Share: Share KhabarUttarakhandKi news on facebook.Facebook | Share KhabarUttarakhandKi news on twitter.Twitter | Share KhabarUttarakhandKi news on whatsapp.Whatsapp | Share KhabarUttarakhandKi news on linkedin..Linkedin

तनाव मुक्त परीक्षाओं के लिए, वर्दीधारी डंडे युक्त पुलिस की जगह प्रवेश द्वार पर सरस्वती के चित्र के साथ आदर्श शिक्षक हो तैनात- लोकेंद्र दत्त जोशी

24-02-2024 06:54 PM

वर्दीधारी डंडे युक्त पुलिस गेट पर तैनात न रहें ! 

  लोकेंद्र दत्त जोशी की कलम से:- 

घनसाली, 24 फरवरी 2024

अब बोर्ड की परीक्षाएं शूरू हो गई है। बच्चे साल भर से स्कूल कालेज जाते हैं। बड़ी मेहनत और उम्मीदों के साथ तैयारी करते हैं।और जी जान से पढ़ाई करने का प्रयास करते हैं। उनके सपने भी रात की नींद हो या दिन का सुख चैन लम्बी उड़ान के लिए कम से कम 10–12, क्लास पास हो जाने के लिए पंख लगे रहते हैं। जीवन में रुपए पैसा कमाएं या न कमाएं लेकिन बच्चों को कोई अनपढ़ तो न कहें ! इस बात से वे चिन्तित रहते हैं । और परीक्षाओं के दिनों डर के साए में जी रहा छात्र अवसाद मुक्त रह रहें। ऐसे रहने का माता पिता एवं अभिभावक का भरसक प्रयास रहता है।


आज सबसे बड़ा दुर्भाग्य स्कूल कालेजों में शिक्षकों का न होना है। अंग्रेजी राज में शिक्षा नीति बनाने वाले " सर मैकाले" ने अपनी शिक्षा नीति में, भारतीयता शिक्षा पद्धति को /गुरुकुल संस्कार को समाप्त करने के लिए नईं शिक्षा नीति चलाई। भारतीय धर्म और दर्शन के साथ उच्च आदर्शों का ज्ञान, संस्कार , संस्कृति और सभ्यता को समूल नष्ट करने देने के लिए शिक्षा के माध्यम से हमारे आदर्शवान विचारों में बदलाव किया। और उसमे अमूल चूक परिवर्तन अथवा नष्ट करने के लिए कुछ ज्ञान वर्धक बातों को अपनी शिक्षा नीति के विकास के लिए आठ विषयों के लिए आठ–आठ शिक्षकों की व्यवस्था तो की ही है। ? 

परंतु कठिन संघर्षों के राज्य में "मैकाले" से मीलों आगे बढ़ कर आज शिक्षा की बहुत दुर्दशा पहाड़ों में है। जहां सारे शिक्षण संस्थान शिक्षक विहीन हैं। कैसे किसी भी संस्कार वान अथवा पूरे पाठ्यक्रम पढ़े या पढ़ाए शिक्षा सत्र की कल्पना की जाय।? अकल्पनीय है।


पहाड़ का बेटा हो या बेटियां घरेलू जिमदारियां इतनी ज्यादा होती है कि पानी का बंठा लाने से खेती पाती का कार्य करना, छुट्टियां हो तो ध्याड़ी मजदूरी कर , साग सब्जी या किसी अच्छे से साबुन से महकने का सपना सरकार हेतु मजदूरी करते हैं। स्कूल फिर रोज का काम तो रहता ही है।


किंतु स्कूल कॉलेज के हाल हैं कि टपकता भवन/टपकती छत, बिना लोबोटरी की विज्ञान की कक्षाएं और धर्म दर्शन, कला, संगीत एवं साहित्य का रीता स्कूल कालेज काटने को खाता है। वर्तमान में अधिकांशतः कॉलेज शिक्षकों के बिना साल भर चल रहें हैं। सरकार पलायन का रोना रो रही है। पलायन आयोग बिना आंकड़े के घूम रहा है 


किसी तरह खास कर बेटीयां अगर 12 क्लास पढ़ गई तो आगे क्या करेगी? कहां पढ़ेगी,,? कौन सी ट्रेनिंग करेगी ,,,? कुछ नहीं सूझता ओर और सरकार के कोई साधन नहीं। बचा खुचा रास्ता शादी ब्याह रह जाता है ,!


