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टिहरी:
देवभूमि उत्तराखंड अपने सुरम्य पर्यटक स्थलों, चार धामों और शक्ति सिद्धपीठों के अतिरिक्त यहां के शिव मंदिरों (शिवालिंगो) के लिए भी प्रसिद्ध है। कुमाऊं होकर मानसरोवर व केदारनाथ शिवलिंग की पैदल यात्राएं और यहां के मद्महेश्वर गोपेश्वर (चमोली), क्यूंकालेश्वर, एकेश्वर (पौड़ी) व टपकेश्वर (देेहरादून) तथा कुमाऊं में बागेश्वर जागेश्वर जैसे नाम यह दर्शाते हैं कि देवभूमि का हर स्थान भगवान शंकर से जुड़ा है। यही कारण है कि उत्तराखण्ड के विषय में जितने है कंकर, उतने ही शंकर जैसी कहावत प्रसिद्ध है। आज नागराज हिमालय के चौखम्बा शिखर को गढ़वली संस्कृति का प्रतीक सम्भवतः कुछ लग इसलिए मानते हैं कि क्योंकि इसकी तलहटी में केदारनाथ शिवलिंग के रूप में भगवान शंकर का वास है।
भगवान शिव की महिमा उत्तराखंडी लोककथाओं, लोकगीतों के अलावा जागरों में अधिकांश गाई जाती है। शिव के जागरों में सत्येश्वर महादेव का भी उल्लेख है, जो पुरानी टिहरी के साथ जल समाधि ले चुका है। सत्येश्वर महादेव का पौराणिक महत्व केदारखण्ड के अध्याय १४६ में दर्शाया गया है।
मन्ना सत्येश्वरं ख्यातं दर्शनाष्टि दायकम् ।
घोरे कलियुगे विप्र सद्य: प्रत्यय कारकम् ।।
अर्थात टिहरी राजधानी में श्री सत्येश्वर नामक शिव है, जो दर्शन मात्र से मनोरथ पूर्ण करते हैं। इस घोर कलियुग में वह शिव शीघ्र चमत्कार दिखाने वाले हैं। पुराने टिहरी नगर की स्थापना भी सत्येश्वर शिवलिंग से जुड़ी है। सन् १८१५ में गढ़वाल विभाजन के पश्चात गढ़वाल नरेश नई राजधानी की खोज में टिहरी गांव पहुंचे जहां भिलंगना के तट पर सत्येश्वर शिवलिंग के समीप अचानक उनका घोड़ा रुक गया। राजा के सलाहकारों ने इसे प्रभु की इच्छा मानते हुए, यहीं राजधानी बनाने की सलाह दी। बाद में प्रताप इन्टर कॉलेज के पास ही टिहरी नगर का बसना प्रारम्भ हो गया।
सत्येश्वर महादेव पुरानी टिहरी में बस अड्डे से 1 किलोमीटर दूर भिलंगना नदी के तट पर एक चौड़े चबूतरे में स्थित थे। लगभग तीन मीटर के वर्गाकार मंदिर में एक मीटर से अधिक व्यास में सत्येश्वर शिवलिंग के रूप में पाषाण शिला थी। टिहरी के डूबने से पूर्व तक श्रद्धालुओं का यहां आना-जाना होता रहा। मन्दिर प्रांगण में गढ़वाल नरेशों की कुलदेवी राजराजेश्वरी के अतिरिक्त अन्य देवी देवताओं की प्रतिमाएं भी यहां स्थापित थीं। सरकारी नीति के अनुसार पुरानी टिहरी की सभी प्रतिमाओं को नई टिहरी में प्रतिस्थापित होना था किन्तु स्वयंभू भूमि से स्वयं प्रकट होने के कारण सत्येश्वर शिवलिंग का अन्यत्र विस्थापन सम्भव न था। ऐतिहासिक एवम् महत्वपूर्ण पुस्तकों के प्रकाशन वीरेंद्र सिंह पुण्डीर के अनुसार सत्येश्वर महादेव नई टिहरी के सेक्टर -९ डी में आधुनिक रूप से प्रतिस्थापित है, जिसमें स्थित शिवलिंग रूद्रप्रयाग जिले से लाए गए हैं।
आज भले ही सत्येश्वर महादेव टिहरी नगर के साथ जल विलीन हो चुके हैं, फिर भी टिहरी वासी श्रावण सोमवारों और शिवरात्रि को अवश्य याद करते हैं, जो स्थापना से जलमग्न होने तक के इतिहास का स्वयं साक्षी था।
आभार विमल जुयाल
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