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बेजुबानों की खुशी है उत्तरकाशी की खुशी।

03-03-2025 11:38 AM

उत्तरकाशी:- 

    वरिष्ठ पत्रकार, ओंकार बहुगुणा की कलम से: उत्तरकाशी की शांत वादियों में, जहाँ प्रकृति अपने रंग बिखेरती है, वहीं एक नन्ही बच्ची की आँखों में कुछ अलग ही चमक थी। यह चमक थी करुणा की, सेवा की, और बेजुबानों के दर्द को समझने की। उस बच्ची का नाम था खुशी नौटियाल।

एक हादसा, जिसने बदल दी सोच

खुशी तब 9वीं कक्षा में पढ़ रही थी, जब उसने अपने घर के पास सड़क पर एक कुत्ते को तड़पते हुए देखा। उसका शरीर अधमरा था, शायद किसी तेज रफ्तार गाड़ी ने उसे टक्कर मार दी थी। वह दर्द से बिलबिला रहा था, लेकिन कोई उसे देखने तक नहीं रुका। खुशी उस दृश्य को देखकर सन्न रह गई। उस दिन पहली बार उसने महसूस किया कि जानवरों की जिंदगी कितनी असहाय होती है। वे अपना दर्द किसी से कह नहीं सकते, उनकी पीड़ा को कोई नहीं समझता। उसी दिन खुशी ने ठान लिया कि वह इन बेजुबानों की आवाज बनेगी।

आज खुशी एमएससी कर रही है और एनसीसी की कैडेट भी रह चुकी है पढ़ाई के साथ साथ खुशी का ये आत्मसंतुष्टि का कार्य युवाओं के लिए प्रेरणा बन चुका है ।

देहरादून बालावाला रहने वाले पढ़ाई कर रहे सुब्रत बहुगुणा बताते है कि खुशी दीदी के इस कार्य से प्रभावित होकर उन्हें भी सीख मिली है और इस मुहिम का हिस्सा बनना अब सुकून भरा होता है 

परिवार का साथ और पहला कदम

    खुशी के पिता, जो एक सरकारी स्कूल में शिक्षक हैं, हमेशा उसे समाज सेवा के लिए प्रेरित करते थे। जब उसने अपने इस नए संकल्प के बारे में बताया, तो परिवार ने उसका पूरा समर्थन किया। उसकी माँ, एक गृहिणी, और छोटी बहन खशाली भी उसके इस सफर में शामिल हो गईं। शुरुआत में खुशी ने खुद ही छोटे-छोटे घायलों का उपचार करने की कोशिश की। उसने इंटरनेट पर रिसर्च की, डॉक्टरों से सीखा और धीरे-धीरे जानवरों की देखभाल में निपुण होती चली गई।

लहित एनिमल वेलफेयर ग्रुप की नींव

    समय के साथ खुशी ने महसूस किया कि अकेले वह ज्यादा दूर तक नहीं जा सकती। उसे और भी साथियों की जरूरत थी। 2024 में, उसने उत्तरकाशी के पशु-प्रेमियों को जोड़कर लहित एनिमल वेलफेयर ग्रुप की स्थापना की। "लहित" संस्कृत का शब्द है, जिसका अर्थ है "द्वेष रहित"। यह नाम ही इस संगठन की आत्मा बन गया—जहाँ प्रेम, करुणा और सेवा का ही स्थान था।

    आज, लहित ग्रुप में 155 से अधिक सदस्य हैं, जिनमें से 10-12 लोग सक्रिय रूप से काम कर रहे हैं। वे हर दिन घायल जानवरों का उपचार करते हैं, उन्हें आश्रय दिलाते हैं और लोगों को जागरूक करते हैं कि जानवरों के प्रति दयालु बनें।

हर बेजुबान की जान बचाना एक संघर्ष

    खुशी की यह राह आसान नहीं थी। एक बार, उसे खबर मिली कि एक गोवंश गहरे खड्ड में गिर गया है और कई दिनों से भूखा-प्यासा वहीं फंसा हुआ है। कोई उसे बचाने को तैयार नहीं था, क्योंकि रास्ता कठिन था और जोखिम बहुत बड़ा। लेकिन खुशी पीछे हटने वालों में से नहीं थी। अपने साथियों के साथ मिलकर उसने घंटों की मेहनत के बाद उस घायल प्राणी को बचाया और उसका इलाज करवाया। उस दिन, जब उस गाय की आँखों में राहत और आभार का भाव दिखा, तो खुशी को लगा कि उसकी मेहनत सार्थक हुई।

लोगों की सोच बदल रही है

    पहले, जब खुशी सड़कों पर जानवरों को खाना खिलाती थी या उनका इलाज करती थी, तो कुछ लोग उसे पागल कहते थे। लेकिन अब वही लोग उसे सम्मान की नजर से देखते हैं। कई लोग जन्मदिन और सालगिरह पर जानवरों को भोजन कराते हैं, घायल पशुओं को देखकर मदद के लिए फोन करते हैं। उत्तरकाशी में, जहाँ कभी बेजुबानों के लिए कोई आवाज नहीं उठती थी, अब वहाँ करुणा की एक लहर दौड़ पड़ी है।

खुशी की खुशी

    आज, जब खुशी अपने इस सफर को देखती है, तो उसे लगता है कि उसकी सबसे बड़ी जीत यही है कि उसने लोगों के दिलों में दया और प्रेम के बीज बो दिए हैं। वह मानती है कि यह सफर अभी लंबा है, लेकिन जब तक एक भी घायल जानवर सड़कों पर तड़पता रहेगा, लहित ग्रुप का मिशन जारी रहेगा।

और यूँ, खुशी सिर्फ एक नाम नहीं, बल्कि उन सभी बेजुबानों की "खुशी" बन गई, जिनकी आवाज कोई नहीं सुनता था।

क्या कहते है स्थानीय:  

इंडियन रेडक्रास के चेयरमैन माधव जोशी कहते है कि खुशी की खुशी में रेडक्रास भी शामिल है और मांग करते है कि खुशी की इस मुहिम में जागरूकता के साथ आवाम को भी आगे आना चाहिए क्यों कि ये अलख बेजुबानों के लिए मिल का पत्थर साबित होगी सरकार को चाहिए कि खुशी की इस मुहिम को प्रोत्साहित करे।


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