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श्रवण सेमवाल की कलम से:-
यह भी शोध का विषय है सैकड़ो साल पहले हमारे पूर्वजों ने हिमालय की चोटियों में चढ़कर और पहाड़ को काटकर वहां अपने रहन-सहन के लिऐ बनाया जिसे हम आज गांव के नाम से जानते है।
हम कहते है कि आज पहाड़ में कुछ नही रखा है इस भ्रम से लोग शहर में बस रहे है लेकिन हमारे पूर्वज तब पहाड़ में गये थे जब वहां गांव तो दूर एक घर भी नही बसा था शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़क तो बहुत दूर की बात थी तब तो वहां जाने के लिऐ पैदल रास्ते भी नही थी उस कठिन परस्थिति में हमारे अग्रजों ने गांव बसाया रास्ते,खोले पानी की सुविधा उपलब्ध करवायी और तब जाकर कृषि को अपना भोजन का माध्यम बनाया।
हमारे पूर्वजों ने हमें वह दिया जिसकी हम कल्पना भी नही कर सकते थे और हर गांव के नाम के पीछे और उसकी भौगोलिक संरचना के पीछे एक गौरवमयी गाथा छुपी हुई है। हमें अपने पूर्वजों पर नाज होना चाहिये था लेकिन हम लोगो ने यह कहकर कि गांव में कुछ नही है रखा है ना शिक्षा है ना स्वास्थ्य है और ना ही रोजगार का साधन।
आज भी गांव में मूलभूत सुविधाऐं नही पहुंच पायी है इसके पीछे दोषी हमारे पूर्वज नही बल्कि हम औऱ आप है। उन्होंने गांव को तब विकसित करने की सोची जब विज्ञान का जन्म ही हो रहा था हमारे पूर्वजों का सपना यही था कि हमारी अगली संतान विज्ञान की क्रांति को विकास का आधार बनाकर संस्कारों, सभ्यताओं के मानक पर गांव को विकसित करेगें
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