अभी अपने लेख ज्यादा कुछ नहीं कहूंगा ! किंतु वर्तमान में शैक्षणिक माहौल में परिवर्तन की बहुत बड़ी नहीं बल्कि सूक्ष्म आवश्यकता है। परीक्षाओं के देने यानी पेपर देने का समय में भययुक्त माहौल हो !  

किसी भी कोई भी घूसखोर व्यक्ति नकल रोकने के उड़न दस्ते का सदस्य न हो ! ऐसा कर्मचारी या अधिकारी भी परीक्षा ड्यूटी का जिम्मेदार व्यक्ति अधिकारी अथवा सदस्य न हो जिसने बच्चों के प्रमाण पत्रों को बनाने में उनका समय नष्ट न किया हो और अनुचित रूप से कोई रुपए न लिए हों ! बिल्कुल प्राथमिक शर्तें हों इनका चयन उनके गुण धर्म के आधार पर प्रमुखता से हो।

     उसके बाद दूसरा यह कि, छात्र छात्राएं अपने परीक्षा भवन में जब प्रवेष करे तो किसी मंदिर की घंटी बजाए जैसे सुखद माहौल में परीक्षा केन्द्र में प्रवेश करे। टेंशन युक्त माहौल में परीक्षा केन्द्र में प्रवेष न करे।


 पाचासों वर्षों से बच्चे स्कूल भवन के अंदर प्रवेश करते हैं कि मानों परीक्षा / पेपर देने परीक्षा केन्द्र में न जा कर, कहीं अपराध की जांच में अपने बयान/सफ़ाई देने जा रहे हों और पुलिस को अपने बयान देने प्रवेष द्वार से गुजरना हो ! ऐसे माहौल से बच्चों के मानसिक रूप से पीड़ा दिया जाता है। अर्थात परीक्षा नहीं हो रही है बल्कि किसी संगीन अपराध किए हुए अपराधी को जेल खाने के अंदर भेजा जा रहा होगा। ऐसा वातावरण बनाया जाना बहुत गलत और पीड़ा दायक होता है।


पहाड़ो में विद्यार्थी का दोष यह रहता है कि साल भर फीस देता है ,? जबकि साल भर शिक्षकों के अभाव मार साल भर झेलता है।और परीक्षा के समय स्कूल कालेज के गेट पर, स्टार पहने पुलिस का रंग,भादरंग दरोगा, चार छः मुस्टंडे पुलिस के जवान, ओर ऐसे शिक्षक तलाशी ड्यूडी में रहते हैं जिन्होने शिक्षा और समाज का मोहला सुधार कराने में कोई सफल प्रयास नहीं किया है ! 


मेरा लिखने का आशय यह है कि परीक्षार्थियों को परीक्षा केन्द्र के परीक्षा द्वार पर भय, आतंक और असामाजिक माहौल पैदा करके न रखें। परीक्षा केन्द्र में सम्मान और गर्व या आत्म विश्वास के साथ परीक्षार्थी गर्व के साथ प्रवेश करे। उसे लगे कि वह परीक्षा देने जा रहा। और परीक्षा पास कर वह जीवन के सपने संवरेगा, वह सम्मानित अध्यापक। बनेगा !एक अधिकारी बनेगा। ! अथवा अपने अन्य सुनहरे सपने साकार करेगा। इसलिए वह परीक्षा भवन के अंदर ज्ञान और योग्यता के अच्छे प्रदर्शन को उकेरने के लिए प्रवेश कर रहा है। 


 होता क्या है कि?, पहाड़ों में अधिकांश निवासरत बच्चों के द्वारा कभी पुलिस को देखा ही नहीं गया और उनके भीतर पुलिस अपराध रोकने के लिए गलत आचरण किया जाने का स्वरुप जानकारी रहती है! और परीक्षाओं के समय, परीक्षा केंद्र अपने ग्रामीण क्षेत्र से दूर जा कर पुलिस प्रशासन के माहौल में परीक्षाओं में सामिल होने से से, बे वजह भय भीत हो कर आतंकित रहते हैं!, डरे और सहमे रहते हैं। 


