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धरातलीय चिन्तन से होगा पलायन का निदान - विष्णु प्रसाद सेमवाल

30-05-2024 06:13 AM

कवि विष्णु प्रसाद सेमवाल भृगु की कलम से 

प्रायः पलायन होना , पलायन के प्रति चिंतित होना और उसके रोकथाम के लिए सरकार , बुद्धिजीवि , योजनाकार स्वयं सेवी संस्थाएं , और घरवासी तथा प्रवासी सभी लोग अपने अपने संचार माध्यमों , विचार गोष्ठियों और नुक्कड़ सभाओं , गीत संगीत कविताओं और भाषण से खाली होते गांव और बंजर होती भूमि के लिए सब चिंता व्यक्त करते हुए निदान और विधान की बात करते हैं ,सारा उत्तराखंडी समाज चाहता है कि पलायन पर रोक लगे परन्तु उसके बाद भी " ढाक के तीन पात" जिसके मुख्य कारण निम्नलिखित कारक भी हो सकते हैं

1पृथक राज्य की मांग तो जनसमूह और राजनैतिक दलों के द्वारा जिस जोर शोर किया गया उसका दूसरा पक्ष यह भी है कि हमारे पास बिकास की कोई रूपरेखा तब थी और न आज है हर वर्ष सरकार की बदली और मौसम के जैसी बदल जाती है ना सरकार के पास कोई ठोस टिकाऊ विकास नमूना सरकार बना सकी और न जनतांत्रिक व्यवस्था इस पर चिंतन करती है

2 उत्तराखंड का व्यक्ति नौकरी पेशा से लाखों रुपए गांव में रहकर कमाकर सेवानिवृत्त होने पर सारी पूंजी मैदानी क्षेत्र में जमीन और मकान खरीद तथा बनाने में जीवन भर की कमाई लग जाती है अगर हमारे पास कोई बिकास मोडल अर्थोपार्जन का होता तो उस राशि को उद्योगपति बनने हेतु लगाते किन्तु हमें मकान मालिक बनना आता है फैक्टरी मालिक नहीं जिस दिन हमें फैक्टरी मालिक बनने का हुनर आ जायेगा तभी धरातलीय बिकास होग

3  जल , जंगल , जमीन,जननी और जवान यह पंच पदार्थ (घटक) उत्तराखंड राज्य के आधार स्तम्भ हैं जल के रूप में हमें प्रत्यक्ष लाभ सिंचाई , दैनिक पेयजल आपूर्ति और आर्थिक उन्नति के घराट (पनचक्की) कुटीर उद्योग की श्रेणी में आता था हर गांव में 10/12पनचक्कियां होती थी पलायन के कारण कृषि उत्पाद बहुत कम पनचक्की के जो जानकारी रखने वाले मिस्त्री , लोहार, और असंतुलित पर्यावरण स्थिति के साथ जो बड़े बांध बने हैं उससे गांव बिस्तापित तो हुए परन्तु बिद्युत उत्पादन का सारा लाभ उत्तरप्रदेश और केंद्र को जाता है यहां का मूल निवासी मात्र बिजली बिल चुकाते हैं

4 जैसा कि सर्वविदित है कि इस प्रदेश में जीवन रक्षक औषधीय वनस्पति और वनसम्पदा है यदि इन जीवन रक्षक औषधीय पादपो का संरक्षण , संवर्धन आदर्श प्रशिक्षण और प्रमाणिक विदोहन के साथ साथ छोटी मोटी औषधि निर्माण इकाईयां विकसित हो जबकि जो यहां की वनस्पति नहीं है जैसे लेमन ग्रास , जिरेनियम ,लवेन्डर ,रोज ,आदि सगन्धपादप जो आसवन यूनिट में ले जाते ले जाते तेल उड़ जाता है और यूनिट तभी लगेगी जब टनों का उत्पादन हो यह कार्य भौगोलिक स्थिति से संभव नहीं ।

5 जब हम चार धाम यात्रा की बात करते हैं तो यह स्वीकार्य है कि यहां लाखों तीर्थयात्री चार धाम यात्रा में दर्शनार्थ आते है परन्तु महत्वपूर्ण विषय यह है कि हम उन्हें उत्तराखंड की पहचान क्या देकर जाते हैं चार युगों से देवभूमि में यात्री आते रह परन्तु हमने देवप्रसादी चयन नहीं किया मैं ने केंद्र सरकार, केन्द्रीय जड़ी बूटी शोध संस्थान एवं अनेक मंचों पर निवेदन किया कि तिम्बरू (तेजबल)की जैविक बाड और कलम पद्धति से खेती कर चार धाम केन्द्र , कुंभमेला , माघ मेला तथा अन्यान्य धार्मिक स्थलों में रोजगार सृजन का , आस्था का एवं औषधीय गुणों युक्त तिंम्बरूको उत्तराखंड देवप्रसादी हेतु शोध कर कृषि करण हो

  6 उत्तराखंड में आने वाले यात्रियों को सड़कों, पनियारों और जंगलों के आसपास भोजन बनाने पर प्रतिबंध लगे यात्री लोग सड़कों में शौचक्रिया , साथ लाते पॉलिथीन आदि से पूरे क्षेत्र को गंदा भी करते हैं और स्थानीय लोगों का जो मूल रोजगार है वह भी खत्म हो गया

     उपरोक्त वर्णित समस्याओं पर सभी प्रमुख व्यक्तियों को चिंतन करने की आवश्यकता है 

        लेखक :- बिष्णु प्रसाद सेमवाल भृगु 

      प्रकल्प प्रमुख /अध्यक्ष ग्रामोदय सहकारी समिति लि भिगुन


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