मैं उस घर की देहरी पर बैठा हूं, जिसके भीतर लूट की हलचल कोलाहल बन कर मन की बेचैनी को बढ़ाती है।
28-12-2021 05:22 AM
...खिड़की-दीवारों को ध्वस्त कर घर के भीतर मौजूद हर चीज़ को हथियाने का लालच घर खत्म करने पर आमादा है...और हमारी ज़िद है कि घर मेरा है, तो दरवाज़े का सम्मान बना रहे, यह धर्म भी मेरा है...जाएंगे तो दरवाज़े से ही। बस ! हम दरवाज़े के सम्मान में बाहर खड़े हैं और भीतर घर के जज़्बातों के चीथड़े उड़ रहे हैं। इस एहसास से हम सब व्यथित हैं...पर खामोश हैं।
इसी खामोशी को तोड़ने संवाद-सत्र में उन प्रवासियों से बातचीत जो मुंबई-दिल्ली से लौट कर उत्तराखंड आ बसे हैं और उन निवासियों से मुलाकात, जिन्हें कुछ और पंछियों के लौट आने की उम्मीद है।