अमर शहीद श्रीदेव की पुण्यतिथि पर प्रदेश भर में मनाया गया सुमन दिवस
25-07-2022 11:15 PM
टिहरी:-
देवभूमि के महान क्रांतिकारी सपूत रहे अमर शहीद श्रीदेव सुमन को उनकी पुण्यतिथि पर प्रदेश से लेकर जनपद के हर क्षेत्र में उनकी तस्वीर पर पुष्प अर्पित करके उनकी कुर्बानी को याद किया गया , वहीं कई विद्यालयों में प्रभातफेरी निकालकर वृक्षारोपण भी किया गया।
भारत के स्वतंत्रता संग्राम में मध्य हिमालय के गढवाल और कुमाऊँ मण्डल की अग्रणी भूमिका रही है । दोहरी ग़ुलामी के विरुद्ध संघर्ष में देश की 584 देशी रियासतों में टिहरी गढवाल की जनता का गौरवपूर्ण स्थान रहा है । टिहरी की रक्तहीन क्रान्ति के सूत्रधार थे श्रीदेव सुमन ।
टिहरी जेल में 84 दिनों के आमरण अनशन के उपरांत 25 जुलाई 1944 को जिन रहस्यमय परिस्थितियों में उनका प्रणान्त हुआ और जेल कर्मियों नें मध्यरात्रि के समय के समय सुमन जी के शरीर को जिस प्रकार भिलंगना नदी में विसर्जित किया ,वह आज भी रहस्य बना हुआ है ।
श्रीदेव सुमन जी का जन्म टिहरी गढ़वाल के जौल नामक ग्राम में 25 मई 1916 को हुवा था। इनके पिता श्री हरिराम बडोनी अपने क्षेत्र के लोकप्रिय वैध थे। माता श्रीमती तारा देवी एक कुशल गृहणी थी। श्रीदेव सुमन का बचपन का नाम श्रीदत्त बडोनी था। सन 1919 में हैजे का प्रकोप फैलने पर श्री हरिराम बडोनी हैजा के मरीजों की सेवा करते, स्वयं हैजे का शिकार हो गए और 36 साल की उम्र में ही चल बसे। मगर इनकी माता ने अपने बच्चों का लालन पालन
सुमन जी की आरम्भिक शिक्षा अपने पैतृक गांव जौल व चम्बाखाल में हुई। 1931 में इन्होंने टिहरी से हिंदी मिडिल की परीक्षा उत्तीर्ण की। 1931 में वे देहरादून गए और वहाँ के नेशनल स्कूल में अध्यापन कार्य शुरू कर दिया,और साथ- साथ में पढ़ाई भी करते रहे । पंजाब विश्वविद्यालय से इन्होंने रत्न,भूषण,प्रभाकर परीक्षाओं को उत्तीर्ण किया। इसके साथ- साथ ,विशारद और साहित्य रत्न की परीक्षा भी उत्तीर्ण जी थी।
श्रीदेव सुमन ने 1937 में सुमन सौरभ नाम से अपनी कविताएं प्रकाशित कराई। इन्होंने अखबार हिन्दू और समाचार पत्र धर्मराज्य में भी कार्य किया । इन्होंने इलाहाबाद में राष्ट्रमत नामक अखबार में सहायक संपादक के रूप में भी कार्य किया। इस प्रकार श्रीदेव सुमन साहित्य के क्षेत्र में निरंतर आगे बढ़ने लगे। जनता की सेवा के उद्देश्य से इन्होंने 1937 में गढ़देश सेवा संघ की स्थापना की । यह आगे चलकर हिमालय सेवा संघ के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
1938 में श्रीदेव सुमन श्रीनगर में राजनैतिक सम्मेलन में भी शामिल हुए। इस सम्मेलन में नेहरू जी भी आये थे, और इन्होंने गढ़वाल की खराब स्थिति के बारे में नेहरू जी को भी अवगत कराया। इसी राजनैतिक सम्मेलन से इन्होंने गढ़वाल की एकता का नारा मजबूत किया। श्रीदेव सुमन ने जगह- जगह यात्रा करके जंन जागरण फैलाना शुरू कर दिया। 23 जनवरी 1939 की देहरादून में टिहरी राज्य प्रजा मंडल की स्थापना की गई , और श्रीदेव सुमन जी संयोजक मंत्री चुने गए। हिमालय सेवा संघ द्वारा पर्वतीय राज्यों जाग्रति और चेतना लाने का काम किया। लैंड्सडाउन से प्रकाशित होने वाली पत्रिका, कर्मभूमि से इन्होंने सह-संपादक के रूप में कार्य किया तथा कई जनजागृति के लेख लिखे।
इसके बाद सुमन जी ने हिमांचल नामक पुस्तक छपवाकर टिहरी रियासत में बंटवाई , जिससे वे रियासत के नजर में आ गए। रियासत नें इन्हें कई प्रकार के प्रलोभन भी दिए। मगर कर्मयोगी सुमन को डिगाना किसी के बस की बात नहीं थी।
अगस्त 1942 में जब भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लेने के कारण सुमन जी को 29 अगस्त 1942 को देवप्रयाग में गिरफ्तार कर 10 दिन तक मुनिकीरेती जेल भेज दिया गया । बाद में 06 सिंतबर 1942 को देहरादून जेल भेज दिया ,वहाँ से इन्हें आगरा जेल में शिप्ट किया गया। 15 माह जेल में रहने के बाद 19 नवंबर 1943 को सुमन जी जेल से रिहा हुए।
