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"कटोक्ति" गढ़वालियों की पलायन प्रवृति औक संस्कृति : राजीव नयन बहुगुणा

31-10-2023 11:54 AM

कटोक्ति

वरिष्ठ पत्रकार राजीव नयन बहुगुणा की फेसबुक वाल से 

मैं गढ़वालियों की पलायन प्रवृति तथा संस्कृति शून्यता को समय समय पर रेखांकित करता रहता हूँ.

मेरा कर्तव्य बनता है कि मैं इसके कारणों तथा उपाय पर भी प्रकाश डालूँ.

गढ़वाल के अस्सी फीसदी निवासी, अपर कास्ट के लोग यहाँ के मूल निवासी नहीं बल्कि युद्ध के भगोड़े अथवा धर्म भीरू हैं.

इनमे मेरी स्वयं की जाति भी शामिल है, अतः अन्य को तिलमिलाने और बौखलाने की आवश्यकता नहीं है.

किसी भी ब्राह्मण तथा राजपूत जाति को यहाँ आये एक हज़ार साल से अधिक नहीं हुआ है. कुछ कुछ तो दो सौ साल पहले ही आये हैं.

आदि शंकराचार्ज के साथ अथवा उनके बाद स्वर्ग प्राप्ति के झांसे में दक्षिण से अधिसंख्य ब्राह्मण जातियाँ आकर यही बस गई.

इसी तरह कुछ पुरुष अपना घर बार त्याग हिमालय में पांडवो की तरह देह विसर्जन के मकसद से आये. यहाँ की आबो हवा से उनका बूढा शरीर चौकस हो गया. और यहाँ की अनिद्य सुंदरियों को देख उन बुड्ढ़ो की काम वासना पुनः जागृत हो गई, और उन बेशर्मो ने शादी कर यहीं गृहस्थी बसा ली.

इसी तरह राजस्थान और गुजरात के भीषण युद्ध के भगोड़े सैनिक छुपने वास्ते हिमालय की कन्द्राओं में चले आये. उन्होंने यहाँ के मूल निवासियों को दलित दमित बना कर अपनी सत्ता क़ायम कर ली.

एक हज़ार साल का समय नृ विज्ञान की भाषा में एक दिन के समान होता है. अतः यहाँ के समस्त ब्राह्मण - राजपूतो को एक दिन पुराना मेहमान ही समझना चाहिए.

इसी लिए उनमे यहाँ की भूमि के प्रति कोई लगाव नहीं है.

वे बांध, हाई वे और रेलवे के अधिकारियो को रिश्वत देकर अपना पैतृक मकान और खेत उजड़वाते हैं, और बेइज्जत होने के लिए देहरादून आ बसते हैं

विश्व भर में पर्वतीय स्वाभिमान अथवा हाई लैंडर्स स्पिरिट विख्यात है. जिसके अनुसार एक पहाड़ी मनुष्य जान देकर भी अपनी भूमि और स्वाभिमान की की रक्षा करता है.

यह प्रवृत्ति हमें चेचन्या, स्कॉटलैंड, नेपाल, नार्थ ईस्ट और उत्तराखण्ड के जौनसारी तथा भोटियों में देखने मिलती है , क्योंकि वे मूल निवासी हैं.

शेष गढ़वालियो के डीएनए में यह प्रवृत्ति है ही नहीं. क्योंकि वे यहाँ के निवासी नहीं हैं.

अब मैं इस बीमारी का निदान बताता हूँ.

सबसे पहले चिप्पी लगी काली टोपी मत पहनो. यह पारम्परिक पहाड़ी टोपी नहीं, बल्कि आरएसएस द्वारा बीस साल पहले धोखे से लांच की गई फ़र्ज़ी टोपी है.

यदि मजबूरी में रोजगार के लिए मैदानो में रहना पड़ता है, तो छुट्टियों में गाँव आओ और रहो.

रिटायर होने के बाद मरने के लिए गाँव जाओ. लक्खी बाग श्मशान में टाल से खरीदी लकड़ी से जलने पर तुम्हें मुक्ति नहीं मिलेगी. उसके लिए गाँव की धर्म लकड़ी आवश्यक है.

देहरादून में ज़मीन भूल कर भी मत खरीदो.

यहाँ डेंगू का मच्छर, जंगली हाथी, जमीनो के दलाल, काली मिर्च में पपीते के बीज मिलाने वाले बनिये, तेज़ गति से गाड़ी दौड़ाने वाले आवारा लड़के, क्रिकेट के पागल, और लड़कियों को भगाने वाले तुम्हारी ताक में बैठे हैं.

 दूसरों की शादी में जो पुराना सूट पहनते हो, वह फेंक दो. नॉर्मल कपड़े पहनो.

साम्प्रदायिक और जातिवादी सोच वाली पार्टी को वोट मत दो.

उत्तराखण्ड के अलावा दुनिया का कोई भी पहाड़ी व्यक्ति साम्प्रदायिक सोच नहीं रखता.

वह जन्म जात उदार होता है.

राम देव की दवा कभी मत खाओ, तथा बोतल बंद पानी मत पिओ.

धीरे धीरे सब पाप कट जायेंगे.


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