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उत्तराखंड में क्यों हुआ कम मतदान, विष्णु प्रसाद सेमवाल द्वारा शानदार विश्लेषण।

04-05-2024 08:13 AM

    उत्तराखंड में लोकसभा का चुनाव सम्पन्न हो चुका है सभी राजनैतिक दलों /पार्टियों , सामाजिक संगठनों और चुनाव आयोग द्वारा सबको मतदान करने के लिए हर प्रकार के जनजागरण के नारे और बिज्ञापन कार्यक्रम चलाए जाने के बाद भी आज कल लोगों में चिंता व्यक्त की जा रही है कि उत्तराखंड के ग्रामीण क्षेत्रों में भी मतदान औसत बहुत कम हो रहा है यह चिंतन और मनन सभी जागरूक जनमानस कर रहे हैं कि किन कारणों से मतदान औसत घटते क्रम में जा रहा है इस संदर्भ में मैंने अपने अनुभव और सामाजिक लोकमत से जो प्राप्त हुआ वह इस प्रकार है ।

1 मतदाता सूची में संख्यात्मक और तथ्यात्मक अन्तर

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    यह सर्वविदित है कि उत्तराखंड के ग्रामीण क्षेत्रों से जिस प्रकार से पलायन हो रहा है उसका असर भी मतदाता सूची में आना स्वाभाविक है जब मतदाता सूची में संशोधन , विच्छेदन अथवा संवर्धन होता है तो कोई नहीं चाहते हैं कि हमारा नाम मतदाता सूची से विच्छेदित हो बी एल,ओ ,जब गांव में सूचनार्थ जातें हैं तो जो जो पत्रावली निर्वाचन आयोग द्वारा मानक है और वह उपलब्ध हो जातें हैं तो वी एल ओ नामांकन को नकार नहीं सकते हैं और गांव के 200मतदाताओं सूची इस प्रकार बन गई जिन्होंने मानकों की पूर्ति कर मतदाता सूची में संख्यात्मक बढ़ा दिया किन्तु हैं प्रवासी होने के बाद भी ग्रामीण मतदाता अब यदि किसी सूची में मतदाता 600 है और 200लोग प्रवासी सूची वद्ध हैं और मतदान जो लोग वर्तमान में गांव में रह रहे हैं उन्होंने 250 मत डाले

   Vअब इसी गणित ने सबको भ्रमित कर दिया कि गांव में असली मतदाताओं की संख्या कुल 400है जबकि वह 200प्रवासी सहित 600हुई जो गांव में नहीं है हम यदि वास्तविक 400मतदाता के गांव में 200मतदान करते हैं तो 50%मतदान माना जा सकता है किन्तु यदि 600 सूची वद्ध पर प्रतिशत माने तो यह 33/34%के माना जाएगा जो कि निराशाजनक है जबकि 50%संतोषजनक है

2 क्षेत्र बिकास निधियों के प्रति आक्रोश की भावना

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    वर्ष 1986/87जब से जबाहर रोजगार योजना , विधायक निधि , सांसद निधि , क्षेत्र , पंचायत एवं जिला पंचायत विधियां सीधे जनप्रतिनिधियों के द्वारा ग्रामीण विकास हेतु वितरण की जाने लगी तो जनता ने अपने जनप्रतिनिधि के प्रति सीधे ज़बाब देही तय कर लिया कि आपके द्वारा मुझे क्या लाभ मिला । इसके दूसरे रुप में यह भी समझा जा सकता है कि अब लोगों की वृत्ति में एक बहुत बड़ा परिवर्तन आ गया है कि सार्वजनिक कार्यों को आज व्यक्ति अधिक महत्वपूर्ण नहीं मानता जनप्रतिनिधियों द्वारा जो सार्वजनिक कार्य किये अथवा करवाया जाता है उसके लिए कहा जाता है कि उस काम ने तो होना ही था कौन से उसने अपने घर से दिये हैं जिसको मैंने वोट दिया उसने मुझे क्या दिया ? यह भावना एक आम जन में पैठ बना चुकी है जब मतदान का समय निकट आता है तो यह प्रश्नोत्तरी का कार्यक्रम आम चौराहों और खेत खलिहानों में आरंभ हो जाता है जिसका परिणाम यह होता है कि जनप्रतिनिधि ने जिनको प्रत्यक्ष लाभ दिया होगा वह मतदान करने जायेगा और जो रूठा हुआ होगा उसको पुनः मनाने पर लोकतंत्र के इस पावन पर्व हेतु मतदान के लिए तैयार किया जाता है

3 जनप्रतिनिधियों द्वारा कार्यकर्ता की उपेक्षा 

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    यह एक ध्रुव सत्य है कि चुनाव में जितना मेहनत प्रत्याशी करता है उससे अधिक गांव में रहने वाला जिसे साधारण कार्यकर्ता कहा जाता है असल में असाधारण कार्यकर्ता वही होता है जो पार्टी द्वारा मनोनीत ग्राम पंचायत प्रधान से लेकर सांसद तक के सारे प्रत्याशियों के लिए चूल्हे की लड़ाई लड़ता है और हर बार वह मतदाता से कुछ वायदा कर मतदान केंद्र में ले जाता है किन्तु जब मूल तृणमूल कार्यकर्ताओं की बिजेता जनप्रतिनिधियों द्वारा उपेक्षित किया जाता है तो इसका सीधा असर मतदान प्रतिशत पर आ जाता है क्योंकि कार्यकर्ता अपने आप में संशकित हो जाता है कि कहीं लोग कुछ कह तो न दे । 