इसी बीच टिहरी रियासत ने टिहरी की जनता के ऊपर जुल्मों की सारी हदें पार की थी। श्रीदेव सुमन टिहरी की जनता के अधिकारों के लिए अपनी आवाज बुलंद करने लगे। इन्होंने जनता और रियासत के बीच सम्मानजनक संधि का प्रस्ताव भी दरवार को भेजा। लेकिन रियासत ने अस्वीकार कर दिया।
29 दिसंबर 1943 को श्रीदेव सुमन को चम्बाखाल में गिरफ्तार करके , 30 दिसम्बर को टिहरी जेल भिजवा दिया गया। टिहरी जेल में श्रीदेव सुमन जी के साथ, नारकीय व्यवहार किया गया, इनके ऊपर झूठा मुकदमा चला कर 31जनवरी 1944 को, इन्हें 2 साल का कारावास और 200 रुपया दंड देकर इन्हें अपराधी बना दिया गया। इसके बाद भी इनके साथ नारकीय व्यवहार होते रहे। अंत मे श्रीदेव सुमन ने 3 मई 1944 को ऐतिहासिक आमरण अनशन शुरू कर दिया।
जेल प्रशासन ने इनका मनोबल डिगाने के लिए, कई मानसिक और शारिरिक अत्यचार किये , लेकिन वे अनशन पर डिगे रहे। जेल में इनके अनशन की खबर से जनता परेशान हो गई, लेकिन रियासत ने अफवाह फैला दी की श्रीदेव सुमन जी ने अपना अनशन समाप्त कर दिया है, और राजा के जन्मदिन पर इनको रिहा कर दिया जाएगा। यह खबर इनको को भी मिल गई, उन्होंने कहा कि वे प्रजामंडल को राज्य में रजिस्टर्ड किये बिना अपना अनशन खत्म नही करेंगे।
अनशन से सुमन जी की हालत बिगड़ गई , और जेल प्रशासन ने अफवाह फैला दी कि इनको न्यूमोनिया हो गया। इसके बाद इनको कुनैन के इंजेक्शन लगाए गए। कुनैन के इंजेक्शन के साइड इफेक्ट से इनके शरीर में खुश्की फैल गई, जिसकी वजह से ये पानी के लिए तड़पने लगे, श्रीदेव सुमन पानी-पानी चिल्लाते रहे ,लेकिन किसी ने इनको पानी नही दिया।
अंततः तड़पते-तड़पते और रियासत के जुल्मों से लड़ते हुए इन्होंने 25 जुलाई 1944 को टिहरी रियासत की जनता की स्वतंत्रता के लिए अपने प्राणों का बलिदान कर दिया।
श्रीदेव सुमन की शहादत की खबर से जनता में एकदम उबाल आ गया, जनता ने रियासत के खिलाफ खुल कर विद्रोह शुरू कर दिया। जनता के इस आंदोलन के बाद टिहरी रियासत को प्रजामंडल को वैधानिक करना पड़ा। मई 1947 में टिहरी प्रजामंडल का पहला अधिवेशन हुआ। जनता ने 1948 में टिहरी, देवप्रयाग और कीर्तिनगर पर अपना अधिकार कर लिया। और अंततः 01 अगस्त 1949 को टिहरी गढ़वाल राज्य , भारत गणराज्य में विलीन हो गया।
हमें गर्व हैं श्रीदेव सुमन और उनकी शहादत पर , मात्र 29 वर्ष की छोटी सी उम्र में टिहरी रियासत और अपने देश के लिए ऐसा कार्य कर गए , जिससे उनका नाम इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में सदा-सदा के लिए अमर हो गया।
टिहरी विधायक किशोर उपाध्याय ने टिहरी जेल स्थित श्री देव सुमन की स्मृति पर माल्यार्पण कर पुष्प अर्पित करने के बाद कहा कि आज बलिदान दिन है , बलिदान की प्रथा राज बली के दौर से चली आ रही है वहीं श्रीदेव सुमन जी ने भी टिहरी के लिए जो बलिदान दिया उसका भविष्य हम है। विधायक किशोर ने कहा कि श्रीदेव सुमन का सबसे पहला उद्देश्य शिक्षा था और उन्होंने उस दौर में सबसे पहले अपनी पत्नी को शिक्षित करने का कार्य किया । जिस तरह से टिहरी के लिए 84 दिन तक जो है वह आमरण अनशन करना हर किसी के बस की बात नहीं है
मैं जानता हूं कितनी कठिन तपस्या ही तो हम भी चाहते कि उनकी भावनाओं के अनुसार टिहरी जनपद, उत्तराखंड और भारतवर्ष बने।
विधायक किशोर ने कहा कि सुमन जी के नाम पर जो विश्वविद्यालय की स्थापना हुई है और वह खाली यहां पर पते के लिए रखा गया है जैसे डाकघर होता है वेसे बनकर रह गया है। हमारी कोशिश थी कि जो टिहरी झील है उसका नाम सुमन सागर रखा जाए।
वहीं जिलाधिकारी डॉ सौरभ गहरवार ने कहा कि उनके परिवार वालों ने जो हमें उनकी कथा के बारे में बताया है हमें उन से यही सीखने को मिलता है कि हमारे अंदर अगर जीवटता रहे तो हम किसी भी चीज़ को प्राप्त कर सकते हैं। वहीं डीएम सौरभ ने बताया कि आज टिहरी जेल के कैदियों द्वारा स्थानीय उत्पाद रिंगाल से निर्मित कई प्रकार के उत्पाद बनाए गए हैं जो बहुत ही कम किमत पर है ।