पुलिस और बड़ी टीम को देख कर तनाव और भय से मानसिक रूप से उत्पन्न आत्म विश्वास बच्चों का समाप्त हो जाता। क्योंकि परीक्षा केन्द्र के बाहर पुलिस के साए में जो चेकिंग के नाम पर रौद्र रूप टीम का रहता है है ,पार्क्षार्थी बच्चे उस माहौल को देख कर डर और सहम कर, उनका पढ़ा और याद किया हुआ वह भूल जाता है।

और घर पहुंच कर अपने आप से शिकायत करता है कि मुझे आता था लेकिन मैं भूल गाया ! जो कभी जीवन भर अवसाद देता है ! क्योंकि प्रश्न छूट गया ? नम्बर कम आ गए ! जब विद्यालयों में बच्चों ने पुलिस कभी देखी ही नहीं तो परीक्षा के दिनों ही क्यों पुलिस खड़ी रहती है ? अगर रहे तो परीक्षा केंद्र से दूर खड़े हो कर अपनी सेवाएं दें ! 


 मेरे साथ कई अन्य साथियों को मेरी जैसे अच्छी तरह अनुभव पूर्वक अच्छी तरह से याद होगा ? उत्तरखांड राज्य आन्दोलन के खौफनाक दौर वर्ष –1994 का रहा। हालांकि हमारे कई साथी –वर्ष –1994 के बाद भी राज्य निमार्ण तक संघर्ष में जुटे रहे! और सरकारों के गलत निर्णयों के कारण पुलिस संघर्षों में जूझते रहे उन दिनों आंदोलन में पुलिस प्रशासन के खौफ की वजह से बडी मार काट पूरे उत्तराखंड राज्य और प्रवासी क्षेत्रों में हुआ। व अन्य कठिन और अमानवीय दौर से गुजरे जेलों में बडी संख्या में में बंद हुए और कठिन से कठिन अत्याचार सहे ।। बहुत उत्पीड़न आंदोलनकारियों का हुआ 


 ऐसे कठिन वक्त में जनपद टिहरी गढ़वाल के श्रीमान जिलाधिकारी श्री मान देवाशीष पांडे जी" ने अपनी बड़ी सूझ बूझ से कार्य किया और पुलिस को स्पष्ट निर्देश दिए कि पुलिस का कोई भी गस्ति दल जलूस के आगे पीछे नहीं जाएगा। डी.एम.साहब का अकल्पनीय आत्म विश्वास !, ? इतिहास में आज भी देखने और पढ़ने लायक है! 


सोचिए जनपद टिहरी गढ़वाल के मूल निवासी, दुनिया के उस बड़े आन्दोलन का नेतृत्व, राज्य निमार्ण हेतु – पहाड़ के गांधी इंद्रमणि बडोनी, फील्ड मार्शल क्रांतिकारी दिवाकर भट्ट्, बड़ोनी जी का दाहिना हाथ त्रिवेंद्र सिंह पंवार साहित छात्र राजनेता के रूप में स्वयं मैं लोकेंद्र जोशी और तो और उत्तराखंड आरक्षण विरोधी छात्र संघर्ष समिति के मुख्य संयोजक डा. राकेश भूषण गोदियाल एवं उमेश चरण गुसाईं आदि कई युवा नेतृत्व कर रहे थे ! किंतु आंदोलन जलूस प्रदर्शन के दौरान इर्द गिर्द पुलिस टोली जन आन्दोलन में न रहने के कारण पुलिस न होने से, आंदोलनकारी और पुलिस के बीच आपस में कोई टकराव नहीं हुआ और अप्रिय घटना जनपद टिहरी गढ़वाल में घटित नहीं हुई। और देश और दुनियां को शांति और अहिंसा का पाठ पढ़ाने वाला गांधी दर्शन बड़े विश्वाश के साथ जिंदा रहा। यद्यपि भय और आतंक की शंका तब भी थी ! जोकि पांडे सहाब के कारण असफल रहा।


