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Tehri Garhwal: टिहरी के समण गांव में पांडव नृत्य का आयोजन, यहां सीमा पर तैनात जवान भी छुट्टी लेकर आता है लोक संस्कृति बचाने।

30-01-2024 01:44 PM

टिहरी:- 

    पंकज भट्ट: उत्तराखंड जिस तरह  प्राकृतिक सुंदरता के लिए पूरे विश्व में जाना जाता है उतनी ही सुंदरता यहां की लोक संस्कृति में भी है। यहां पांडव नृत्य और रामलीला के साथ साथ अगल अलग क्षेत्रों लोक संस्कृति के अनेकों आयोजन किए जाते हैं, टिहरी के समण गांव में पांडव नृत्य को बड़े धूमधाम से मनाया जाता है जहां देश की सीमा पर तैनात जवान भी अपने गांव की इस लोक संस्कृति में सम्मिलित होने गांव पहुंच जाता है।

    हिमालय की गोद में बसा उत्तराखंड जिसे  देवभूमि के नाम से भी जाना जाता है, अपनी अलौकिक खूबसरती, प्राचीन मंदिर और अपनी संस्कृति के लिए विश्वविख्यात है। यहां की लोक कलाएं और लोक संगीत बरसों से भारत की प्राचीन कथाओ का बखान करती आ रही हैं। ऐसी ही एक प्राचीन परंपरा है पांडव नृत्य जो की देवभूमि उत्तराखंड का पारम्परिक लोक नृत्य है। उत्तराखंड में पांडव नृत्य पूरे एक माह का आयोजन होता है। गढ़वाल क्षेत्र में नवंम्बर और दिसंबर के समय खेती का काम पूरा हो चुका होता है और गांव वाले इस खाली समय में पाण्डव नृत्य के आयोजन के लिए बढ़ चढ़कर भागीदारी निभाते हैं। 

  वहीं पांडव नृत्य में शिरकत करने पहुंची जिला पंचायत अध्यक्ष सोना सजवाण ने बताया कि टिहरी जनपद के सीमांत घनसाली विधानसभा के समण गांव में इस परंपरा को ग्रामीणों ने सदियों से जीवित रखा हुआ है जो सबसे अनोखा कार्य है, वहीं उन्होंने बताया कि समण गांव टिहरी जनपद का एक ऐसा गांव है जहां पर पलायन भी नाम मात्र का और इस गांव के युवा देश की रक्षा के लिए 2 दर्जन से अधिक जवान तीनों सेनाओं का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं जो अपने आप में फक्र करने वाली बात है।

    आपको बताते चलें पांडव नृत्य उत्तराखंड का लोक नृत्य और लोक संस्कृति भी मानी जाती है जिसे अलग-अलग स्थानों पर अनेकों ढंग से आयोजित किया जाता है, जबकि टिहरी के समण गांव में महाभारत की संपूर्ण कथा के साथ साभी पात्रों को बख़ूबी सजाया-संवारा जाता है वहीं इन पत्रों पर पांडव भी अवतरित होते हैं। 

    पांडव नृत्य के आयोजनों को लेकर ग्रामीणों का कहना है कि इस तरह के आयोजनों से गांव में भाई चारा सदैव बना रहता है और अपनी लोक संस्कृति भी जिंदा रहती है, यही कारण है कि देश के दूर दराज प्रदेश में रोजगार के लिए युवा भी इस दौरान गांव आते हैं। वहीं ग्रामीण बताते हैं कि पांडव नृत्य के आयोजनों को कराने का मुख्य उद्देश्य  क्षेत्र में सुख शांति और समृद्धि बनी रहती है।


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