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चंद्रशेखर पैन्यूली की कलम से
आजकल नौतपा के दिन चल रहे हैं,देश के विभिन्न शहर,कस्बे और गांव भयंकर गर्मी की चपेट में हैं, लू चलने से लोगों को बड़ी परेशानी हो रही है,कुछ जगहों से भारी गर्मी और लू लगने से लोगो की मौत होने की खबर है,बड़ी बात ये है कि साल भर ठंडे रहने वाले पहाड़ों का तापमान भी बढ़ने लगा है,जब चारों तरफ पेड़ पौधे होने और ठंडा तापमान रहने वाले पहाड़ तपने लगे हैं तो बड़े शहरों और कस्बों में स्वाभाविक है भयंकर गर्मी होगी ही,इस गर्मी के सीजन ने कई प्राकृतिक जल स्त्रोत्र , गाड़ गधेरे,नाले सुखा दिए तो सदाबहार नदियों में भी जलस्तर कम हो गया है,ये कोई सामान्य बात नही है बल्कि एक बड़े खतरे का संकेत है।आजकल हर कोई पेड़ पौधे लगाने की बात कर रहा है,लेकिन वहीं दूसरी तरफ बड़ी संख्या में बाजारों में एसी बिक रहे हैं,बड़े बड़े कार्यालयों में एसी कमरों में बैठकर बढ़ते तापमान पर चिंता जताई जा रही है,बड़े बड़े जंगलों को काटकर शहर बसाने वाले लोगों को भी भारी चिंता होने लगी है,कृषि भूमि को प्लॉटिंग करके जगह जगह बड़ी बड़ी कॉलोनियों को बसाने वालों को भी बढ़ते तापमान पर चिंता होने लगी है।कुछ लोगो को लगता है वो एसी में ही रहेंगे और पेड़ पौधे लगाने का काम मेहनत मजदूरी करने वालों का है,किसानों का है या फिर वन विभाग का है,जबकि पेड़ पौधे सभी के लिए लाभदायक है,साथ ही पहाड़ों से अधिक जरूरत शहरों में है वृक्षारोपण की,वृक्ष हमारे लिए बहुत जरूरी है,ये बातें सभी को समझने की जरूरत है।अपनी आधुनिक जीवन शैली,और आरामदायक जिंदगी जीने की चाह में अपने मूल गांव,घरों को छोड़कर बड़े बड़े शहरों में पलायन कर चुके लोग भी कहते दिखाई दे रहे कि पेड़ पौधे लगाओ,लेकिन जब हमारे कई विश्व विख्यात पर्यावरणविद दशकों पहले इस हालात के लिए तैयार रहने की बात करते रहे तब उनकी किसी ने नहीं सुनी,वहीं दूसरी तरफ हर वर्ष किसी न किसी रूप में करोड़ों पेड़ लगाए जरूर जाते हैं लेकिन सिर्फ फोटो खींचने के लिए ही क्योंकि यदि उतने पेड़ जिंदा होते जितने रोपे जाते,उतने तो छोड़ो उसके आधे भी जिंदा रहे तो आज ऐसी स्थिति न होती। हर कार्यालयों में एसी,तमाम घरों में एसी,यहां तक की बसों,ट्रेनों ,टैक्सियों में भी एसी लगे है और साथ में चिंता जताई जा रही है बढ़ते तापमान पर,तो ये हमारी सिर्फ क्षणिक चिंता है,हम अपनी भौतिक विलासिता की जिंदगी की चाह में भविष्य को बड़े खतरे में डाल रहे हैं।दूसरी बात ये भी है कि गर्मियों के सीजन में यदि दो माह भी लोग अपने मूल गांव लौट आए जैसा पहले होता था कि स्कूलों की छुट्टी पर लोग अपने परिवार को अपने गांव छोड़ आते थे और स्वयं अपनी नौकरी पर चले जाते थे,इसके बाद जब बच्चों की छुट्टियां खत्म होती तो उन्हे ले जाते थे,लेकिन आज गांव से लोग मुंह मोड़ रहे है,तब होता क्या था परिवार को एक नया माहौल भी मिलता था,अपने मूल प्राकृतिक गांव के परिजनों से मेल मुलाकात भी होती थी और शहरों कस्बों में गर्मियों में बड़ी संख्या में लोग अपने मूल घर जाने से कम से कम 2 महीने कुछ तो दबाव कम होता था,जैसे बिजली पानी की आपूर्ति पर कम लोड पड़ता था,आजकल की भयानक गर्मी से तो पेयजल और बिजली आपूर्ति पर भी बड़ा असर पड़ रहा है।आज लोगो के गांव के बड़े बड़े आलीशान मकान खाली है और 50 गज,100 गज के मकानों पर रहकर लोग स्वयं को अपनी जन्मभूमि से दूर कर रहे हैं।साथ ही जब जंगलों में आग लग रही तो अधिकतर लोग मूकदर्शक बने रहते हैं उन्हे लगता है जलने दो यार हमारा क्या है,लेकिन ये भूल जाते हैं कि जंगल जलना प्रकृति के लिए बेहद खतरनाक है।कुल मिलाकर कहें तो आज के जो हालात है उसके लिए हम स्वयं ही दोषी है,क्योंकि हम जैसे करेंगे वैसे भरेंगे ही।आजकल जिस तरह से जिस तेजी से तापमान बढ़ रहा है वो भविष्य के लिए खतरनाक संकेत है जिसके जिम्मेदार हम सभी है,पर्यावरण असंतुलन और ग्लोबल वार्मिग के लिए हम सभी जिम्मेदार है,जिसका सीधा असर इस तरह से बढ़ते तापमान ,पेयजल किल्लत आदि के रूप में हमे झेलनी पड़ रही है और भविष्य में ये समस्या और अधिक बढ़ सकती है।
लेखक - चंद्रशेखर पैन्यूली (पत्रकार)
प्रधान, लिखवार गांव
प्रतापनगर टिहरी गढ़वाल।
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