देवाशीष पांडे सहाब उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव भी रहें ! जिन्हे उत्तराखंड की धरती से खास कर टिहरी गढ़वाल से सादर नमन आज भी स्वीकार हो।


नकल अध्यादेश क्या है ? वह लोक सेवा आयोग की बेची जा चुकी मर्यादाओं का भांडा बच्चो के सिर पर फोड़ने के सिवा कुछ भी नहीं ! और साकार अपने कुकर्मों से फटी धोती को पकड़ कर लाज बचाने का असफल प्रयास है। तथा छात्र जीवन के साथ अपराध करना मात्र है।

क्योंकि आज भी कई मंत्री और अधिकारियों के पास आवेदकों के लाखों रुपए जमा है जो वर्षो से जमा है ! 


पहाड़ का बारहवीं पास बच्चा देश सेवा के लिए भी मात्र इंटर मीडिएट पास होना चाहता था ! लेकिन अध्यापकों की कमी ने वह सब उम्मीदों पर पानी फेर दिया है ? धन्य हो होटल व्यवसाय के लोगों का जो कठिन संघर्ष के बाद बच्चों को रोटी और अच्छी पगार से सम्मान जनक रोजगार दे देते हैं। नहीं तो उत्तराखण्ड का नौजवान भिखारी के अलावा अकल्पनीय दौर में जुट गाया होता !

खैर छोड़िए ,! किंतु परीक्षा गेट स्कूल कालेज का प्रवेश द्वार का माहौल सरस्वती का आशिर्वाद , के लिए धूप और तिलक लगा कर हो ,! गेट पर एक मंदिर और मां सरस्वती के साथ स्थानीय देवी देवताओं की सजी दुर्गा की मूर्ती का हो ! जान्हा पर बच्चे अपने जूते मौजे उतार कर माथे पर टीका लगा कर मां सरस्वती को प्रणाम कर शिक्षा के मंदिर में आत्म विश्वास के साथ प्रवेष करे। जिस पर गुरुजनों का आशिर्वाद ले कर प्रणाम करते हुए परीक्षा भवन में परीक्षा देने बैठे। देखिए निश्चित रूप से सकारात्मक परिणाम समाने आएंगे। कल्पना से और भी अच्छे होंगे।


 और वह शिक्षक जो साल भर सम्मानित और पूजनीय रहते हैं वह दुश्मन की जगह एक अच्छे मानो चिकित्सक और अच्छे अभिभावक की भूमिका में बच्चों के सर पर हाथ रखते हुए परीक्षा रूम में भेजेंगे तो ऐसे वातावरण रहने से बच्चों का जीवन संवारने का बड़ा सपना साकार होगा।। शिक्षा के नीति निर्धारकों से सलाह और अनुरोध है ?जिन बच्चों को साल भर शिक्षक अपने आत्मसम्मान के साथ कंट्रोल करते हों उस शिक्षक के साथ पुलिस के भयावाह चेहरा आगे कर परिक्षा केन्द्र पर खड़ा करना बन्द करें यह मेरा सुझाव है। जय शिक्षक, जय मां सरस्वती।

सादर अभिवादन के साथ।

   लेखक:-  राज्य आंदोलनकारी, वरिष्ठ अधिवक्ता, स्वतंत्र लेखक एवं इंद्रमणि बडोनी कला एवं साहित्य मंच के अध्यक्ष हैं। 


ताजा खबरें (Latest News)

Tehri: जल्द होगा घनसाली आपदा पीड़ितों का विस्थापन- डीएम मयूर दीक्षित
Tehri: जल्द होगा घनसाली आपदा पीड़ितों का विस्थापन- डीएम मयूर दीक्षित 28-09-2024 07:14 PM

नई टिहरी पंकज भट्ट- विगत जुलाई अगस्त में भिलंगना ब्लॉक के तमाम क्षेत्रों में आई भीषण आपदा से प्रभावित हुए तिनगढ़, जखन्याली व घुत्तू भिलंग और बडियार कुडा के ग्रामीणों का जल्द विस्थापन हो जाएगा।डीएम मयूर दीक्ष...