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गुरू कैलापीर मेले का समापन, घनसाली के तमाम पर्यटन स्थल को सड़क से जोड़ा जाए-लोकेंद्र जोशी

16-12-2023 06:53 PM

घनसाली:- 

    टिहरी गढ़वाल के भिलंगना का गुरु कैलापीर बलराज मेला सम्पन्न हुआ।

बालिकाओं द्वारा मंचित रामलीला दर्शकों को भा रही है।

(बूढ़केदार से ज्वालामुखी मन्दिर, और पिंसवाड़ से महासर ताल राज्जू मार्ग से जुड़े - लोकेंद्र जोशी

    भिलंगना ब्लॉक के बूढ़ाकेदार  क्षेत्र में में मंगसीर बग्वाल, के साथ गुरु कैलापीर मेला हंसी खुशी के साथ सम्पन्न हो गया।  विदित है कि मंगसीर बग्वाल के तीसरे दिन से तीन दिवासीय परम्परागत गुरु कैलापीर मेले का भव्य आयोजन सदियों से होता चला आ रहा है। मेले में जलेबी और पकोड़ी का स्वाद हर मेले थौलों की भांति यहां भी मेले का अभिन्न हिस्सा है।इसके बिना पहाड़ के मेलों की कल्पना की जानी सम्भव नहीं । किंतु चाउमीन ने अपने पांव सुदूरवर्ती पहाड़ी क्षेत्रों में पसार दिए हैं ।चटपटा स्वाद के चक्कर में जलेबी एवं पकौड़ी का अस्तित्व भी संकट में पड़ गया है। जो भी हो मेले के लिए स्कूल प्रशासन ने छुट्टी कर मेले में चार चांद लगा दिए। मेले की रौनक बढ़ी और बच्चों की खुशियां बच्चे और मेले एक दूसरे के बिना बेकार है। सीटी बांसुरी और गुब्बारे खुले मन से खरीद कर किसी भी स्वर ध्वनि से बजा कर, अन्य के कानों तक पहुंचाना ही मेले का आनंद है। मेले को शान्ती पसंद नहीं और बिना शोर का आनंद नहीं यही तो मेला है जिससे गुरुकैलापीर भी खुश होते हैं।

     विगत कुछ वर्षो से गुरुकैलापीर का मेला  राजकीय मेला घोषित किया गया है। जिससे मुझे लगता है कुछ अनुशासन होने से मजा नहीं। वैसे भी राज्य बनाने के 23 वर्षों से बहुत कुछ परिवर्तन क्षेत्र हित में होना था किन्तु ढाक के तीन पात ही हुए ? जिन क्षेत्रों में जनता की रुचि है वहां सुझाव देने और मांग करने पर भी पूरे नहीं होते! भटवाड़ी बेलक बूढ़ाकेदार त्रियुगीनारायण मोटर मार्ग का विस्तार आजादी के वर्षों से ही अधर में होना बड़ा उदाहरण है। 

    किंतु  हर घर नल जैसे असफल योजनाओं पर पानी की तरह सरकारी धन बहाया जाना कहां राज्य का संकल्प था !?  ऐसे विपरीत योजनाएं पहाड़ के विकास और चरित्र पर विपरित असर डाल रहे हैं। क्योंकि पहाड़ की जवानी और पहाड़ का पानी तो रुका नहीं ?

    भिलंगना क्षेत्र के मेलों में मुख्यमंत्रियों सहित पयर्टन मंत्री और जिमेदार लोगों ने मंचों से जो घोषणाएं विगत वर्षो में की अधिकांश कोरी साबित हुईं। वह बूढ़ाकेदार का भक्ति पथ हो या घुत्तू खतलिंग का पांचवा धाम अथवा घुत्तू से पंवाली काँठा का उत्तरप्रदेश के समय से पड़ा आधा अधूरा रज्जू मार्ग का निमार्ण हो! सभी सामने उदाहरण है। और भी अनेकों  घोषणाएं उदाहरण के रुप में हैं जो सरकार के दावे खोखले ही साबित हुए हैं ! पूरा विधान सभा क्षेत्र समस्याओं से भरा पड़ा है। और जगह जगह पर जन प्रतिनिधि!?

