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टिहरी गढ़वाल से प्रकाशित हुई ज्वालामुखी चालीसा, भक्ति और लोकसंस्कृति का अनूठा संगम

01-10-2025 06:41 AM

टिहरी गढ़वाल।

आस्था और संस्कृति की धरोहरों से समृद्ध उत्तराखंड में भक्ति रस की नई धारा बह निकली है। टिहरी ज़िले के बिनकखाल स्थित प्रसिद्ध माँ ज्वालामुखी सिद्धपीठ अब ज्वालामुखी चालीसा के प्रकाशन से चर्चाओं में है। पंडित एवं ज्योतिषाचार्य कुशलानंद सेमवाल (ग्राम भिगुन, टिहरी गढ़वाल) और भक्ति-लेखन से जुड़े पवन बृजवासी (हाल निवासी लुधियाना) की संयुक्त रचना यह चालीसा भक्तों के लिए आस्था का नया आधार बन रही है।

सदियों पुरानी आस्था का केंद्र

बालगंगा और धर्मगंगा के संगम क्षेत्र के अग्रभाग में स्थित माँ ज्वालामुखी मंदिर देवी दुर्गा के ज्वालामुखी स्वरूप को समर्पित है। यह सिद्धपीठ सदियों से श्रद्धालुओं का तीर्थस्थल रहा है। नई रचना ज्वालामुखी चालीसा ने इस मंदिर की महिमा को और व्यापक स्वरूप प्रदान किया है।

स्थानीय देवताओं की स्तुति से नई रचना तक

पंडित कुशलानंद सेमवाल पूर्व में भी धार्मिक साहित्य की रचनाओं से क्षेत्रीय आस्था को सशक्त कर चुके हैं। उन्होंने तिनगढ़ देवता की आरती, गुरूकैलापीर की आरती तथा अनेक स्थानीय देवताओं की स्तुतियाँ लिखकर गढ़वाल की परंपरा को शब्दों में पिरोया। अब ज्वालामुखी चालीसा उनकी रचनात्मक यात्रा का नया पड़ाव है, जिसे श्रद्धालु विशेष भाव से अपना रहे हैं।

सामाजिक और सांस्कृतिक सरोकार

पंडित सेमवाल केवल धार्मिक रचनाओं तक ही सीमित नहीं हैं, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक आयोजनों में भी उनकी सक्रिय भूमिका रहती है। भिगुन गाँव में आयोजित ग्राम मिलन और ग्रामोत्सव जैसे कार्यक्रमों में वे स्वयं आगे आकर सहयोग करते हैं। हाल ही के ग्रामोत्सव में उन्होंने ग्रामीणों को मोती की माला और सिर की टोपियाँ भेंट कर पारंपरिक संस्कृति को जीवित रखने का संदेश दिया।

लुधियाना में भृगु ज्योतिष केंद्र और गढ़-कुमाऊं समिति

प्रवासी उत्तराखंडियों की आस्था और पहचान को बनाए रखने के लिए पंडित कुशलानंद सेमवाल ने लुधियाना में भृगु ज्योतिष केंद्र की स्थापना की। वहीं, गढ़-कुमाऊं समिति के माध्यम से वे गढ़वाल और कुमाऊं के प्रवासियों को सांस्कृतिक रूप से जोड़े रखने का कार्य कर रहे हैं। यह पहल पंजाब जैसे महानगर में उत्तराखंडी समाज को अपनी जड़ों से जोड़े रखने में अहम साबित हो रही है।

भक्ति और संस्कृति का संगम

ज्वालामुखी चालीसा के प्रकाशन ने न केवल श्रद्धालुओं के लिए भक्ति का नया आयाम खोला है, बल्कि इससे क्षेत्र की धार्मिक-सांस्कृतिक धरोहर को भी नई पहचान मिली है। स्थानीय लोगों का मानना है कि इस रचना ने माँ ज्वालामुखी मंदिर की महिमा को और ऊँचा किया है। वहीं पंडित कुशलानंद सेमवाल की सामाजिक और सांस्कृतिक सक्रियता उन्हें आस्था और लोकसंस्कृति दोनों का सेतु बनाती है।


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