना है जो कि मंदिर के गर्भगृह में विद्यमान है। और टिहरी रियासत के दौरान यहां पर एक पत्थर मिला था जिसकी पुष्टि संवत् 909 से संबंध थी। माँ राज राजेश्वरी दस "महाविद्या" में से एक "त्रिपुर सुंदरी" का स्वरूप हैं। माता राज राजेश्वरी टिहरी रियासत के राज वंश द्वारा पूजी जाती थी। कनक वंश के राजा सत्यसिंध (छत्रपति) ने 14 वीं शताब्दी में मां राजराजेश्वरी मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया था। स्कंदपुराण में यह उल्लेख मिलता है कि एक बार जब पृथ्वी पर अवश्रण हुआ तो ब्रह्मा जी ने इसी देव भूमि में आकर माँ राज राजेश्वरी का स्तवन किया। स्कन्दपुराण में निम्न उल्लेख है:-

शिवां सरस्वती लक्ष्मी, सिद्धि बुद्धि महोत्सवा।

केदारवास सुंभंगा बद्रीवास सुप्रियम ।।

राज राजेश्वरी देवी सृष्टि संहार कारिणीम ।

माया मायास्थितां वामा, वाम शक्ति मनोहराम ।।

( स्कंदपुराण केदारखंड अध्याय 110) में मिलता है, वहीं उन्होंने बताया कि यहां पर शारदीय और चैत्र नवरात्र का भव्य आयोजन किया जाता है चैत्र नवरात्र के दौरान नवमी और शारदीय नवरात्रों में दशमी तिथि के अवसर पर प्रसाद के रूप में हरियाली बांटी जाती है।


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