उत्तराखंड के ग्रामीणों ने शुरू किया अनोखा अभियान — मालू-सालू के पत्तों से बना रहे हैं रोजगार, दे रहे हैं प्लास्टिक-मुक्त समाज का संदेश।
04-11-2025 03:58 PM
रिखणीखाल (पौड़ी गढ़वाल):-
पहाड़ों में स्वरोजगार की दिशा में एक प्रेरक पहल सामने आई है। जनपद पौड़ी गढ़वाल के रिखणीखाल ब्लॉक के जुई गांव में मालू और सालू के पत्तों से दोने-पत्तल बनाने की एक यूनिट शुरू की गई है, जो ग्रामीणों को न केवल रोजगार दे रही है बल्कि पर्यावरण संरक्षण का संदेश भी फैला रही है।
इस पहल के संचालकों का कहना है कि ग्रामीण क्षेत्रों में बेरोजगारी सबसे बड़ी समस्या है, और यदि स्थानीय संसाधनों का उपयोग कर रोजगार के साधन खड़े किए जाएं तो पलायन भी रोका जा सकता है। यूनिट संचालक बताते हैं — “हमारा उद्देश्य है कि हर कोई आत्मनिर्भर बने। मालू-सालू के पत्तों से बने दोने-पत्तल पूरी तरह प्राकृतिक हैं और पर्यावरण के अनुकूल भी।”
प्लास्टिक छोड़ो, प्रकृति अपनाओ
ग्रामीणों का कहना है कि प्लास्टिक और थर्माकोल से बने बर्तनों का प्रयोग न केवल पर्यावरण के लिए हानिकारक है, बल्कि यह हमारे स्वास्थ्य पर भी बुरा प्रभाव डालता है। ये पदार्थ भोजन के माध्यम से शरीर में जाकर बीमारियों को जन्म देते हैं। साथ ही, जूठन खाने वाले पशुओं के लिए भी यह घातक साबित होता है।
इसलिए “चलो मालू-सालू रिवाज को रोज़गार बनाते हैं, चलो प्लास्टिक-थर्माकोल छोड़ मालू-सालू अपनाते हैं” — जैसे प्रेरक नारे इस अभियान की पहचान बन चुके हैं।
पर्यावरण और रोज़गार दोनों की रक्षा
यह यूनिट न केवल स्थानीय लोगों को स्वरोजगार उपलब्ध करा रही है, बल्कि जंगलों में गिरने वाले पत्तों के सदुपयोग से पर्यावरणीय संतुलन भी बनाए रख रही है। पतझड़ के बाद जंगलों में सूखे पत्तों के कारण अक्सर आग लग जाती है, जिससे पर्यावरण को भारी नुकसान होता है। लेकिन इन पत्तों के उपयोग से एक ओर आग लगने की घटनाएं घटेंगी, वहीं दूसरी ओर लोगों को स्थायी आमदनी भी मिलेगी।
स्थानीय उत्पादों की बिक्री और सहायता
संचालक बताते हैं कि कोई भी व्यक्ति इस कार्य को शुरू करना चाहता है तो उन्हें हर संभव सहायता दी जाएगी। पत्तल-दोने तैयार करने में सहयोग से लेकर तैयार उत्पाद खरीदने तक का वादा किया गया है।
“हमारा उद्देश्य है कि हर व्यक्ति का अपना रोजगार हो, हर परिवार आत्मनिर्भर बने,” उन्होंने कहा।
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