    क्षेत्रीय विधायक शक्तिलाल शाह को समस्याओं से अवगत करवाया जाना कतई ठीक नहीं लगता उनका समस्याओं से जूझना और निदान होना पैतृक रूप से विरासत में मिला है। फिर सत्ता धारी दल की  मजबूरी ही है जो संघर्ष से झिझकते हैं ? अहिंसा और गांधी को उन्होने घर से पढ़ा है! इच्छा शक्ति और संघर्ष अभी बाकी है !

    क्षेत्रीय विधायक श्री शक्ति लाल शाह जिस तरह से अपनी जुबान, ब्यवहार और  संघठन और सरकार के प्रति समर्पित हैं और उतने ही समस्याओं  के बारे में भी अवगत हैं ! कार्यकर्ताओं की भी अच्छी फौज के वे बादशाह हैं किंतु उतने ही समस्याओं के समाधान कराने  में असफल और बौने साबित हो रहे हैं ! उनकी ऊर्जा का खपत गलत हाथों में  घोंट कर रख गया है। जिसको अभी भी उनको समझना होगा !

    मेरा सरकार अथवा सरकार के जिम्मेदार पूर्व अथवा वर्तमान सत्तासीन (पक्ष विपक्ष) लोगों के खिलाफ लिखना उद्देश्य नहीं बल्कि उनको याद दिलाना है कि जिस उत्तरप्रदेश से हम पिछड़ेपन को दूर करने और विकास के लिए पिण्ड छुड़ाना चाहते थे,और अपना राज्य उत्तराखंड  बनाने में खुशहाली समझते थे, आज  उसी अपने राज्य बनने के 23 वर्षों के बाद भी हमारे राज्य के आम नागरिक को उत्तरप्रदेश अच्छा लगने लगा है ! उसी उत्तर प्रदेश में रहते  सरकार की जो घोषणाएं होती थीं वह हमेशा धरातल पर उतरती थी। जोकि राज्य बनने पर नहीं!? घोर विरोधी माननीय मुलायम सिंह से बने मुल्ला मुलायम सिंह रोजगार की दृष्टि में आज बहुत याद आते हैं। मुलायम के द्वारा खोले गए स्कूल या तो बंद हो गए ! या शिक्षक विहीन होने के कारण बंदी के कगार पर हैं! रोजगार के सारे अवसर बंद कर दिए गए! और राज्य बनने के बाद तीन तीन पीढियां एक साथ बेरोजगारी की मार झेल रही है। जबकि मुलायम सिंह के रज्य में बेरोजगारी निरन्तर दूर होती रहती थी।

    बूढ़केदार मेले में जिलाधिकारी टिहरी गढ़वाल श्री मयूर दीक्षित जी ने जिस सादगी के साथ श्री गुरु कैलापीर मेले में अपनी उपस्थिति आस्था पूर्वक श्रद्धालुओं के बीच में दी और मेले से संबन्धित पर्यटन के क्षेत्र में विकास की योजनाएं जिला योजना के प्रस्ताव में रखने की बात कही उससे काफी हद तक पर्यटन विकास में क्षेत्रवासियों  को आने वाले वर्षों में लाभ मिलेगा यह तय है।

    गुरु कैलापीर का आस्था व विश्वास का यह पौराणिक मेला सरकारी मंत्री संतरियों की झूठी घोषणाओं से सरकारी तंत्र पर विश्वास में कमी होकर सार्वजनिक रुप से झूठ बोले जाने का सार्वजनिक मंच हो गया है। क्षेत्र में  शिक्षा, चिकित्सा और परिवहन/सड़कों  आज भी उत्तरप्रदेश की भांति बुरी स्थिति ही है!वही जो चालीस  पचास वर्षो पहले जो सड़कें बनी थीं वह सड़के संकरी , नाम पक्की किंतु गढ़ों से भरी पड़ी  है ! पहले भी खूब मेरे द्वारा  इस पर जिक्र किया गया है।

