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जंगली जानवरों और बंजर भूमि के बीच गांव में खेती करना मुश्किल - वी पी सेमवाल

23-06-2023 12:18 PM

संपादकीय 

गांव में अब किसी भी फसल का उत्पादन करना बहुत मुश्किल दिन प्रतिदिन इसलिए हो रहा है कि प्रथम यह कि 20 परिवार की भूमि के उपभोक्ता घर पर नहीं है मात्र 4/5 परिवार की भूमि बंजर बीच में है अब उस फसल को उजाड़ (गाय,बैल,भेड़ बकरी)से बचाव करना है कि रात्रिकालीन जंगली जानवरों सुअर ,शाही , और भालू से बचाना है कि लंगूर बन्दरों से और जब यह समस्या घर में रहने वाले व्यक्ति करते हैं तो हमारे नेता गण शहरी बुद्धि जीवि और मंचासीन सामाजिक कार्यकर्त्ता बन्धुओं का एक रटारटाया शब्द होता है कि यह समस्या आज ही नहीं अपितु पहले भी यह सारी समस्या थी और उसके बाद भी लोगों ने खेती बाड़ी की आज मात्र बाना है जिसे अर्धसत्य माना जा सकता है क्योंकि तब सामूहिक खेती सांझी चौकीदारी समान कृषिचक्र की परम्परा के साथ 90%जमीन काश्तकारी की थी किन्तु अब ठीक उल्टा है खेत करने से पहले यह सुनिश्चित करना पड़ेगा कि जिस फसल को जानवर और बन्दरों से कम क्षति होती है उसकी खेती यदि करते हैं तो उसकी बुआई जुताई और गोबर ढुलाई में जो व्यय बिवरण इस प्रकार है कि

मैंने 5 नाली जमीन में चौलाई की खेती बोई
प्रथम हल पर व्यय 1100 रु
महिला मजदूर 2*500=1000
दूसरा हल मजदूरी=1100
गोबर /खेतसफाई 3*500=1500
बीज 75रू
कुल योग =4775 =चार हजार सात सौ पचहत्तर रूपये है जब कि अभी गुडाई निराई और कटाई छंटाई इसके अतिरिक्त होगा उपरोक्त आशय यह है कि जब अपने पास बैल नहीं , मजदूर नहीं और हर लगाने वाले नहीं तो पूर्ण कार्य जब मजदूरों पर निर्भर होगा तो खेती से लाभांश की कल्पना करना मुश्किल है यद्यपि सरकार आज मोटे अनाज की खेती को विश्व स्तर तक की मांग और पहचान दिलवा दी किन्तु उत्पादक जब अपने आप नहीं करेंगे तो मानव संसाधन के अभाव में कोई फसल का उत्पादन करना कपोल कल्पना मात्र होगा फसल लाभ तभी होगा जब सामुदायिक सहभागिता और सहकारिता के आधार पर मोटा अनाज उत्पादन करें और सरकार आज तैयार है किन्तु किसान नदारद है
       लेखक :-   बिष्णु प्रसाद सेमवाल अध्यक्ष ग्रामोदय सहकारी समिति लि भिगुन टिहरी गढ़वाल।


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