4 सरकार के प्रति बेरोजगार का आक्रोश

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    यह सर्वविदित है कि उत्तराखंड के जनमानस की मनोवृत्ति उद्योगपति बनने की कम और सरकारी एवं गैर सरकारी नौकरी करने की अधिक है आजादी के बाद सरकारी, कर्मचारी लगभग अधिकाधिक परिवारों में मिल जाती थी कोई अध्यापक , कोई चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी , बेलदार,गैंगबेलदार के साथ फौज में भर्ती होना गौरवान्वित बिषय था किन्तु अब यह सब सरकारी स्तर बन्दप्राय स्थिति हो गई पृथक राज्य की मांग भी सरकारी नौकरी की अभिलाषा ही थी आज उत्तराखंड के नौजवान के पास एक ही बिकल्प रह गया कि हमें सिर्फ होटल में विदेश जाकर नौकरी करनी होगी उसको उत्तराखंड में ऋषिकेश , देहरादून अथवा कुमाऊं क्षेत्र के मैदानी क्षेत्र में रहना है गांव में कोई रोजगार तो है नहीं इसका उत्तर किसी के पास नहीं कि हमारे पास गांव में रोजगार है क्या ?

5 जनप्रतिनिधियों का जनता के साथ जनसंवाद का अभाव

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    इस सत्य को भी नकारा नहीं जा सकता है कि कुछ जनप्रतिनिधि गण ऐसे भी हैं जो पांच साल तक चिरनिंद्रा में रहते हैं और मात्र पांच साल बाद उनका प्रकटीकरण हो जाता है उस समय पार्टियों के समर्पित मतदाता यह तय नहीं कर पाते हैं कि प्रत्याशी को नकारें कि पार्टी को स्वीकारें उस समय पार्टियों के हाई कमान क्षेत्रीय कार्यकर्ताओं की भावना का मूल्यांकन नहीं अपितु अपनी राय शुमारी को आधार बनाकर जनप्रतिनिधि को भेजते जिससे कार्यकर्ता उदासीन मन से अपनी भूमिका अदा करता है।

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मतदाताओं की अपेक्षा अपने जनप्रतिनिधियों से

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    1 उत्तराखंड में आज तक हमारे जनप्रतिनिधियों एवं योजनाकारों के द्वारा कोई ठोस योजना सुनिश्चित की जाय जिसको शिक्षित नौजवान के योग्य स्थाई और रोजगार सृजक हो

    2 गांव का जो आधार भूत जीविकोपार्जन कृषि और पशुपालन मुख्य रहा पलायन के कारण बंजर खेतों का क्षेत्रफल घटता जा रहा है और कृषि उत्पाद क्षेत्र घटते जा रहें हैं फलस्वरूप जो किसान गांव में रहरहा है वह भी अपनी जमीन को बंजर छोड़ने पर बिवश हो गया है क्योंकि जंगली जानवरों और बन्दरों से फसल क्षति ग्रस्त हो रही है इसके लिए सांसद निधि, विधायक निधि से ऐंगल बाड चकबंदी हो तथा मनरेगा से चौकीदार ।

    3 ग्रामीण क्षेत्र के लगभग आठ दस छोटे बड़े ठेकेदार जो बिभिन्न बिभागों में काम की लालसा में गांव में ही रह रहे थे किन्तु सरकार ने बड़ी , बड़ी निविदा वाले बड़े उद्योगपतियों को काम देने का विधान बना दिया जिसके कारण स्थानीय छोटे छोटे ठेकेदार सरकार के विरोध में मतदान के द्वारा अपना रोष जताते हैं ।

    सरकार को विभागीय भ्रष्टाचार को नियंत्रित कर छोटे छोटे ठेकेदार को भी रोजगार सृजन करना चाहिए दिल्ली मुंबई, कोलकाता वाले ठेकेदार पैसा कमाना जानते हैं क्षेत्र के लोगों और काम के प्रति उनकी कोई संवेदना और निष्ठा नहीं होती

    4 जो सरकारी प्रतिष्ठान सरकार ने गांव में खोलें हैं उन्हें किसी भी परिस्थिति में बन्द नहीं करनी चाहिए जैसे शिक्षा स्वास्थ्य प्रतिष्ठान आदि यदि सरकार इन्हें स्वयं बन्द करेगी तो माना जाएगा कि सरकार भी पलायन कराने में अपनी भूमिका अदा कर रही है क्योंकि जिस गांव का विद्यालय को आप बन्द कर रहे हैं और वहां पांच परिवार भी होंगे तो उनके बच्चों की जिम्मेदारी भी सरकार की है।

उपरोक्त वर्णित विषय लोकमत है 

     विमर्श कर्ता

             बिष्णु प्रसाद सेमवाल भृगु अध्यक्ष ग्रामोदय सहकारी समिति लि भिगुन टिहरी गढ़वाल


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