    चिकत्सा के लिए मैने पहले भी दुध्याडि गोनगढ़ मेले के समय में भी जिक्र किया था कि, चिकित्सा के हाल बहुत बुरे हैं ! खास कर, महिला चिकत्सा बहुत दयनीय है ! बूढ़ाकेदार के पिंसवाड़_ऊर्णी, मेड मारवाड़ी गेंवाली, हो या गोनगढ पट्टी के कोट बनोली, मथली केमर घाटी अथवा गंगी सहित पूरी की पूरी भिलंग घाटी एक मात्र स्वस्थ्य केन्द्र पिलखी पर अधारित थे ! आगे आप जानते हैं डॉ. श्याम विजय भी वहां से चले गए! प्रसव कालीन समय में बहु बेटियां का वह साल कितना कष्टकारी होता होगा कि क्षेत्र काटती होगी जब क्षेत्र के चारों ओर दूर दूर तक कहीं महिला चिकत्सक नहीं है के बारे में वे जानती है बिना महिला चिकित्सक के वह अपनी तकलीफ किसी को नहीं बता पाती है !  

     यही हाल शिक्षा के क्षेत्र में है। खास कर बालिकाओं के लिए उच्च शिक्षा के साथ साथ व्यवसायिक/ प्राविधिक शिक्षा के लिए कोई ठोस प्रयास नहीं हुए एक मात्र आई.टी.आई. चमियाला मृत प्रायः है । चिरबिटिया भी सामने पड़ा है। बालिकाओं के हित में कोई प्रषिक्षण संस्थान नहीं है। और कभी इस ओर किसी सदन अथवा छात्र संगठनो के द्वारा आवाज उठाई जाती है। फिर भी लिखूंगा व जिस पर चरचा भी जारी रहेगी।

    सरकारी स्तर पर यह मेला राजकीय मेला तो घोषित हो गया किन्तु खाना पूर्ति कर इतिश्री हो जाती है। अच्छा होता कि, प्रसिद्ध बाबा बूढ़केदार और क्षेत्र की  आस्था व विश्वास की देवी ज्वालामुखी का बहुत भव्य मंदिर रज्जू (ट्राली )मार्ग से जुड़ गया होता।  ठीक उसी तरह पिंसवाड़ और महासर ताल को रज्जू मार्ग से जोड़ कर, क्षेत्र के विकास में चार चांद लग गए होते! किंतु आफाशोष है सब कुछ बेकार है ! क्यों नहीं इस ओर कार्य होता मान्यवर!? वर्ष 1992 में हमने पहाड़ के गांधी स्व बडोनी के नेतृत्व वा मागदर्शन में जन सहभागिता से यात्रा निकाली थी। तब बूढ़केदार महासार ताल सहस्रताल पैदल मार्ग जिला पंचायत के माध्यम से बन सका था लेकीन आगे कुछ भी धरातल पर नहीं हुआ ऐसा क्यों? पर्यटन विभाग की भी जिम्मेदारियां बनती है।

    अपने इस लेख के माध्यम से मैं निर्वाचित अपने जन प्रतिनिधियों से मांग करता हूं कि बूढ़केदार से ज्वालामुखी मंदिर, और पर्यटन की दृष्टि से क्षेत्र के आखरी अथवा पहला गांव पिंसवाड़ से माहासर ताल रज्जू (ट्रॉली) मार्ग से जोड़ा जाए। और क्षेत्र के विकास की दृष्टि में इस ऐतिहासिक कार्य का श्रेय लेने में अपनी आहुति दें! ऐसा होने से पर्यटन के क्षेत्र में बहुत बड़ा कार्य होगा। क्योंकि भिलंगना क्षेत्र धार्मिक, साहसिक, एवं नैसर्गिक पर्यटन के क्षेत्र में बहुत महत्त्व पूर्ण योगदान रखता है। 


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